Wednesday 21 April 2021

एक्सक्लुजिव्ह!

 
गुरुदत्त चाहते थे 'प्यासा' दिलीपकुमार करे!

हमारे भारतीय सिनेमा के दो श्रेष्ठ कलाकार..दिलीप कुमार और गुरुदत्त!

'प्यासा' (१९५७) में गुरुदत्त, वहीदा रहमान और माला सिन्हा!
"ये दुनियाँ अगर मिल भी जाएं तो क्या हैं.."

अपने प्यार को खोएं हुए और पाखंडी समाज से तंग आ चुके एक निराशावादी कवि की प्रतिमा को उजागर करनेवाली गुरुदत्त की फ़िल्म 'प्यासा' (१९५७) का यह गाना।
मेरी अपने भारतीय सिनेमा की सबसे पसंदीदा फिल्मों में यह उपर हैं।

कम लोगों को पता होगा की प्रतिभाशाली फ़िल्मकार गुरुदत्त जी ने अपनी फिल्म 'प्यासा' की कास्टिंग क्या की थी! तो वह ऐसी थी..नर्गिस और मधुबाला के साथ कवि की प्रमुख भूमिका के लिए युसूफ ख़ान याने दिलीप कुमार! लेकिन यह बात बनी नहीं क्योंकि अपने अभिनय सम्राट सिर्फ 'परफॉर्मन्स ओरिएंटेड रोल' ही करना पसंद करते थे और 'प्यासा' वैसे कवि के जीवन पर केंद्रित थी। (हालांकि इसके यथार्थवादी गीतकार साहिर - लुधियानवी के जीवन से यह फिल्म कुछ हद तक मिलती थी!)

बिमल रॉय की फ़िल्म 'देवदास' (१९५५) में दिलीप कुमार!
इसके बाद 'प्यासा' की दो नायिकाओं में कौन कौनसी साकार करें इस संभ्रमावस्था में थी.. नर्गिस और मधुबाला! आखिर में यह तय हुआ की उनकी जगह माला सिन्हा और वहिदा रहमान को लिया जाएं और मध्यवर्ती कवि की भूमिका गुरुदत्त खुद करे।..और इसका जो बेहतरिन नतीजा आया वह तो आप जानतें हैं! गुरुदत्त जी ने तो पूरी जान डाल दी थी इस भूमिका में..जो दिलोदिमाग़ को हिला कर गई!
'प्यासा' (१९५७) फ़िल्म में गुरुदत्त!

इसके साथ और भी एक बात है की इससे पहले बिमल रॉय की 'देवदास' (१९५५) फ़िल्म में इस तरह की शोकग्रस्त भूमिका दिलीपकुमार बख़ूबी निभा चुके थे..और इसका उनपर इस तरह गहरा असर हुआ की बाद में उन्हें डॉक्टर ने सलाह दी..'आगे इस तरह का काम आप ना करे!' इसीलिए बाद में उन्होंने अलग क़िस्म की फ़िल्में की! इसका ज़िक्र यूसुफ़साहब ने खुद मेरी 'चित्रसृष्टी' के लिए मैंने उनकी ली हुई मुलाकात के दौरान किया था!

- मनोज कुलकर्णी

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