आज के संजीदा दौर में यह ग़ज़ल गायी जा रही है, लेकिन शायद ही इसके शायर का तआरुफ़ कोई - कराते हो!
यह लिखनेवाले थे पाकिस्तानी उर्दू कवी अब्दुल - हमीद अदम, जिनका जनमदिन पिछले महिने में था। वे नज़्म, रुबाइयत भी लिखतें थें।
उनकी ऊपर की ग़ज़ल जगजीत सिंह जी ने - बेहतरीन गायी हैं।
उनकी तरह ही एक और शायर का तआरुफ़ शायद ही आम तौर पर हो। हालांकि, उनकी रूमानी नज़्म "आज जाने की ज़िद न करो.." यहाँ बहुत मशहूर है। वो भी थे पाकिस्तानी उर्दू कवी फ़य्याज़ - हाशमी! उनके बारे में मैंने यहाँ पहले लिखा भी है।
वैसे उनकी यह नज़्म वहां फरिदा खानुम जी ने लाजवाब गायी हैं।
ऐसी नज़्म और ग़ज़ल गातें समय उनके शायरों का ज़िक्र भी हो!
- मनोज कुलकर्णी
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