Saturday 22 May 2021

मरहूम शायर हसरत मोहानी जी!
 
"चुपके चुपके रात दिन..
आँसू बहाना याद है..
हमको अब तक आशिक़ी का 
वो ज़माना याद है.."

यह मशहूर रूमानी ग़ज़ल - लिखनेवाले शायर हसरत - मोहानी जी को यह जहाँ छोड़ कर इस महिने में ७० साल हो गएँ!

 
'निकाह' (१९८२) फ़िल्म के उस ग़ज़ल में दीपक पराशर और 
पाकिस्तानी ख़ूबसूरत अभिनेत्री-गायिका सलमा आगा!

उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के मोहन क़स्बे में जन्मे उनका असल में नाम था..सय्यद - फ़ज़ल-उल-हसन...तख़ल्लुस हसरत मोहानी! उर्दू के वे बड़े साहित्यकार तथा विद्वान - मौलाना थे और स्वतंत्रता - संग्राम में भी उन्होंने योगदान दिया था।

'निकाह' (१९८२) इस बी. आर. चोपड़ा की फ़िल्म से उनकी वह ग़ज़ल मशहूर हुई थी।
हालांकि इस फ़िल्म के सभी गानें यहाँ हसन कमाल जी ने लिखें थें और रवि जी ने उन्हें संगीतबद्ध किया था। सिर्फ वह ग़ज़ल पाकिस्तानी गायक गुलाम अली जी ने स्वरबद्ध करके अलग से गायी हुई थी! इसे - फ़िल्म में दीपक पराशर और पाकिस्तानी ख़ूबसूरत अभिनेत्री-गायिका सलमा आगा पर संजीदा तरीके से फ़िल्माया गया था।

पाकिस्तानी ग़ज़ल गायक गुलाम अली जी!
इसके बाद ग़ज़ल गायक गुलाम अली जी ने अपने भारत में भी बड़ी मक़बूलियत हासिल की। यहाँ पुणे में भी वे तशरीफ़ लाए थे और उनकी महफ़िल मैंने रुबरु सुनी थी। उनकी लाजवाब गायकी और उस शायराना माहौल पर मैंने यहाँ बहुत पहले लिखा भी हैं।

ख़ैर, जवानी की दहलीज़ पर का..हमको भी आशिक़ी का वो ज़माना याद है..!

हसरत मोहानी साहब को सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

No comments:

Post a Comment