Sunday 22 August 2021

रक्षा बंधन और परदे के यथार्थ भाई-बहन!


भारतीय हिंदी फ़िल्म 'बूट पोलिश' (१९५४) में रतन कुमार और बेबी नाज़!

भाई बहन के प्यार को उजागर करनेवाले 'रक्षा बंधन' त्यौहार पर वैसे तो काफी फ़िल्मी प्रसंग एवं गानें याद आते हैं, जिनपर मैंने पहले लिखा भी! आज दो ऐसी फिल्मों का ज़िक्र कर रहा हूँ..जिनमें प्रतिकूल सामाजिक एवं पारिवारिक परिस्थिति में भाई-बहन का बर्ताव बड़ा समझदार रहां हैं।..और इन दोनों पर इतालवी नव- यथार्थवाद का प्रभाव था।

'बूट पोलिश' (१९५४) के "नन्हें मुन्नें बच्चें.." गाने में  बेबी नाज़, रतन कुमार और डेविड!
पहली है अपनी भारतीय हिंदी 'बूट पोलिश' (१९५४) जो वैसे तो 'आरके' निर्मित थी लेकिन इसे निर्देशित किया था प्रकाश अरोड़ा ने! हालांकि इसका मूल 'इटालियन निओ-रियलिज़्म' के एक प्रवर्तक विट्टोरिओ दी सिका की फिल्म 'शू शाइन' (१९४६) ही था!
..पारिवारिक विपरीत परिस्थिति के कारन बेघर हुएं भाई-बहन किस तरह अपना गुजारा खुद करतें यह 'बूट पोलिश' में यथार्थ दर्शाया गया। इसमें रतन कुमार और बेबी नाज़ ने बड़े समझदारी से अपने किरदार निभाएं। जिसमें "..मुठ्ठी में है तक़दीर हमारी, हमने किस्मत को बस में किया है.." ऐसा जज़्बा वे गाने में दिखातें हैं। सिनेमैटोग्राफर तारा दत्त ने इस फ़िल्म को बड़ी वास्तवता से चित्रित किया था, जिसके लिए उन्हें यहाँ 'फ़िल्मफेयर' पुरस्कार भी मिला। बाहर 'कैन्स फिल्म फेस्टिवल' में यह फ़िल्म दिखाई गई और 'उत्कृष्ट - बालकलाकार' का सम्मान नाज़ को मिला!

इरानियन फ़िल्म 'चिल्ड्रेन ऑफ हेवन' (१९९७) में आमिर फ़र्रुख हशेमियन और बहारे सिद्दीक़ी!
दूसरी है इरानियन समकालीन फ़िल्म 'चिल्ड्रेन ऑफ हेवन' (बच्चा-ये आसमाँ/ १९९७) जिसे वहां के संवेदनशील फ़िल्मकार माजिद मजीदी ने निर्देशित किया था। इसमें - साधारण पारिवारिक स्थिति में स्कुल जा रहे समझदार बच्चे है। इसमें जब बहन का जूता नाले में बह जाता है तब पैरेंट्स के डर से उसे दूसरी जोड़ी - दिलवाने भाई कई गतिविधियोँ से गुजरता है। आमिर फ़र्रुख हशेमियन और बहारे सिद्दीक़ी ने ये भूमिकाएं बड़ी समझदारी से निभाई। इसे वास्तवता से चित्रित करने हेतु इस का फ़िल्मांकन सिनेमैटोग्राफर परवीज़ मालिकज़ादे द्वारा गुप्तता से किया गया था! 'ऑस्कर' के 'बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फ़िल्म' के लिए यह नामांकित हुई थी!

इन दोनों फिल्मों के भाई-बहन दिल को छू लेतें हैं!!

- मनोज कुलकर्णी

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