Friday 27 July 2018

कवि-गीतकार गोपालदास सक्सेना तथा 'नीरज' जी!

'प्रेम पुजारी'..नीरज!



- मनोज कुलकर्णी 

 

"फुलों के रंग से.. 
दिल की कलम से.." 

ऐसा रूमानी लिखनेवाले नीरज जी यह जहाँ छोड़ जाने की खबर आने के बाद ऐसे उनके कई नग़में कान में गुँजे!

'प्रेमपुजारी' (१९७०) के "शोखियों में घोला जाये फूलों का शबाब."  
गाने मे वहिदा रहमान और देव आनंद!
उत्तर प्रदेश में इटावा के महेवा में जन्में गोपालदास सक्सेना ने नीरज नाम से कविता करना शुरू किया! तब अलीगढ़ के 'धर्म समाज कॉलेज' में वह हिंदी साहित्य के अध्यापक थे!

'कन्यादान' (१९६८) के रफ़ीजी ने गाए "लिखें जो ख़त तुझे." 
गाने में आशा पारेख और शशी कपूर!
जल्द ही नीरज की कविताएं हिंदी फिल्मों में बहरनें लगी..उनके गीतों में सरल हिंदी भाषा का उपयोग होता था. उनके गीतों को ज्यादा तर..संगीतकार सचिन देव बर्मन जी ने फिल्मों में मशहूर किया..जैसे की किशोर कुमार ने गाए.. उपर का 'प्रेमपुजारी' (१९७०) का और 'शर्मिली' (१९७१) का "खिलतें हैं गुल यहाँ.."  वैसे (शंकर-जयकिशन में से) संगीतकार जयकिशन जी ने भी बड़े अच्छे गाने उनसे लिए..जैसे की 'कन्यादान' (१९६८) का मोहम्मद रफ़ी जी ने गाया "लिखें जो ख़त तुझे.." 

'शर्मिली' (१९७१) के "खिलतें हैं गुल यहाँ." 
 गाने मे राखी और शशी कपूर!
नीरज जी को तीन बार 'सर्वश्रेष्ठ गीतकार' का 'फ़िल्मफ़ेअर' पुरस्कार मिला, जिसमें थे..१९७० में 'चंदा और बिजली' का मन्ना डे ने गाया "काल का पहिया घूमे रे भइया..", १९७१ में मनोज कुमार के 'पहचान' का मुकेश ने गाया "आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ.." और १९७२ में राज कपूर के 'मेरा नाम जोकर' का मन्ना डे ने ही गाया "ए भाई जरा देख के चलो.."

'मेरा नाम जोकर' के "ए भाई जरा देख के चलो." गाने में राज कपूर
नीरज जी का फिल्मों के लिए गीत लेखन सीमित ही रहा; लेकिन कवि सम्मेलनों में नीरज जी का अच्छा-खासा सहभाग रहता था! अध्यापन से लगाव होने के कारन वह अलीगढ के 'मंगलायतन यूनिवर्सिटी' के कुलाधिपति भी रहें!



नीरज जी को १९९१ में 'पद्मश्री' और २००७ में 'पद्मभूषण' ख़िताब से नवाज़ा गया!

अब उनका ही 'नई उमर की नई फ़सल' (१९६५) का रफ़ी जी ने गाया यह गाना दर्द भरे दिल में है .. 

"स्वप्न झरे फूल से..मीत चुभे शूल से 
लूट गए सिंगार सभी बाग़ के बबूल से 
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे.. 
कारवाँ गुज़र गया..गुबार देखते रहे!

उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजली!!


- मनोज कुलकर्णी 
 ['चित्रसृष्टि', पुणे]

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