Monday 8 May 2023

'शिरडी के साईबाबा' का प्रभाव!

'शिरडी के साईबाबा' (१९७७) फ़िल्म का (कुछ अस्पष्ट) समयोचित छायाचित्र!

अब के हालातों के मद्देनज़र दोनों समाजों में सौहार्द बरक़रार रखनेवाले शिरडी के साईबाबा की अहमियत उभर आई हैं! सर्व धर्म समभाव के प्रतिक समझे गए उनकी महिमा को उजागर करनेवाली दो कामयाब फ़िल्मे इस वक़्त याद आयी।

उसमें पहली थी मराठी.. 'शिरडी चे साईबाबा' (१९५५) जो निर्देशित की थी कुमार - सेन समर्थ जी ने और इसमें दत्तोपंत आंग्रे जी ने बाबा की प्रमुख भूमिका स्वाभाविकता से निभाई थी। इसकी पटकथा तथा संवाद कुमारसेन जी ने पांडुरंग दीक्षित जी के साथ लिखे थे, जिन्होंने इसका संगीत भी किया था। संत कबीर और एकनाथ जी की पद्यरचनाएँ इसमें थी। अपने जानेमाने मोहम्मद रफ़ी जी ने इसमें आवाज़ दी थी! इस फ़िल्म को लोकप्रियता के साथ राष्ट्रीय सम्मान भी प्राप्त हुआ!

दूसरी थी हिंदी फ़िल्म 'शिरडी के साईबाबा' (१९७७) जिसका निर्माण अपने आदर्श 'भारतकुमार' फेम मनोज कुमार जी ने किया था। ("बाबा ने ही यह फ़िल्म मुझसे बनवाई!" ऐसा उन्होंने मुझे एक मुलाकात में भावुक होते कहा था!) उन्होंने इसकी पटकथा लिखी थी और इसमें सूत्रधार भक्त की भूमिका भी की। हिंदी सिनेमा के नामचीन कलाकारों ने इसमें समर्पित भाव से अपनी शिरकत की थी! अशोक भूषण जी ने इसका निर्देशन किया था और इसमें बाबा की प्रमुख भूमिका सुधीर दलवी जी ने लाजवाब निभाई थी! मराठी फ़िल्म से जाने गए पांडुरंग दीक्षित जी ने इस फ़िल्म को भी संगीत दिया। इसमें रफ़ी साहब के धार्मिक सौहार्दता से भरे गानें दिल को छू गए। यह फ़िल्म पहले से बहुत कामयाब रही और इससे उनकी महिमा का बड़ा प्रभाव समाज पर पड़ा!

इन फ़िल्मों के बाद उनका प्रभाव और भी कुछ फ़िल्मों में दिखाई दिया। जैसे की जानेमाने सेक्युलर फ़िल्मकार मनमोहन देसाई जी की फ़िल्म 'अमर अकबर अन्थोनी' (१९७७) में उनपर फ़िल्माया गीत "शिरडी वाले साई बाबा.." जो रफ़ी साहब ने ही गाया था और ऋषि कपूर जी ने बख़ूबी सादर किया था। इसकी दो पंक्तियाँ अब के हालातों पर समर्पक हैं..
"ये ग़म की रातें..रातें ये काली..
इनको बना दे ईद और दीवाली.!"


ख़ैर, सर्व धर्म समभाव की प्रेरणास्रोत की दृष्टी से इसे देख सकतें हैं!!


- मनोज कुलकर्णी

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