Sunday 18 August 2019

आदमी मुसाफीर हैं..!

जानेमाने फ़िल्मकार जे. ओम प्रकाश जी!

'आया सावन झुमके' ऐसे फिल्म शीर्षक से रूपहले परदे पर रूमानीयत लानेवाले जानेमाने फ़िल्मकार जे. ओम प्रकाश जी का इसी मौसम में यह जहाँ छोड़ कर जाना बेचैन कर देता हैं!

जे. ओम प्रकाश जी की फ़िल्म 'आया सावन झुमके' (१९६९) में धर्मेंद्र और आशा पारेख!
आजादीसे पहले सियालकोट (अब सरहद के उस तरफ़) में जन्मे जे. ओम प्रकाश स्कूल-कॉलेज के दिनों में नाटकों में हॉर्मोनियंम से संगीत दिया करते थे। तब वहाँ के मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और क़तील शिफ़ाई उनके दोस्त थे और उनके मुशायरें सुनकर उर्दू से ओम जी को ख़ास लगाव हुआ! बाद में लाहौर में वह फ़िल्म डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी में मैनेजर बने और पार्टीशन के बाद बम्बई आएं!


'आयी मिलन की बेला' (१९६४) में ख़ूबसूरत सायरा बानू और ज्युबिली स्टार राजेंद्र कुमार!
यहाँ आने के बाद जे. ओम प्रकाशजीने अपनी प्रॉडक्शन कंपनी 'फ़िल्मयुग' स्थापित की और १९६० में फ़िल्म 'आस का पंछी' का निर्माण किया, जिसे मोहन कुमार जी ने लिखा और निर्देशित किया था! ज्युबिली स्टार राजेंद्र कुमार और वैजयंती माला अभिनीत यह फ़िल्म हिट रही। 

इसके बाद १९६४ में उनसे निर्मित की मोहन कुमार निर्देशित फ़िल्म 'आयी मिलन की बेला' फिरसे राजेंद्र कुमार को ही नायक लेकर आयी और नायिका थी ख़ूबसूरत सायरा बानू! इस म्यूजिकल हिट फिल्म के गाने हसरत जयपुरी और शैलेन्द्र जी ने लिखें थे, तथा संगीत दिया था शंकर-जयकिशन ने..जिसमे "ओ सनम तेरे हो गए हम.." जैसे मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर जी ने गाएं गीत यादगार रहें!

अभिनेता दामाद राकेश रोषन और बेटी पिंकी जी के साथ फ़िल्मकार जे. ओम प्रकाश जी!
'अ' अद्याक्षर से शुरू हुआ अपना यह फ़िल्म निर्माण का सफ़र ओम जी ने फिर उसी के साथ अपने शीर्षक ऱखकर बरक़रार रखा। इसमें १९६६ में उनसे निर्मित 'आये दिन बहार के' इस फ़िल्म का निर्देशन किया था रघुनाथ जालानी ने और नायक-नायिका थे धर्मेंद्र और आशा पारेख! इस सफल फ़िल्म के संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और वहीं कलाकार जोड़ी को लेकर १९६९ में उन्होंने 'आया सावन झुमके' यह हिट रोमैंटिक म्यूजिकल दी!

१९७२ में आयी अपनी फ़ील्म 'आँखों आँखों में' से ओम जी निर्देशक भी हुए। इस फ़िल्म में उन्होंने राकेश रोषन को हीरो बनाया..जो बाद में उनका (बेटी पिंकी का पति) दामाद हुआ! इसके बाद १९७४ में सुपरस्टार राजेश खन्ना को मुमताज़ और संजीव कुमार के साथ पेश कर के उन्होंने एक अनोखे प्लॉट के जरिये 'आप की क़सम' यह फ़िल्म बनायी। शक से पति-पत्नी के रिश्ते में पड़ा दरार "करवटें बदलतें रहें सारी रात हम.." इस आनंद बक्शी जी ने लिखे इसके शीर्षक गीत से ख़ूब व्यक्त हुआ; तथा इसका आर. डी. बर्मन का संगीत भी हिट रहा!
जे. ओम प्रकाश जी की फ़िल्म 'आप की क़सम' (१९७४) में 
मुमताज़, संजीव कुमार और सुपरस्टार राजेश खन्ना!

फिर १९७५ में ओम जी ने बहुचर्चित (या वादग्रस्त) फ़िल्म 'आँधी' का निर्माण किया। तत्कालिन राजनीति की पृष्ठभूमी पर फैमिली कॉन्फ्लिक्ट को उजागर करती इस फ़िल्म को कमलेश्वर जी ने लिखा था और गुलज़ार जी ने संवेदनशीलता से निर्देशित किया था। सुचित्रा सेन और संजीव कुमार ने इसमें अपने क़िरदार बेहतरीन ढंग से निभाएं थे। इसके बाद १९७७ में उन्होंने जितेंद्र को लेकर 'अपनापन' और राजेश खन्ना को लेकर 'आशिक़ हूँ बहारों का' ऐसी फ़िल्मे बनायीं!

जे. ओम प्रकाश जी की फ़िल्म 'आशा' (१९८०) में जितेंद्र, रीना रॉय और रामेश्वरी!

१९८० में आयी उनकी फ़िल्म 'आशा' ब्लॉक बस्टर रही। जितेंद्र और रामेश्वरी के साथ रीना रॉय को महत्वपूर्ण क़िरदार में पेश करती (राम केळकर लिखित) यह त्रिकोणीय प्रेम कथा की फ़िल्म दर्शकों के दिल को छू गयी! लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के सुरेल संगीत में लता मंगेशकर जी ने गाया इसका "शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता हैं.." मशहूर हुआ! 


इस जैसी ओम जी की फ़िल्मे साउथ में रीमेक हुई; तथा 'आसरा प्यार दा' (१९८३) ऐसी पंजाबी फ़िल्मे भी उन्होंने निर्देशित की!

बाद में जितेंद्र, रीना रॉय और परवीन बाबी को लेकर आयी 'अर्पण' (१९८३) जैसी उनकी त्रिकोणीय प्रेम की फ़िल्मे आयी। इसमें 'आखिर क्यों?' (१९८५) में तो स्मिता पाटील ने भी राजेश खन्ना और टीना मुनीम के साथ सशक्त क़िरदार निभाया!

दिग्गज फ़िल्मकार जे. ओम प्रकाश जी अपनी पत्नि, बेटी, दामाद..
राकेश रोषन और पोता हृतिक रोषन सहित पूरे परिवार के साथ!
१९८६ में उनके दामाद अभिनेता राकेश रोषन ने निर्माण की 'भगवान दादा' इस अलग किस्म की फ़िल्म का निर्देशन भी ओम जी ने किया। इस फ़िल्म की एक ख़ास बात यह भी थी की उनका पोता (राकेश जी का लड़का) हृतिक रोषन इसमें पहली बार परदे पर छोटी भूमिका में दिखाई दिया! फिर चौदह साल बाद आयी फ़िल्म 'कहो ना प्यार है' से वह स्टार बना!

२००१ में आयी उनकी फ़िल्म 'अफ़साना दिलवालों का' तक ओम जी कार्यरत थे! उनकी फ़िल्मों को 'फ़िल्मफ़ेअर' जैसे सम्मान मिले। १९९५-९६ में वह 'फ़िल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया' के अध्यक्ष थे। बाद में
२००४ में 'एशियन गिल्ड ऑफ़ लंदन' ने उन्हें 'लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से नवाज़ा!

वह गुज़र जाने के बाद उनकी फ़िल्म 'अपनापन' का गीत मेरे मन में गुँजा..

"आदमी मुसाफीर हैं.."

उन्हें मेरी यह आदरांजली!!


- मनोज कुलकर्णी

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