Tuesday, 31 August 2021


'ज्ञानपीठ' प्राप्त पंजाबी भाषा की मशहूर प्रगतिशील लेखिका एवं कवयित्री अमृता प्रीतम जी का आज १०२ वा जनमदिन!

याद आ रही है तीस साल पहले उनसे हुई मुलाक़ात!

उन्हें सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Friday, 27 August 2021

एक्सक्लुजिव्ह:

"लागी नाहीं छूटे.."



अपने भारतीय सिनेमा के जानेमाने फ़िल्मकार हृषिकेश मुख़र्जी और ट्रैजेडी किंग यूसुफ़ ख़ान याने दिलीपकुमार जी की साथ में (ऊपर की) दुर्लभ तस्वीर..

'मुसाफ़िर' (१९५७) फ़िल्म के संजीदा किरदार में दिलीपकुमार और उषा किरण!
हृषिकेश मुख़र्जी की फिल्म.. 'आनंद' (१९७१) के सेट पर
जब ये दोनों मिले तब की हैं। हालांकि दिलीपकुमार जी ने उसमे भूमिका नहीं निभाई। शायद तब वे अपनी ट्रैजेडी इमेज से बाहर आना चाहते थे इसलिए! लेकिन हृषिदा के मन में शायद वे होंगे।

दिलीपकुमार जी ने हृषिकेश- मुख़र्जी को (जो पहले श्रेष्ठ फ़िल्मकार बिमल रॉय के असिस्टेंट थे) स्वतंत्र रूप से निर्देशन करने के लिए प्रवृत्त किया..और १९५७ में 'मुसाफ़िर' यह अपनी पहली फ़िल्म उन्होंने निर्देशित की। इसकी कहानी तीन परिवारों की थी जो उन्होंने संवेदनशील फ़िल्मकार ऋत्विक घटक के साथ लिखी। इसके एक भाग में दिलीपकुमार जी ने अपनी मराठी अभिनेत्री उषा किरण के साथ बड़ा संजीदा किरदार निभाया था
 
'मुसाफ़िर' (१९५७) फ़िल्म का गीत "लागी नाहीं छूटे.."
लता मंगेशकर जी के साथ गाते दिलीपकुमार जी!
उस 'मुसाफ़िर' की एक और विशेषता थी (जो कम लोग जानतें हैं) की इसमें दिलीप कुमार जी ने गाया भी! शैलेन्द्र जी ने लिखा "लागी नाहीं छूटे." यह दर्दभरा गीत सलिल चौधरी के संगीत में लता मंगेशकर जी के साथ उन्होंने बहुत ख़ूब गाया। हालांकि इससे पहले बिमलदा की फ़िल्म 'देवदास' (१९५५) में कोठे के फेमस सीन से पहले वे जो गुनगुनाएं थे वो रागदारी से कम न था। उनकी उसी आवाज़ की ख़ूबी को- हृषिदा ने तराशा! बाद में.. उनकी आवाज़ में 'मुसाफ़िर' जैसी नज़्म सुनने को नहीं मिली। उन्होंने अपना पूरा तवज्जोह अभिनय पर दिया!

आज हृषिदा का १५ वा स्मृतिदिन है और यूसुफ़ साहब हाल ही में इस जहाँ से रुख़सत हुए!

दोनों को सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Monday, 23 August 2021

इम्बेरसिंग मोमेंट्स!


ख़ूबसूरत सोनम कपूर!

"आंटी-अंकल" पुकारनेवालों में शायद रिसपेक्ट की भावना होती हैं; लेकिन सुननेवालें सभी वह पसंद करते हैं ऐसा नहीं।

'ताल' (१९९९) फ़िल्म में ऐश्वर्या राय और अनिल कपूर!
ऐसा ही एक वाकया बंबई के (पार्टी फेमस)
मेरे फिल्म - जर्नलिस्ट फ्रेंड ने बताया था। 'किसी फंक्शन में हमारी - ख़ूबसूरत सोनम कपूर ने एक ज़माने की मिस वर्ल्ड ऐश्वर्या राय को जोर से आवाज दी.. "ऐश्वर्या आंटी s " और ऐश को वह बहुत इम्बेरसिंग लगा!'

हालांकि वह नैचरल था। सोनम के पापा अनिल कपूर 'ताल' (१९९९) फ़िल्म में - ऐश्वर्या के नायक थे और तब टीनएज सोनम ने उसे ऐसे ही पुकारा होगा! पर अब यंग स्टार सोनम जब उसे "आंटीs" पुकारती है तो उसे ठीक नहीं लगा; शायद उम्र का अहसास हुआ रहेगा!

अभिनेता अभिषेक बच्चन और फ़िल्मकार करन जोहर!
 
ऐसा और एक वाकया था जिसमें ऐश का पति अभिनेता अभिषेक बच्चन और फ़िल्मकार करन जोहर को एक फंक्शन में "अंकलs" पुकारा गया था! तब मालुम हुआ की करन ने अभिषेक को कहा "अब बच्चे 'दादाजी' पुकार ने से पहले निकलो!"

 
- मनोज कुलकर्णी

Sunday, 22 August 2021

रक्षा बंधन और परदे के यथार्थ भाई-बहन!


भारतीय हिंदी फ़िल्म 'बूट पोलिश' (१९५४) में रतन कुमार और बेबी नाज़!

भाई बहन के प्यार को उजागर करनेवाले 'रक्षा बंधन' त्यौहार पर वैसे तो काफी फ़िल्मी प्रसंग एवं गानें याद आते हैं, जिनपर मैंने पहले लिखा भी! आज दो ऐसी फिल्मों का ज़िक्र कर रहा हूँ..जिनमें प्रतिकूल सामाजिक एवं पारिवारिक परिस्थिति में भाई-बहन का बर्ताव बड़ा समझदार रहां हैं।..और इन दोनों पर इतालवी नव- यथार्थवाद का प्रभाव था।

'बूट पोलिश' (१९५४) के "नन्हें मुन्नें बच्चें.." गाने में  बेबी नाज़, रतन कुमार और डेविड!
पहली है अपनी भारतीय हिंदी 'बूट पोलिश' (१९५४) जो वैसे तो 'आरके' निर्मित थी लेकिन इसे निर्देशित किया था प्रकाश अरोड़ा ने! हालांकि इसका मूल 'इटालियन निओ-रियलिज़्म' के एक प्रवर्तक विट्टोरिओ दी सिका की फिल्म 'शू शाइन' (१९४६) ही था!
..पारिवारिक विपरीत परिस्थिति के कारन बेघर हुएं भाई-बहन किस तरह अपना गुजारा खुद करतें यह 'बूट पोलिश' में यथार्थ दर्शाया गया। इसमें रतन कुमार और बेबी नाज़ ने बड़े समझदारी से अपने किरदार निभाएं। जिसमें "..मुठ्ठी में है तक़दीर हमारी, हमने किस्मत को बस में किया है.." ऐसा जज़्बा वे गाने में दिखातें हैं। सिनेमैटोग्राफर तारा दत्त ने इस फ़िल्म को बड़ी वास्तवता से चित्रित किया था, जिसके लिए उन्हें यहाँ 'फ़िल्मफेयर' पुरस्कार भी मिला। बाहर 'कैन्स फिल्म फेस्टिवल' में यह फ़िल्म दिखाई गई और 'उत्कृष्ट - बालकलाकार' का सम्मान नाज़ को मिला!

इरानियन फ़िल्म 'चिल्ड्रेन ऑफ हेवन' (१९९७) में आमिर फ़र्रुख हशेमियन और बहारे सिद्दीक़ी!
दूसरी है इरानियन समकालीन फ़िल्म 'चिल्ड्रेन ऑफ हेवन' (बच्चा-ये आसमाँ/ १९९७) जिसे वहां के संवेदनशील फ़िल्मकार माजिद मजीदी ने निर्देशित किया था। इसमें - साधारण पारिवारिक स्थिति में स्कुल जा रहे समझदार बच्चे है। इसमें जब बहन का जूता नाले में बह जाता है तब पैरेंट्स के डर से उसे दूसरी जोड़ी - दिलवाने भाई कई गतिविधियोँ से गुजरता है। आमिर फ़र्रुख हशेमियन और बहारे सिद्दीक़ी ने ये भूमिकाएं बड़ी समझदारी से निभाई। इसे वास्तवता से चित्रित करने हेतु इस का फ़िल्मांकन सिनेमैटोग्राफर परवीज़ मालिकज़ादे द्वारा गुप्तता से किया गया था! 'ऑस्कर' के 'बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फ़िल्म' के लिए यह नामांकित हुई थी!

इन दोनों फिल्मों के भाई-बहन दिल को छू लेतें हैं!!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday, 19 August 2021

"ऐ मेरे प्यारे वतन..
ऐ मेरे बिछड़े चमन.."

'काबुलीवाला' फ़िल्म का यह संजीदा गाना अब याद आया!

शायद वहाँ अवाम की यह मानसिकता हो!!

रहम!!!🙏

- मनोज कुलकर्णी

एल्विस प्रेस्ली और शम्मी कपूर!


एल्विस प्रेस्ली और शम्मी कपूर...लुक सिमिलॅरिटी!

हॉलीवुड के 'किंग ऑफ़ रॉक एंड रोल' डांसिंग स्टार एल्विस प्रेस्ली (१६ अगस्त) और अपने भारतीय.. रूमानी सिनेमा के 'रिबेल स्टार' शम्मी कपूर (१४ अगस्त) इनका स्मृतिदिन आगेपीछे आना यह महज़ एक इत्तिफ़ाक़ नहीं!

एल्विस प्रेस्ली और शम्मी कपूर..डांसिंग स्टाइल सिमिलॅरिटी!
इसलिए की शम्मी कपूर जी को 'इंडियन एल्विस प्रेस्ली' मानते थे; क्यों कि उसी से मुतासिर उनका लुक-स्टाइल! हालांकि रोमैंटिक म्यूजिकल्स के लिए मशहूर फ़िल्मकार नासिर हुसैन जी ने अपनी सफल फिल्मों द्वारा शम्मी कपूर को उसकी "याहूs" रिबेल स्टार वाली हिट इमेज दी

ख़ैर, शम्मी कपूर जी से एक दफ़ा मेरी अच्छी बातचीत हुई थी। उसमें मैंने उन्हें पूछा.. "शम्मी साहब, एल्विस प्रेस्ली से आपकी स्टाइल इंस्पायर थी क्या?" तब उन्होंने कहाँ, "आय एडमायर्ड हिम ए लॉट, सो दैट वाज नैचरल!" इसीमें मैंने कहाँ "लेकिन नासिर हुसैन की फ़िल्मों से आप को वो हिट रोमैंटिक रिबेल स्टार की इमेज मिली!" उसपर हामी भरते वे बोले, "बिलकुल, नासिर जी का कंट्रीब्यूशन इसमें है!..एंड यु पीपल कॉल्ड मी 'रिबेल स्टार!"

तो इन दोनों को सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

Monday, 16 August 2021

गायिका जगजीत कौर जी!
"तुम अपना रंज-ओ-ग़म..
अपनी परेशानी मुझे दे दो.."

साहिर ने लिखी यह नज़्म 'शगुन' (१९६४) फ़िल्म के लिए अपने शौहर ख़य्याम जी की मौसीक़ी में गायी थी जगजीत कौर जी ने.. अब वे भी इस जहाँ से रुख़सत हुई!

मुझे याद है २००६ के दौरान अपने भारतीय बोलपट के ७५ साल पुरे होने पर बंबई में हुए समारोह में ख़य्यामजी और जगजीत कौरजी से मेरी मुलाकात हुई थी। मैंने मेरे 'चित्रसृष्टी' का संगीत विशेषांक उन्हें भेट दिया था। तब दोनों ने बड़े प्यार से मुझसे अपने संगीत के बारे में बात की थी!

ख़य्याम साहब और उनकी पत्नी-गायिका जगजीत कौर जी!
उसके कुछ साल बाद पुणे में हुए फ़िल्म फेस्टिवल (पिफ्फ़) में सम्मानित ख़य्याम जी से मेरी अच्छी बात हुई थी। मैंने 'जगजीत कौर जी ने गाया.. "तुम अपना रंज-ओ-ग़म" यह नग़्मा मेरा पसंदीदा है' ऐसा कहनेपर वे भावुक हो गए थे।

दो साल पहले ख़य्याम साहब ने इस जहाँ को अलविदा कहाँ! अब "..निगहबानी मुझे दे दो.." कहकर साये की तरह उनके साथ रहनेवाली उनकी पत्नी-गायिका जगजीत कौर जी भी कल रुख़सत हुई!

उन्हें मेरी सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday, 15 August 2021

जय हिंद!


अपने आदर्श भारत की बात वो करतें रहे
देशभक्ति का जज़्बा हम में यूँ जगातें रहें

- मनोज 'मानस रूमानी'

 
हमारे भारतीय सिनेमा के ज़रिये देशभक्ति को निरंतर उजागर करनेवाले दिग्गज.. अभिनेता एवं फ़िल्मकार मनोज कुमार जी का मेरे 'चित्रसृष्टी' विशेषांक के लिए इंटरव्यू लेते समय इस तरह प्यार पाया..जो आज के स्वतंत्रता दिन पर याद आता हैं।
उन्हें शुभकामनाएं!

- मनोज कुलकर्णी

जश्न-ए-आज़ादी मुबारक़!

मुकम्मल आज़ादी की आस लगाए बैठे हैं
खुलेपन से जहाँ जी सकें, व्यक्त हो सकें!

- मनोज 'मानस रूमानी'

Friday, 13 August 2021

चाँदनी..श्रीदेवी!


अपने लोकप्रिय भारतीय सिनेमा की ख़ूबसूरत अभिनेत्री श्रीदेवी जी का आज ५८ वा जनमदिन!
उनको याद करते मैंने यह लिखा..
 
चाँदनी थी आप आस्माँ से उतरी
बेनज़ीर थी आप जहाँ-ए-फ़न की

- मनोज 'मानस रूमानी'

उन्हें सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

ख़ूबसूरत अदाकारा वैजयंतीमाला..८५!


 
हमारे भारतीय सिनेमा के सुनहरे काल की ख़ूबसूरत नृत्यकुशल अदाकारा..वैजयंतीमाला जी का आज 
८५ वा जनमदिन! 
 

चंद्रमुखी सम सबको भा गयी आप
मधुमती सम मीठी महसूस हुई आप
अप्सरा सम आम्रपाली दिख गई आप
फूल बरसे वो सूरज की मेहबूब भी आप
 
- मनोज 'मानस रूमानी'
 
 
उनकी ख़ासियत को लेकर उन्हें मुबारकबाद देते मैंने यह लिखा!

- मनोज कुलकर्णी

 

पाक 'क्वीन ऑफ़ पॉप' नाज़िया हस्सन!


"आप जैसा कोई मेरी ज़िंदगी में आये तो बात बन जाए.."
१९८० के दशक में इस गाने ने धूम मचाई थी।


वह गानेवाली पाकिस्तानी ख़ूबसूरत 'क्वीन ऑफ़ पॉप' नाज़िया हस्सन का आज २१ वा स्मृतिदिन!
उन्हें सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी



Thursday, 12 August 2021

आज़ादी और हमारा स्वातंत्र्य!!



फ़िरंगीयोंसे हमारे देश को आज़ादी मिल कर ७५ साल होनेवालें हैं!
लेकिन अन्याय-अत्याचार करनेवाले अपने लोगोंसे कब छुटकारा मिलेगा?

कई घरों में अब भी आवाज़ें दबीं जाती है..एक के हुक़ूमत से बाकी को ठीक से रहना भी मुश्क़िल होता है!
समाज में भी क्या बोलना, कैसे ज़िंदगी जिना इस पर कई पाबंदियां है.!!

ऐसे में व्यक्ति स्वातंत्र्य और लेखन, कलाएं तथा चित्रपट आदी में अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए!!!

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday, 11 August 2021

सांप्रदायिकता और पाखंड के ख़िलाफ़
तख़्त हिलाती आवाज़ थे आप राहत!


- मनोज 'मानस रूमानी'


बुलंद शायर तथा गीतकार राहत इंदौरी जी को प्रथम स्मृतिदिन पर सलाम!

- मनोज कुलकर्णी

माया, पाक टीवी सीरियल्स और 'ज़िन्दगी' चैनल!


'पहली सी मोहब्बत' इस पाकिस्तानी टीवी सीरियल में ख़ूबसूरत अदाकारा माया अली!

पाक टीवी सीरियल 'कितनी गिरहें बाक़ी हैं' का दृश्य!
"मुझसे पहली सी मोहब्बत
मेरे मेहबूब न माँग.."

मरहूम शायर फैज़ अहमद फैज़ जी की यह मशहूर नज़्म

इसीके नाम से पाकिस्तान में टीवी सीरियल हैं जिसकी जानकारी उसमे अहम किरदार निभानेवाली (वहां की मेरी फेवरिट एक्ट्रेसेस में से) मशहूर माया अली ने अपने इंस्टाग्राम पर उसकी फोटो डालकर दी थी! 'आयड्रीम - एंटरटेनमेंट' के बैनर तले प्रोडूस इस धारावाहिक का निर्देशन अंजुम शहज़ाद ने किया हैं और 'एआरवाय - डिजिटल' पर यह प्रसारित हैं।

इस के ज़रिये माया अली कुछ अरसे बाद टेलीविज़न पर वापसी हुई हैं। क्योंकि वो फिल्मों में भूमिकाएं निभाने में मसरूफ़ रही। इस में उसकी अली ज़फर के साथ थ्रिलर 'तीफ़ा इन ट्रबल' (२०१८) और शहरयार मुनवर के साथ रोमैंटिक कॉमेडी 'परे हट लव' (२०१९) हिट रही ऐसा समझता हैं!
 
पाकिस्तानी टीवी सीरियल 'काश मैं तेरी बेटी ना होती' में..
सह कलाकारों के साथ जबरदस्त अदाकारा फ़ातिमा एफेन्दी!
२०१७ में 'हम टीवी' पर माया का आख़री टीवी ड्रामा 'सनम' अच्छा चला। इस में उसका - नायक था ओस्मान खालिद बट, जिसके साथ उसकी - शुरूआती 'एक नयी सिंड्रेला' और 'औन ज़ारा' (२०१३) इन रोमैंटिक कॉमेडी सीरियल्स में भी अच्छी जोड़ी जमी थी।

ख़ूबसूरत माया अली का असल में नाम हैं मरयम तनवीर - लेकिन अपने स्टेज नाम से वो जानी जाती हैं। उसके ज़ारा और बाद में 'लाडों में पली' (२०१४) की लारैब ये शोख़ किरदार मुझे तो बड़े प्यारे लगे!

पाक टीवी सीरियल 'लाडों में पली' में ख़ूबसूरत अदाकाराएं माया अली और सेजल अली
अपने को-एक्टर्स..अली अब्बास और अफ्फान वाहिद के साथ!
माया के साथ फ़ातिमा - एफेन्दी, उर्वा-मावरा हुसैन बहने और सेजल अली भी पाकिस्तानी टेलीविज़न की मशहूर अभिनेत्रियाँ हैं। इसके साथ अभिनेता दानिश तैमूर और आयेजा ख़ान ये मियां-बीवी भी! इनमें से मावरा और सेजल ने अपनी बॉलीवुड की फिल्मों में काम भी किया है।

वहां के ऐसे कलाकार और उनकी ख़ूबसूरत अदाकारी से हम यहाँ वाकिफ़ हुए 'ज़िन्दगी' चैनल से! सिर्फ आर्टिस्ट नहीं; उनकी अच्छी कंटेम्पररी सीरियल्स, रीयलिस्टिक कंटेंट, तांत्रिक एवं निर्मिति मूल्यों से भी..जो इस चैनल के ज़रिये हम तक पहुंचे..और सभी ने सराहें! अभी भी इसके कुछ अच्छे धारावाहिक याद हैं..जैसे की 'काश मैं तेरी बेटी ना होती', 'कितनी गिरहें बाक़ी हैं' और 'ज़िंदगी गुलज़ार हैं'!
 
पाक टीवी प्रोग्राम 'तेरी मेरी प्रेम कहानी' में मियां-बीवी..दानिश तैमूर और ख़ूबसूरत आयेजा ख़ान!
'ज़िन्दगी' चैनल लॉन्च के प्रेस कांफ्रेंस को मैं गया था। वैसे - 'ज़ी टीवी' से मेरा पुराना अच्छा जुड़ाव है, क्योंकि वहां मेरे - स्क्रिप्ट पर फिल्म बेस्ड - प्रोग्राम सादर हुआ हैं। ख़ैर, 'ज़िन्दगी' आने के बाद तो मैं (न्यूज़ चैनल्स के अलावा) जो भी सीरियल्स देखता था वे उसीपर। मेरा तो यह चैनल फेवरेट हुआ था!

फिर न जाने क्यूँ अचानक.. इसका टेलीकास्ट यहाँ बंद हो गया! लेकिन अच्छी खबर आयी की 'ज़ी एंटरटेनमेंट इंटरप्राइजेज ली.' ने फिर से उनके पसंदीदा 'ज़िन्दगी' चैनल शुरू करने की घोषणा की..अब 'ज़ी5' डिजिटल एंटरटेनमेंट प्लेटफार्म पर!

उन्हें और पाक टीवी कंटेंटस को मुबारक़बाद!!
यह देखने का बेसब्री से इंतज़ार हैं!!

- मनोज कुलकर्णी

Monday, 9 August 2021

एक्सक्लुजिव्ह!


युद्ध की पृष्ठभूमि पर देवसाहब के दो पहलू!


'हम दोनों' (१९६१) में नंदा और साधना के साथ दोहरी भूमिकाओं में देव आनंद!

हिरोशिमा-नागासाकी त्रासदी को ७५ साल होने के इन दिनों में युद्ध की पृष्ठभूमि पर कुछ फ़िल्में मुझे याद आयीं। इसमें दूसरे विश्व युद्ध के माहौल में कुछ जिंगोइस्टिक थी; तो कुछ चंद अलग पहलुओं को उजागर करती!

फ़िल्म 'हम दोनों' (१९६१) में देव आनंद!

 

इस विषय को लेकर दिग्गज फ़िल्मकार चेतन आनंद जी ने - ('हक़ीक़त'/१९६४ जैसी) अच्छी चित्रकृतियां बनायीं। लेकिन उनके दूसरे भाई सदाबहार अभिनेता-फ़िल्मकार देव आनंद जी की इस संदर्भ में बनी दो फ़िल्मों की तरफ़ रुख करे तो, इसमें उनकी - मुख़्तलिफ़ भूमिकाएं नज़र आती हैं। ये उनकी 'नवकेतन फ़िल्म्स' की निर्मिति थी!

फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' (१९७०) में देव आनंद और वहीदा रहमान!

 

पहली है १९६१ में बनी फ़िल्म 'हम दोनों' जो देव आनंद निर्मित थी और अमरजीत नाम निर्देशक के तौर पर आया था। हालांकि देव साहब का कहना था की उनके छोटे भाई - गोल्डी याने की विजय आनंद ने यह फ़िल्म लिखी और निर्देशित भी की! इस में उन्होंने दोहरी भूमिकाएं बख़ूबी निभाई थी। दूसरे - विश्व युद्ध के दौर में ही, कैंप पर एक मेजर और दूसरा नया आर्मी सिपाही ऐसे ये दो - हमशक्ल मिलतें हैं और फिर कहानी अलग मोड़ लेती है। ये दोनों युद्ध के प्रति समर्पित होतें हैं! फ्रंट पर घायल मेजर लापता होने पर दूसरा उसके परिवार को (एक तरफ़ अपनी महबूबा के साथ) भावनिक स्तर पर संभाल लेता हैं। इसमें अभिनेत्रियां नंदा और साधना उनके साथ थी।

फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' (१९७०) में देव आनंद!


 

दूसरी है १९७० में बनी फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' जो देव आनंद ने खुद लिखकर निर्देशित भी की थी। इसमें इंडो-चायना सीमा पर युद्ध के दौरान भेजे गए लेफ्टिनेंट की भूमिका उन्होंने की थी। दरअसल यह शांतताप्रिय और प्रकृति - वन्यजीवन में रूचि रखनेवाला होता है, लेकिन आर्मी में रहें पिता की इच्छा के ख़ातिर उसे फ्रंट पर जाना पड़ता है। नतीजन वो लड़ने से नापसंदी दर्शाता है; लेकिन.. आख़िर में देश के लिए जान की बाजी लगाता हैं! वैसे यह शख़्स "फूलों के रंग से दिल की कलम से तुझ को लिखी." ऐसे अपनी महबूबा (वहीदा रहमान) के प्यार में खोने - वाला रोमैंटिक दर्शाया है! जिसके लिए नीरज जी ने ऐसे रूमानी गीत लिखें थे।

ख़ैर, इस 'प्रेम पुजारी' का 'जंग नहीं प्यार' यह संदेसा नज़रअंदाज़ किया गया। वैसे 'हम दोनों' में भी उन्होंने महात्मा गाँधी जी के “ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम” भजन से प्रेरित साहिर का गीत पिरोया था..जिस में "निर्बल को बल देनेवाले, बलवानों को दे दे ज्ञान.." ऐसा विश्वशांति का आशय था!

बहरहाल, हम भी शांति और प्यार का विश्व चाहतें है!!

- मनोज कुलकर्णी

मेरी शायरी सोशल नेटवर्क (इंस्टा जैसे) पर किसी की तारीफ़ के लिए इस्तेमाल की देखकर ताज्जुब हुआ! लेकिन साथ में मेरे नाम का ज़िक्र न किया देख कर खेद हुआ।

- मनोज 'मानस रूमानी'
(मनोज कुलकर्णी)

Saturday, 7 August 2021

साहिर जी का श्रेष्ठ मातृप्रेम!



"अश्कों ने जो पाया है वो गीतों में दिया है"

ऐसा लिखनेवाले मरहूम शायर साहिर लुधियानवी जी ने वाकई इस तरह अपना शुरूआती जीवन जिया था। इसीलिए यथार्थवाद उनके गीतों का एक अहम पहलू रहा।

साहिर लुधियानवी अपनी माँ सरदार बेगम जी के साथ!
 
हालांकि वे (असल में नाम.. अब्दुल हयी) लुधियाना के एक जमीनदार परिवार में पैदा हुए थे। लेकिन कहा गया हैं की.. उनके अय्याश पिता की वजह से उनकी माँ सरदार बेगम को उन्हें छोड़ना पड़ा था!

 
तब कम उम्र के इस अब्दुल ने माँ के साथ रहना ही कुबूल - किया।..और बाद में 'साहिर' नाम से..जो महसूस करते आए थे वही लिखते गए।

 
 
 
 
माँ की तकलीफ़ें साहिर जी ने देखी। इसीलिए उनका दर्द कलम से इस तरह बयां हुआ..
 
 
"मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी
यशोदा की हमजिंस राधा की बेटी
पयंबर की उम्मत ज़ुलेख़ा की बेटी
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं"

 
बाद में गुरुदत्त की फ़िल्म 'प्यासा' (१९५७) की "जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं.." नज़्म में यह इस्तेमाल हुआ।

माँ जी को अपना लिखा हुआ गीत सुनाते साहिर लुधियानवी!
 
माँ के साये में उनकी बेहद फ़िक्र करते रहे.. साहिर जी ने आख़िर तक हमेशा उनको अपने सिर आँखों पर बिठाकर रखा था।

उनके जन्मशताब्दी साल में यह याद आया!

उनके इस मातृप्रेम को सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

श्रेष्ठ टैगोर जी की कविकल्पना!


'नोबेल' प्राप्त विश्वविख्यात साहित्यिक गुरु रबिन्द्रनाथ टैगोर!

"मैं दुनिया भर में घूमता रहा; लेकिन मेरे ही बगीचे में पेड़ के पत्ते पर पड़े पानी की बून्द में समाया जहाँ देखना भूल गया!"

ऐसा आशय अपने 'नोबेल' प्राप्त विश्वविख्यात साहित्यिक गुरु रबिन्द्रनाथ टैगोर के एक बंगाली - काव्यकृति में व्यक्त हुआ!

आज उनकी ८० वी पुण्यतिथि पर यह याद आया।
उन्हें विनम्र प्रणाम!

- मनोज कुलकर्णी

Friday, 6 August 2021


अब यह शीर्षक जहाँ स्वीकारा हुआ है..
ताज्जुब वहां चुंबन गवारा नहीं कहतें!


- मनोज 'मानस रूमानी'


समकालिन घटना के सन्दर्भ में लिखा!

- मनोज कुलकर्णी

अब ये केसरिया राजनीति खेल अवार्ड शुरू करें और इनके सब वह मेडल पहनें!

 
- मनोज कुलकर्णी

Wednesday, 4 August 2021

एक्सक्लुजिव्ह!

रफ़ी जी की आवाज़ में परदेपर किशोर कुमार!


हमारे अज़ीज़ श्रेष्ठ गायक मोहम्मद रफ़ी जी और गायक-अभिनेता किशोर कुमार जी!

गायक-अभिनेता किशोर कुमार जी का आज ९२ वा जनमदिन!

'शरारत' (१९५९) फ़िल्म के मोहम्मद रफ़ी जी ने गाए..
"अजब हैं दास्ताँ तेरी ये ज़िंदगी.." गाने में किशोर कुमार!
इस अवसर पर उनके लिए हमारे अज़ीज़ श्रेष्ठ गायक मोहम्मद रफ़ी जी ने गाएं दो गाने मुझे याद आएं।

पहला है 'रागिनी' (१९५८) फ़िल्म का "मन मोरा - बावरा.." यह क्लासिकल गीत जो किशोर कुमार ने परदे पर सितार लिए सादर किया था! जां निसार अख़्तर जी ने लिखा यह गीत ओ. पी. नय्यर जी के संगीत में रफ़ी साहब ने खास गाया था।

'रागिनी' (१९५८) फ़िल्म के मोहम्मद रफ़ी जी ने गाए।
"मन मोरा बावरा.." गीत में किशोर कुमार!

दूसरा है 'शरारत' (१९५९) फ़िल्म का "अजब हैं दास्ताँ - तेरी ये ज़िंदगी.." यह दर्दभरा गीत जो किशोर कुमार ने परदेपर ट्रैजेडी क्वीन मीना कुमारी के सामने दुखभरे भाव से साकार किया था! हसरत जयपुरी ने लिखा यह गीत शंकर-जयकिशन के संगीत में रफ़ी साहब ने ही गाया था।

मीठी रूमानी आवाज़ के साथ क्लासिकल और दर्दभरे गीत गाने में भी रफ़ी साहब माहिर थे। इसीलिए किशोर कुमार जी ने भी उनकी आवाज़ में परदे पर अभिनय - किया!


खैर, दोनों को आदरांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी