Monday 9 August 2021

एक्सक्लुजिव्ह!


युद्ध की पृष्ठभूमि पर देवसाहब के दो पहलू!


'हम दोनों' (१९६१) में नंदा और साधना के साथ दोहरी भूमिकाओं में देव आनंद!

हिरोशिमा-नागासाकी त्रासदी को ७५ साल होने के इन दिनों में युद्ध की पृष्ठभूमि पर कुछ फ़िल्में मुझे याद आयीं। इसमें दूसरे विश्व युद्ध के माहौल में कुछ जिंगोइस्टिक थी; तो कुछ चंद अलग पहलुओं को उजागर करती!

फ़िल्म 'हम दोनों' (१९६१) में देव आनंद!

 

इस विषय को लेकर दिग्गज फ़िल्मकार चेतन आनंद जी ने - ('हक़ीक़त'/१९६४ जैसी) अच्छी चित्रकृतियां बनायीं। लेकिन उनके दूसरे भाई सदाबहार अभिनेता-फ़िल्मकार देव आनंद जी की इस संदर्भ में बनी दो फ़िल्मों की तरफ़ रुख करे तो, इसमें उनकी - मुख़्तलिफ़ भूमिकाएं नज़र आती हैं। ये उनकी 'नवकेतन फ़िल्म्स' की निर्मिति थी!

फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' (१९७०) में देव आनंद और वहीदा रहमान!

 

पहली है १९६१ में बनी फ़िल्म 'हम दोनों' जो देव आनंद निर्मित थी और अमरजीत नाम निर्देशक के तौर पर आया था। हालांकि देव साहब का कहना था की उनके छोटे भाई - गोल्डी याने की विजय आनंद ने यह फ़िल्म लिखी और निर्देशित भी की! इस में उन्होंने दोहरी भूमिकाएं बख़ूबी निभाई थी। दूसरे - विश्व युद्ध के दौर में ही, कैंप पर एक मेजर और दूसरा नया आर्मी सिपाही ऐसे ये दो - हमशक्ल मिलतें हैं और फिर कहानी अलग मोड़ लेती है। ये दोनों युद्ध के प्रति समर्पित होतें हैं! फ्रंट पर घायल मेजर लापता होने पर दूसरा उसके परिवार को (एक तरफ़ अपनी महबूबा के साथ) भावनिक स्तर पर संभाल लेता हैं। इसमें अभिनेत्रियां नंदा और साधना उनके साथ थी।

फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' (१९७०) में देव आनंद!


 

दूसरी है १९७० में बनी फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' जो देव आनंद ने खुद लिखकर निर्देशित भी की थी। इसमें इंडो-चायना सीमा पर युद्ध के दौरान भेजे गए लेफ्टिनेंट की भूमिका उन्होंने की थी। दरअसल यह शांतताप्रिय और प्रकृति - वन्यजीवन में रूचि रखनेवाला होता है, लेकिन आर्मी में रहें पिता की इच्छा के ख़ातिर उसे फ्रंट पर जाना पड़ता है। नतीजन वो लड़ने से नापसंदी दर्शाता है; लेकिन.. आख़िर में देश के लिए जान की बाजी लगाता हैं! वैसे यह शख़्स "फूलों के रंग से दिल की कलम से तुझ को लिखी." ऐसे अपनी महबूबा (वहीदा रहमान) के प्यार में खोने - वाला रोमैंटिक दर्शाया है! जिसके लिए नीरज जी ने ऐसे रूमानी गीत लिखें थे।

ख़ैर, इस 'प्रेम पुजारी' का 'जंग नहीं प्यार' यह संदेसा नज़रअंदाज़ किया गया। वैसे 'हम दोनों' में भी उन्होंने महात्मा गाँधी जी के “ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम” भजन से प्रेरित साहिर का गीत पिरोया था..जिस में "निर्बल को बल देनेवाले, बलवानों को दे दे ज्ञान.." ऐसा विश्वशांति का आशय था!

बहरहाल, हम भी शांति और प्यार का विश्व चाहतें है!!

- मनोज कुलकर्णी

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