Wednesday 7 August 2019

भारतीय सिनेमा की चित्रलेखा!


'चित्रलेखा' (१९६४) में ख़ूबसूरत मीना कुमारी!


'साहिब बीबी और ग़ुलाम' (१९६२) में  मीना कुमारी!
"इन चार दीवारों में मेरा दम घुटता हैं.." ऐसा नवाबी शौहर (रहमान) को कहनेवाली 'साहिब बीबी और ग़ुलाम' (१९६२) की छोटी बहु हो,

'चित्रलेखा' (१९६४) में मीनाकुमारी और अशोक कुमार!
"ये भोग भी एक तपस्या हैं..तुम त्याग के मारे क्या जानो.." ऐसा जोगी (अशोक कुमार) को सुनानेवाली 'चित्रलेखा' (१९६४) नर्तकी हो,-


'पाक़ीज़ा' (१९७२) में मीनाकुमारी!
या "इन्ही लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा.." ऐसा कोठे पर आए उमरावों की तरफ़ इशारा करती 'पाक़ीज़ा' (१९७२) की साहिबजान हो!

ऐसे कई मुख़्तलिफ़ क़िरदार अपने सशक्त अभिनय से जीवित करनेवाली..महजबीं बानो याने की अपने- भारतीय सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा मीना कुमारी! उनकी आवाज़ में एक तरह का कंप था..दरअसल वो स्त्री की अंतर संवेदना को लेकर आती आवाज़ थी!

'कोहीनूर' (१९६०) में दिलीपकुमार और मीनाकुमारी!
'परिणीता (१९५३) और 'शारदा' (५७) जैसी उनकी कई व्यक्तिरेखाएं स्त्री की मानसिक अवस्था को सिर्फ़ आँखों के गहरे भाव के जरिये व्यक्त करती गयी! इसी के साथ अपना तनहापन बख़ूबी बयां करनेवाली वह अच्छी शायरा भी थी!


अपने सिनेमा के दिलीपकुमार ट्रैजेडी किंग तो मीनाकुमारी ट्रैजेडी क्वीन थी! दोनों को एक ही फ्रेम में देखना लाजवाब था!.. इसीलिए शायद 'कोहीनूर' (१९६०) में "दो सितारों का ज़मी पर हैं मिलन.." उनके लिए लिखा गया होगा!

ऐसा कहा जाएं की स्त्री चरित्र को अपने रूपहले परदे पर सबसे प्रभावी तरीकेसे साकार करनेवाली अपने भारतीय सिनेमा की मीना कुमारी वाकई में ख़ूबसूरत चित्रलेखा थी!

उनका ८६ वा जनमदिन हाल ही में हुआ! उन्हें मेरी सुमनांजली!!

- मनोज कुलकर्णी

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