Friday 27 August 2021

एक्सक्लुजिव्ह:

"लागी नाहीं छूटे.."



अपने भारतीय सिनेमा के जानेमाने फ़िल्मकार हृषिकेश मुख़र्जी और ट्रैजेडी किंग यूसुफ़ ख़ान याने दिलीपकुमार जी की साथ में (ऊपर की) दुर्लभ तस्वीर..

'मुसाफ़िर' (१९५७) फ़िल्म के संजीदा किरदार में दिलीपकुमार और उषा किरण!
हृषिकेश मुख़र्जी की फिल्म.. 'आनंद' (१९७१) के सेट पर
जब ये दोनों मिले तब की हैं। हालांकि दिलीपकुमार जी ने उसमे भूमिका नहीं निभाई। शायद तब वे अपनी ट्रैजेडी इमेज से बाहर आना चाहते थे इसलिए! लेकिन हृषिदा के मन में शायद वे होंगे।

दिलीपकुमार जी ने हृषिकेश- मुख़र्जी को (जो पहले श्रेष्ठ फ़िल्मकार बिमल रॉय के असिस्टेंट थे) स्वतंत्र रूप से निर्देशन करने के लिए प्रवृत्त किया..और १९५७ में 'मुसाफ़िर' यह अपनी पहली फ़िल्म उन्होंने निर्देशित की। इसकी कहानी तीन परिवारों की थी जो उन्होंने संवेदनशील फ़िल्मकार ऋत्विक घटक के साथ लिखी। इसके एक भाग में दिलीपकुमार जी ने अपनी मराठी अभिनेत्री उषा किरण के साथ बड़ा संजीदा किरदार निभाया था
 
'मुसाफ़िर' (१९५७) फ़िल्म का गीत "लागी नाहीं छूटे.."
लता मंगेशकर जी के साथ गाते दिलीपकुमार जी!
उस 'मुसाफ़िर' की एक और विशेषता थी (जो कम लोग जानतें हैं) की इसमें दिलीप कुमार जी ने गाया भी! शैलेन्द्र जी ने लिखा "लागी नाहीं छूटे." यह दर्दभरा गीत सलिल चौधरी के संगीत में लता मंगेशकर जी के साथ उन्होंने बहुत ख़ूब गाया। हालांकि इससे पहले बिमलदा की फ़िल्म 'देवदास' (१९५५) में कोठे के फेमस सीन से पहले वे जो गुनगुनाएं थे वो रागदारी से कम न था। उनकी उसी आवाज़ की ख़ूबी को- हृषिदा ने तराशा! बाद में.. उनकी आवाज़ में 'मुसाफ़िर' जैसी नज़्म सुनने को नहीं मिली। उन्होंने अपना पूरा तवज्जोह अभिनय पर दिया!

आज हृषिदा का १५ वा स्मृतिदिन है और यूसुफ़ साहब हाल ही में इस जहाँ से रुख़सत हुए!

दोनों को सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

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