Tuesday 31 March 2020

काश यह हक़ीक़त में होता!



'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) के फिल्मांकन के दरमियान की यह दुर्लभ तस्वीर है। इसमें सलीम की भूमिका करनेवाले दिलीप कुमार सेट पर बैठी अनारकली साकार करनेवाली मधुबाला को अंगूठी देते नज़र आतें हैं!

अपने अभिनय सम्राट युसूफ खान याने दिलीप कुमार और मलिका-ए-हुस्न मुमताज़ जहाँ याने मधुबाला का निकाह होगा ऐसा उस समय के उनके चाहनेवालों को लगा था; क्योंकि उसकी वजह भी थी! १९५० के दशक में 'तराना', 'संगदिल' और 'अमर' जैसी रूमानी फिल्मों में उनका प्यार बड़ी उत्कटता से उभर रहा था। मिसाल की तौरपर 'तराना' के "नैन मिले नैन हुए बावरें." और 'संगदिल' के "दिल में समां गए सजन." प्रेमगीत, या मेहबूब खान की 'अमर' में उनके भावदृश्य देखें।

अब दिग्गज फ़िल्मकार के. असिफ ने 'मुग़ल-ए-आज़म' इस अपनी भव्य प्रेमकाव्य चित्रकृति में सलीम - अनारकली की भूमिकाओं में दिलीप कुमार - मधुबाला के प्यार को शाही अंदाज़ में पेश किया! इसका.. उनका बाग़ में खिलता प्रेमदृश्य देखिएं..जिसके पार्श्वभूमी पर (तानसेन की गायकी के लिए) खास बड़े ग़ुलाम - अली ख़ान की "प्रेम जोगन बन के.." यह तान इस्तेमाल की हैं। फिर अनारकली के गाल पर रेशमी पंख हल्कासा सरकाता सलीम नज़र आता हैं..इस रूमानीपन में दोनों के चेहरें पर प्यार असल में नज़र आया था। (अपने भारतीय सिनेमा के इतिहास में यह मेरा सबसे पसंदीदा प्रेमदृश्य हैं!)

यही बात आप अनारकली के "प्यार किया तो डरना क्या.." इस नृत्य में भी प्रभावी तरीके से देख सकतें हैं..जिसके - आखिर में अनारकली जब कहती हैं...
"छुप ना सकेगा इश्क़ हमारा
चारों तरफ हैं उनका नज़ारा." 
तब महल के सभी शीशों में उनका प्यार गुँजता हैं! 

ख़ैर, इतनी मोहब्बत होते हुए भी, इन दोनों की शादी हो न पायी..जिसकी वजह मधुबाला के परिवार - (वालिद) की नागवारी कही गयी! इसलिए यह तस्वीर देखकर दिलीप कुमार-मधुबाला जोड़ी के चाहनेवाले शीर्षक में कहा वोही सोचेंगे!

- मनोज कुलकर्णी

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