ऐसा लिखनेवाले मरहूम शायर साहिर लुधियानवी जी ने वाकई इस तरह अपना शुरूआती जीवन जिया था। इसीलिए यथार्थवाद उनके गीतों का एक अहम पहलू रहा।
हालांकि वे (असल में नाम.. अब्दुल हयी) लुधियाना के एक जमीनदार परिवार में पैदा हुए थे। लेकिन कहा गया हैं की.. उनके अय्याश पिता की वजह से उनकी माँ सरदार बेगम को उन्हें छोड़ना पड़ा था!
तब कम उम्र के इस अब्दुल ने माँ के साथ रहना ही कुबूल - किया।..और बाद में 'साहिर' नाम से..जो महसूस करते आए थे वही लिखते गए।
माँ की तकलीफ़ें साहिर जी ने देखी। इसीलिए उनका दर्द कलम से इस तरह बयां हुआ..
यशोदा की हमजिंस राधा की बेटी
पयंबर की उम्मत ज़ुलेख़ा की बेटी
पयंबर की उम्मत ज़ुलेख़ा की बेटी
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं"
बाद में गुरुदत्त की फ़िल्म 'प्यासा' (१९५७) की "जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं.." नज़्म में यह इस्तेमाल हुआ।
माँ के साये में उनकी बेहद फ़िक्र करते रहे.. साहिर जी ने आख़िर तक हमेशा उनको अपने सिर आँखों पर बिठाकर रखा था।
उनके जन्मशताब्दी साल में यह याद आया!
उनके इस मातृप्रेम को सलाम!!
- मनोज कुलकर्णी
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