विशेष लेख:
'आवारा' से 'संजु'...गुमराह 'रईस' सिनेमा!
- मनोज कुलकर्णी
इस साल आयी फिल्म 'रईस' में शाहरुख़ खान का..गलत धंदा करनेवाला किरदार..जो वास्तव में एक गुनहगार पर आधारित था..यह जोश से कहता हैं।.. देखकर बड़ा खेद हुआ और मुश्किल से पूरी फिल्म देख पाया।
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त 'परज़ानिया' (२००५) जैसी समकालिन वास्तवदर्शी फिल्म बनानेवाले राहुल ढोलकिया ने 'रईस' जैसी बाजारू फिल्म का निर्देशन करना..और शाहरुख़ जैसे अच्छे कलाकार ने इसमें ऐसा किरदार निभाना यह कतई गवारा नहीं हुआ!..'यह क्रिमिनल को ग्लोरिफ़ाई करना तो नहीं' ऐसे सवाल समाजमन में उठना लाज़मी था!
आज हिट हो रही 'संजु' फिल्म से उठे "बिगड़ी ज़िन्दगी को क्यों दिखाना" ऐसे बवाल ने इस पर प्रकाश डालना जरुरी हो गया। हालांकि मैंने अभी तक यह फिल्म देखी नहीं है और 'खलनायक' (१९९३) फेम संजय दत्त की जीवन पर कोई टिपण्णी भी करना नहीं चाहता। लेकिन ऐसी फिल्मों की चली आ रही फिल्मों की परंपरा पर यहाँ लिख रहां हूँ...
फिल्म 'काला बाजार' (१९६०) में देव आनंद! |
इसके बाद १९६० में 'नवकेतन' की गोल्डी (विजय आनंद) ने निर्देशित की हुई फिल्म 'काला बाजार' में..पिक्चर्स की टिकटों का काला बाजार करनेवाले राह भटके आदमी का किरदार देव आनंद ने किया था..जो वहिदा रहमान की रूप से उसकी ज़िन्दगी में प्यार आने के बाद बदलने की कोशिश करता हैं!
वैसे अमरीकन या कहा जाए तो 'हॉलीवुड' की कमर्शियल फार्मूला फिल्में गुनहगारी विश्व को पहले उजागर करने लगी..उनकी शुरुआत की 'द ग्रेट ट्रेन रॉबरी' (१९०३) से! बाद में मारिओ पूजो की कादंबरी पर मशहूर फ़िल्मकार फ्रांसिस फोर्ड कोप्पोला ने बनायी 'गॉडफादर' (१९७२) में क्रिमिनल फॅमिली द्वारा पुरे माफिया जगत को परदे पर दर्शाया! इस माइलस्टोन फिल्म में मंजे हुए अभिनेता मार्लोन ब्रांडो और अल पचिनो नें ऐसे किरदार निभाएं!
उस हिट फिल्म 'गॉडफादर' से प्रेरित हो कर फ़िरोज़ खान ने १९७५ में 'धर्मात्मा' यह बॉलीवुड फिल्म बनायी..जिसमें उसने और प्रेमनाथ नें वह किरदार बखूबी निभाएं! इसी साल अपने सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की सुपरहिट फिल्म 'दीवार'आयी..जानेमाने फ़िल्मकार यश चोपड़ा की यह अलग जॉनर की फिल्म थी। ऐसा कहा गया की यह किरदार बम्बई के उस वक्त के डॉन पर आधारित था! हालांकि दो अलग रास्तें चुने भाइयों के बीच खड़ी माँ और परिवार पर हुए अत्याचार का बदला लेने वाला 'एंग्री यंग मैन' ही इसमें दिखायी दिया!
मराठी फिल्म 'माफीचा साक्षीदार' (१९८६). |
हिंदी फिल्मों के अलावा प्रादेशिक फिल्मों में भी कुछ गुनहगार किरदार नजर आएं। इसमें पहली थी..सत्य घटना पर आधारित मराठी 'माफीचा साक्षीदार' (१९८६)..इसमें पुणे में हुए हत्याकांड के दोषिओं को किरदार बनाये गएँ थे और प्रमुख भूमिका की थी..नाना पाटेकर ने! प्रदर्शन पूर्व सेंसोर बोर्ड और माध्यमों के अनेक सवालों में यह फिल्म घेरी रहीं। इसके बाद आयी मणि रत्नम की तमिल फिल्म 'नायकन' (१९८७) भी एक माफिया के जीवन पर थी और इसमें दाक्षिणात्य मंजे हुए अभिनेता कमल हसन ने वह किरदार निभाया था!
उस 'नायकन' पर फिरोज खान ने हिंदी में 'दयावान' (१९८८) फिल्म बनायी.. जिसमे विनोद खन्ना ने वह किरदार उसी ढंग में निभाया! बाद में आयी राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'कंपनी' (२००२) तो बम्बई के अंडरवर्ल्ड वॉर को ही उजागर कर गयी..जिसमें अजय देवगन और विवेक ओबेरॉय ने वह किरदार निभाएं थे। फिर बॉलीवुड में ऐसी 'गैंगस्टर' फ़िल्में लगातार आती रहीं हैं!
दुनिया का काला सच या कहाँ जाए तो बुरे लोगों के काले धंदे और गुनाह परदे पर दिखाना..इसका उद्देश उस वास्तव से समाज को वाकिफ करना और जानकारी देकर सावध करना हो तो ठीक हैं; लेकिन ऐसे बिगड़े, बुरे कर्म करनेवालों को सिनेमा के जरिये उजागर करके पैसे कमाना सरासर गलत हैं। (यह किसी पर व्यक्तिगत टिपण्णी नहीं)..आखिर फिल्मकारों का समाज के प्रति कुछ तो दायित्व हैं और समाज की जिम्मेदारी भी हैं। इसलिए सिनेमा इस प्रभावी माध्यम को सोच-समझ कर हैंडल करना चाहिएं!
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]
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