Saturday 10 April 2021

गुलज़ार, ग़ालिब और बर्गमन!


'मौसम' (१९७५) के "दिल ढूँढता है.." गाने में शर्मिला टैगोर और संजीव कुमार!

"दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन.."

गुलज़ार की क्लासिक फ़िल्म 'मौसम' (१९७५) का यह गाना जब भी देखता हूँ तो मुझे.. ग़ालिब का शेर और बर्गमन के सिनेमा का प्लॉट याद आतें है! दोनों का प्रभाव इसपर हैं

दरअसल महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब का ही यह मूल शेर ऐसा है..
"जी ढूँढता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए.. "

'वाइल्ड स्ट्रॉबेरीज' (१९५७) के सीन में विक्टोर सीओस्ट्रॉम!
उसी से प्रेरित होकर गुलज़ार ने 'मौसम' की.. वह मशहूर नज़्म लिखी..जिसे मदन-मोहन के संगीत में भूपेन्द्र सिंह और लता मंगेशकर ने गाया था।

इसमें बूढा डॉक्टर अपनी जवानी के प्रेमिका के साथ हसीन लम्हें सालों बाद वही आकर.. रूबरू देखता हैं! परदे पर बेहतरिन कलाकार संजीव कुमार और शर्मिला टैगोर ने यह प्रसंग साकार किया हैं।

'वाइल्ड स्ट्रॉबेरीज' (१९५७) के सीन में बीबी अन्डरसन!

 
तो सके फिल्मांकन पर भी विख्यात स्वीडिश फ़िल्मकार इंगमर बर्गमन की मशहूर फिल्म 'वाइल्ड स्ट्रॉबेरीज' (१९५७) के सीन का प्रभाव हैं। इसमें बूढ़ा प्रोफेसर फिर से अपना अतीत उसी जगह महसूस करता हैं! परदे पर दिग्गज कलाकार विक्टोर सीओस्ट्रॉम और बीबी अन्डरसन ने भूमिकाएं की हैं!

 
आप भी ऊपर की बातें जानिए..और चाहे तो दोनों फिल्मों के वह सीन्स देख सकतें हैं!

- मनोज कुलकर्णी

 

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