भारतीय सिनेमा: एक्सक्लूजिव्ह!
सरस्वतीबाई फालके का पति के साथ बड़ा योगदान!
३ मई,१९१३ को प्रदर्शित 'राजा हरिश्चंद्र' इस अपनी पहली भारतीय फीचर फ़िल्म का दृश्य! |
इस से एक साल पहले अपने कैमरा और निर्मिति प्रक्रिया को जाँचने के लिए फालके जी ने कुछ दृश्यं फिल्माएं, जैसे की बच्चों का खेलना! फिर फीचर फ़िल्म बनाने के लिए फाइनेंसर प्राप्त करने हेतु उन्होंने एक लघु फ़िल्म का प्रयोग किया। इसमें एक पॉट में उन्होंने मटर का बीज लगाया और उसके सामने कैमरा रख कर क़रीब महीने तक रोज उसके उगने की एक फ्रेम वे लेते रहे। और वह शॉर्ट एक्सपेरिमेंटल फ़िल्म बनी, जिसका मराठी शीर्षक था 'अंकुराची वाढ' (ग्रोथ ऑफ ए मटर प्लांट) इसमें सरस्वतीबाई जी ने उनका साथ दिया। फ़िल्म का डेव्हलपिंग और परफोरेटिंग भी दादासाहब ने उन्हें सिखाया था।
'राजा हरिश्चंद्र' ( १९१३) फ़िल्म के मनोरम दृश्य में दत्तात्रय दाबके (हरिश्चंद्र) और अन्ना सालुंके (तारामती) |
'राजा हरिश्चंद्र' (१९१३) फ़िल्म को कैमरामन त्र्यम्बक तेलंग के साथ चित्रित करते दादासाहब फालके! |
'राजा हरिश्चंद्र' (१९१३) फ़िल्म के अहम दृश्य में अन्ना सालुंके (तारामती), - दत्तात्रय दाबके (हरिश्चंद्र), भालचंद्र फालके (रोहितश्व) और अन्य कलाकार! |
"एक सफल पुरुष के पीछे एक महिला होती है"!
अपने भारतीय सिनेमा क्षेत्र का सर्वोच्च 'दादासाहब फालके - पुरस्कार' उन के नाम को.. समर्पित हैं। सरस्वतीबाई जी के नाम का भी एक पुरस्कार शायद है!
ख़ैर दादासाहब फालके जी को 'भारतरत्न' सम्मान बहाल करना चाहिए यह हम कई सालों से कह/लिख रहे हैं।
अब ऐसा कहा जाए की दादासाहब और सरस्वतीबाई जी संयुक्त रूप से इससे सम्मानित हो!
सरस्वतीबाई जिन्हे तब आदर से "काकी" कहतें थे, उनको और दादासाहब फालके को इस अवसर पर मेरा विनम्र अभिवादन!!
- मनोज कुलकर्णी
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