Thursday 13 May 2021

समानांतर सिनेमा के बहुआयामी संगीतकार!


दिग्गज संगीतकार वनराज भाटिया!

समानांतर सिनेमा तथा टीवी धारावाहिक को अपने यथार्थ धुनों से और गहरा बनानेवाले दिग्गज संगीतकार वनराज भाटिया जी यह जहाँ छोड़ गएँ।

श्याम बेनेगल की फ़िल्म 'मंथन' (१९७६) के समूह दृश्य में स्मिता पाटील!
समानांतर सिनेमा अपने सोशल इश्यूज, रीयलिस्टिक सिनेमैटिक ट्रीटमेंट और स्वाभाविक अभिनय पर ज्यादातर ध्यान देता हैं। लेकिन भाटिया जी के संगीत ने हमेशा उसमें सपोर्टिव किरदार असरदार निभाया। मिसाल की तौर पर जानेमाने फ़िल्मकार श्याम बेनेगल की फ़िल्म 'मंथन' की शुरुआत (टायटल्स) में बैकग्राउंड पर आता "मेरो गाम काठा पारे.." यह प्रीती सागर ने गाया गीत, जिसमें इस का माहौल और विषय की तुरंत पहचान होती है। यह फोल्क गानेवाली प्रीती ने ही उनके संगीत में शशी कपूर की फ़िल्म 'कलयुग' (१९८१) में वेस्टर्न जॉनर का "क्या है तेरा गम बता, व्हाट्स यूअर प्रॉब्लम.." क्लब सॉन्ग ख़ूबसूरती से गाया। फिर गोविंद निहलानी की टीवी धारावाहिक 'तमस' (१९८७) में उनका बैकग्राउंड म्यूजिक मुल्क के बटवारे के समय का दर्द बयां करता गया।

ख़ूबसूरत गायिका प्रीती सागर.
उम्र के शुरूआती दौर में वनराज भाटिया वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक में दिलचस्पी रखते थे; लेकिन उन्होंने हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक की भी बाकायदा तालीम ली। लंदन की 'रॉयल अकैडमी ऑफ म्यूजिक' से सीखकर १९५९ में जब वे लौटे, तब भारत में विज्ञापनों को संगीत देनेवाले वे पहले थे! उनके 'लिरिल' और 'गार्डन वरेली' जैसे विज्ञापन हिट हुएं। इसमें उन्होंने काफ़ी प्रयोग किएँ। 

१९६३ में पहली बार 'मर्चेंट-आइवरी प्रोडक्शन' की अंग्रेजी फ़िल्म 'दी हाउसहोल्डर' का बैकग्राउंड म्यूजिक भाटियाजी ने किया। इसके दस साल बाद १९७४ में श्याम बेनेगल की डेब्यू फ़िल्म 'अंकुर' का संगीत देने का मौका उन्हें मिला। दरमियान वे वृत्तचित्रों को म्यूजिक देते रहें। जिसमें 'ए सिटी इन हिस्ट्री' (१९६६) और '१००२ ए डी खजुराहो' (१९७३) जैसी डाक्यूमेंट्रीज थी। 'अंकुर' और बेनेगल की अगली 'निशांत' (१९७५) इन सामाजिक फिल्मों में दबें किरदारों के जज़्बातों को भाटिया जी की संगीत ने और गहरा बना दिया। फिर 'भूमिका' (१९७६) इस मराठी सिनेमा की गुज़रे ज़माने की अभिनेत्री हंसा वाडकर के जीवन पर बनी फ़िल्म में स्मिता पाटील का नृत्याभिनय उनके संगीत के साथ बयां होता गया! इसमें प्रीती ने ही गाया "तुम्हारे बीन जी न लगे.." लाजवाब रहा!

संगीतकार वनराज भाटिया और फ़िल्मकार श्याम बेनेगल म्यूजिक रिहर्सल करतें!
इसके बाद मशहूर अभिनेता शशी कपूर ने उनकी प्रोडक्शन की कलात्मक तथा ऑफ-बीट फिल्मों का संगीत उन्हें करने को दिया। जिसमें थी 'जूनून' (१९७९), जेनिफर कपूर - अभिनीत '३६ चौरिंघी लेन' और 'कलयुग' (१९८१). फिर अपने इंडियन न्यू वेव सिनेमा में भी वनराज भाटिया का - संगीत आता रहा। इसमें कुंदन शाह की 'जाने भी दो यारों (१९८३), सईद अख़्तर मिर्ज़ा की 'मोहन जोशी हाजिर हो' (१९८४) जैसी सटैरिक और कुमार शाहनी की 'तरंग' (१९८४), विजय मेहता निर्देशित 'पेस्तोनजी' (१९८७) जैसी फ़िल्मे थी। दरमियान वे टेलीविज़न की तरफ़ भी मुड़े। दूरदर्शन के.. 'ख़ानदान' (१९८५), 'यात्रा' (१९८६) और पंडित नेहरूजी की किताब 'डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' पर बनी 'भारत एक खोज' (१९८८) इन धारावाहिकों को उन्होंने संगीत दिया।

गोविंद निहलानी की 'तमस' (१९८७) के यथार्थवादी दृश्य में दीपा साही और ओम पूरी
आगे भाटिया जी ने 'मोहरे' (१९८७) जैसी मेनस्ट्रीम कमर्शियल फ़िल्म्स को भी संगीत देना शुरू किया। तो 'बेटा' (१९९२) और 'दामिनी' (१९९३) जैसी को बैकग्राउंड म्यूजिक! साथ ही केतन मेहता की इंडियन हिस्ट्री में से बायो- ग्राफिकल 'सरदार' (१९९३) और गोविन्द निहलानी की समकालीन 'द्रोहकाल' (१९९४) का भी संगीत उन्होंने किया। आखिर तक दोनों जॉनर्स की फ़िल्मे वे करतें रहें, जिसमें.. एक तरफ था बेनेगल की 'हरी भरी' (२०००) का संगीत तो दूसरी तरफ करीना कपूर स्टार्रर 'चमेली' (२००३) का बैकग्राउंड स्कोअर!

वनराज भाटिया जी ने संगीत दी हुई पैरेलल फ़िल्म्स नेशनल अवार्ड्स विनर्स ही रहीं। उनको निहलानी की फ़िल्म 'तमस' (१९८९) के लिए यह पुरस्कार मिला।..और २०१२ में अपने भारत सरकार से वे 'पद्मश्री' से सम्मानित हुए।

उन्हें मेरी सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

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