Monday 3 May 2021

भारतीय सिनेमा: एक्सक्लूजिव्ह!


सरस्वतीबाई फालके का पति के साथ बड़ा योगदान!

अपने भारतीय सिनेमा के पितामह दादासाहब फालके और उनकी पत्नी सरस्वतीबाई!

आज ३ मई..इसी दिन १९१३ में 'राजा हरिश्चंद्र' यह अपनी पहली भारतीय फीचर फ़िल्म दर्शकों के लिए प्रदर्शित हुई।

३ मई,१९१३ को प्रदर्शित 'राजा हरिश्चंद्र' इस अपनी पहली भारतीय फीचर फ़िल्म का दृश्य!
दादासाहब फालके जी ने बड़ी शिद्दत से इसका निर्माण किया था। इस नतीजे पर आने तक के उनके चलचित्र प्रयास पर पहले बहुत लिखा है। लेकिन आम तौर पर एक अहम बात नज़रअंदाज़ की जाती हैं की, इस जद्दोजहद में उनकी पत्नी सरस्वतीबाई जी का योगदान बराबर का रहा!

इस से एक साल पहले अपने कैमरा और निर्मिति प्रक्रिया को जाँचने के लिए फालके जी ने कुछ दृश्यं फिल्माएं, जैसे की बच्चों का खेलना! फिर फीचर फ़िल्म बनाने के लिए फाइनेंसर प्राप्त करने हेतु उन्होंने एक लघु फ़िल्म का प्रयोग किया। इसमें एक पॉट में उन्होंने मटर का बीज लगाया और उसके सामने कैमरा रख कर क़रीब महीने तक रोज उसके उगने की एक फ्रेम वे लेते रहे। और वह शॉर्ट एक्सपेरिमेंटल फ़िल्म बनी, जिसका मराठी शीर्षक था 'अंकुराची वाढ' (ग्रोथ ऑफ ए मटर प्लांट) इसमें सरस्वतीबाई जी ने उनका साथ दिया। फ़िल्म का डेव्हलपिंग और परफोरेटिंग भी दादासाहब ने उन्हें सिखाया था।
 
'राजा हरिश्चंद्र' ( १९१३) फ़िल्म के मनोरम दृश्य में दत्तात्रय दाबके  (हरिश्चंद्र) और अन्ना सालुंके (तारामती)
उसके बाद राजा हरिश्चंद्र के जीवन पर उन्होंने फीचर - फ़िल्म का सोचा, तब उसके लिए बड़ी रकम खड़ी करने के लिए सरस्वतीबाईजी ने अपने गहनें तक बेचें! बग़ैर इसके यह फ़िल्म प्रोडक्शन होता ही नहीं! फिर दादासाहब इस की स्क्रिप्ट राइटिंग में रोज उनसे चर्चा करते थे और वो भी इस प्रक्रिया में योगदान देती थी। बाद में फ़िल्म की कास्टिंग में दादासाहब के सामने बड़ा - प्रश्न था तारामती की भूमिका कौन करेगी; क्योंकि तब कोई स्त्री सिनेमा के लिए काम करे यह संभव नहीं था। इसके लिए भी उन्होंने सरस्वतीबाई जी को पूछा; लेकिन उन्होंने इसे मना किया; क्योंकि उन्हें बाकी जिम्मेदारियाँ संभालनी थी।

'राजा हरिश्चंद्र' (१९१३) फ़िल्म को कैमरामन त्र्यम्बक तेलंग के साथ चित्रित करते दादासाहब फालके!
इसके बाद 'राजा हरिश्चंद्र' के फिल्मांकन दौरान दादासाहब और कैमरामन को उसके - प्लेसिंग और रिफ्लेक्टर आदी में सरस्वतीबाई जी सहकार्य करती थी। साथ ही काम कर रहें सभी लोगों की भोजन और कपड़ों की व्यवस्था वो देखती थी।
फिर पोस्ट प्रोडक्शन में उन्होंने अपना योगदान दिया। इसमें फ़िल्म डेव्हलपिंग और मिक्सिंग के साथ एडिटिंग भी शामिल थी। परफोरेटिंग होकर फ़िल्म प्रोजेक्टर पर जाने तक!

'राजा हरिश्चंद्र' (१९१३) फ़िल्म के अहम दृश्य में अन्ना सालुंके (तारामती), -
दत्तात्रय दाबके (हरिश्चंद्र), भालचंद्र फालके (रोहितश्व) और अन्य कलाकार!

तो इसी तरह दादासाहब - फालके ने बनाई 'राजा - हरिश्चंद्र' यह अपनी पहली भारतीय फीचर फ़िल्म की निर्मिति में उनकी पत्नी.. सरस्वतीबाई जी का अमूल्य योगदान रहा। कहतें ही हैं..
"एक सफल पुरुष के पीछे एक महिला होती है"!

अपने भारतीय सिनेमा क्षेत्र का सर्वोच्च 'दादासाहब फालके - पुरस्कार' उन के नाम को.. समर्पित हैं। सरस्वतीबाई जी के नाम का भी एक पुरस्कार शायद है!

ख़ैर दादासाहब फालके जी को 'भारतरत्न' सम्मान बहाल करना चाहिए यह हम कई सालों से कह/लिख रहे हैं।
अब ऐसा कहा जाए की दादासाहब और सरस्वतीबाई जी संयुक्त रूप से इससे सम्मानित हो!

सरस्वतीबाई जिन्हे तब आदर से "काकी" कहतें थे, उनको और दादासाहब फालके को इस अवसर पर मेरा विनम्र अभिवादन!!
 
- मनोज कुलकर्णी

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