अलविदा!!
बुज़ुर्ग और अज़ीज़ संगीतकार..ख़य्याम साहब चले गए!
मुझे लगता हैं नौशाद साहब के बाद (दरबारी संगीत आम को खुला करके) सूरों पर राज करनेवाले..मौसिक़ी की दुनिया के जैसे आख़री शहेनशाह यह जहाँ छोड़ गए!
अब मौसिक़ी का माहौल उन्ही के ".ये ज़मीं चुप हैं..आसमाँ चुप हैं." नग़मे जैसा ख़ामोश है!
मुझे याद आ रही है उनसे हुई मुलाकातें..!
उन्हें मेरी सुमनांजली!!
- मनोज कुलकर्णी
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