रुमानी और तरक्कीपसंद शायर!
शायर तथा गीतकार मजरूह सुलतानपुरीजी! |
जवां शायर मजरूह सुलतानपुरी! |
"पहेला नशा पहेला खुमार नया प्यार है.." ('जो जीता वोही सिकंदर'/१९९२) हो या "टेल मी ओ खुदा, अब मैं क्या करू.." ('खामोशी'/१९९६)..ऐसी जवानीकी देहलीज पर उभरनेवाली रुमानी भावनाओंको उन्होने उम्र के आखरी पडाव में लिखा!
फ़िल्मकार नासिर हुसैन, संगीतकार आर. डी. बर्मन और गीतकार मजरूह सुलतानपुरी! |
''तुम जो हुए मेरे हमसफर रस्ते बदल गये.." या "तुमने मुझे देखा होकर
मेहेरबान.." जैसे रुमानी गीत हो..या "हम हैं मता-ए-कुचा ओ बाजार कि तरह.."
जैसी नज्म हो..उनकी शायरी को हमेशा सराहा है! वैसे तो वह तरक्कीपसंद शायर
रहे!
हमारे पसंदीदा रोमँटिक मुझिकल्स बनाने वाले फ़िल्मकार नासिर हुसैन के साथ उनका असोसिएशन बडा कामयाब रहा..'दिल देखे देखो' (१९५९), 'फिर वोही दिल लाया हूँ' (१९६३), 'प्यार का मौसम' (१९६९) जैसी फिल्मो के लिये उन्होने बडे रुमानी गीत लिखे!
'दादासाहेब फालके सम्मान' मिलने वाले वह पहले गीतकार रहे!
याद आ रहा है..मजरूहसाहब को एक मुशायरे के दौरान मैं मिला था..तब प्यार से उन्होने सर पर हाथ रखा था!
उनको सलाम!!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)
हमारे पसंदीदा रोमँटिक मुझिकल्स बनाने वाले फ़िल्मकार नासिर हुसैन के साथ उनका असोसिएशन बडा कामयाब रहा..'दिल देखे देखो' (१९५९), 'फिर वोही दिल लाया हूँ' (१९६३), 'प्यार का मौसम' (१९६९) जैसी फिल्मो के लिये उन्होने बडे रुमानी गीत लिखे!
'दादासाहेब फालके सम्मान' मिलने वाले वह पहले गीतकार रहे!
गायक मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर के साथ गीतकार मजरूह सुलतानपुरी! |
याद आ रहा है..मजरूहसाहब को एक मुशायरे के दौरान मैं मिला था..तब प्यार से उन्होने सर पर हाथ रखा था!
उनको सलाम!!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)
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