Saturday, 17 August 2019

"एक शहेनशाह ने बनवा के हसीन ताजमहल.."
'लीडर' (१९६४) के इस गाने में वैजयंतीमाला और दिलीपकुमार.
एक शहेनशाहने बनवाके हसीन ताजमहल
सारी दुनियाको मोहब्बत की निशानी दी है

हमारे सिनेमा के रूपहले परदे पर आया मेरा सबसे पसंदीदा रूमानी नग़मा.. जिसे अदाकारी के शहेनशाह दिलीपकुमार जी के साथ उसी रूमानीयत से साकार किया था..ख़ूबसूरत वैजयंतीमाला जी ने!

नृत्यकुशल अदाकारी की अपने भारतीय सिनेमा की ख़ूबसूरत 'आम्रपाली'.. वैजयंतीमाला जी का ८३ वा जनमदिन हाल ही में हुआ! इस समय मुझे उनकी दिलीपकुमार के साथ हीट जोड़ीवाली फ़िल्मे याद आयी।
'नया दौर' (१९५७) में वैजयंतीमाला और दिलीपकुमार.

कुछ नीजि वजह से मलिका-ए-हुस्न.. मधुबाला फ़िल्म 'नया दौर' (१९५७) में दिलीप कुमार के साथ काम नही कर सकी तो इसके फ़िल्मकार बी. आर. चोपड़ा ने उसकी जगह लिया वैजयंतीमाला को!..
और उनकी जोड़ी दर्शकों को पसंद आयी!

'देवदास' (१९५५) में दिलीपकुमार और वैजयंतीमाला.
हालांकि इससे पहले वैजयंतीमाला ने बिमल रॉय की अभिजात फ़िल्म 'देवदास' (१९५५) में दिलीपकुमार के साथ काम किया था; लेकिन उसकी प्रमुख नायिका थी सुचित्रा सेन!..इस पारो ने छोड़ जाने पर इस देवदास दिलीपकुमार का ख़याल रखनेवाली चंद्रमुखी के किरदार में वैजयंतीमाला ने जैसे जान डाली थी।

उसीका नतीजा हुआ की (अपनी मधुबाला नहीं तो) दिलीपकुमार ने 'नया दौर' के लिए वैजयंतीमाला को ही अपनी प्रमुख नायिका के रूप में चुन लिया! गौरतलब था की पूरी नायिका के इर्द-गिर्द घुमनेवाली ऋत्विक घटक ने लिखी बिमल रॉय की 'मधुमती' (१९५८) इस पुनर्जन्म पर आधारित फ़िल्म में भी दिलीपकुमार उसके नायक के रूप में आने में हिचकिचाएं नहीं।

'मधुमती' (१९५८) फ़िल्म में दिलीपकुमार और वैजयंतीमाला.

इसके बाद एस. एस. वासन की सोशल फ़िल्म 'पैग़ाम' (१९५९) में भी दिलीपकुमार और वैजयंतीमाला ने साथ में जबरदस्त भूमिकाएं निभायी। फिर, जब दिलीपकुमार ने अपनी फ़िल्म 'गंगा जमुना' (१९६१) का निर्माण किया, तब अन्याय के विरुद्ध लढ़नेवाले उसके नायक की प्यारी धन्नो वैजयंतीमाला ही हुई!

'गंगा जमुना' (१९६१) में वैजयंतीमाला और दिलीपकुमार.
इसके बाद ताजमहल पर चित्रित उपर के गाने की.. (रानी मुखर्जी के पिता) राम मुख़र्जी ने बनायी 'लीडर' (१९६४) में दिलीपकुमार और वैजयंतीमाला की रूमानीयत रंग लायी। 
इसके बाद महाश्वेता देवी ने लिखी एच. एस. रवैल की फ़िल्म 'संघर्ष' (१९६८) में उन्होंने आख़री बार साथ में काम किया!

इसके कुछ दशकों बाद..चार साल पहले दिलीपकुमार जी की ऑटोबायोग्राफी रिलीज़ के बंबई में हुए शानदार समारोह में वैजयंतीमाला ख़ासकर  पधारी थी। तब बड़े पैमाने पर इकट्ठा हुई अपने सिनेमा की जानीमानी हस्तियों में..वहां मौज़ूद मेरी निगाहें उनके भाव देख रही थी! ग्रुप फोटो में कुछ फ़ासला रखकर वह खड़ी थी! यूसुफ़ ख़ान साहब (दिलीपकुमार) तो ख़ैर कुछ कह नहीं पा रहे थे; लेकिन वैजयंतीमाला जी की नम हुई आँखे बहोत कुछ कह रही थी!

इन दोनों को शुभकामनाएँ!!

- मनोज कुलकर्णी

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