हमको अब तक आशिकी का वो जमाना याद है!
अब भी याद आ रहा है पुणे में कुछ तीन दशक पहले हुआ गझल शहेनशाह गुलाम अली खां का बडा संगीत जलसा..जिसमे नजदीक से उन्हे देखने-सुनने का सुनहरा मौका मुझे मिला!
रूमानी गझल गाते हुए गुलाम अली साहब! |
''कल चौदवी की रात थी..
शब भर रहा चर्चा तेरा.."
ऐसी उनकी रुमानी गझल जवानी की देह्लीज पर कदम रखते समय हमे सुनने को मिली थी !
तो उस मेहफिल में "ये दिल ये पागल दिल मेरा.." और "पारा पारा हुआ.." ऐसी गझलो के साथ कई जानेमाने शायरो के नगमे सुनने को मिले थे..जिसमे गझल के बीच रुककर उनका शेर सुनांना और फिर "आहा..आहा.." आलाप देना लाजवाब था!
"बहोत खूब खांसाहब!!" ऐसी गुंज तालीयो के साथ तब बार बार उठती थी!
उनकी गायी हुई खातिर गजनवी कि गझल याद आती है..
"कैसी चली है अब के हवा तेरे शहर में.."
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]
शब भर रहा चर्चा तेरा.."
ऐसी उनकी रुमानी गझल जवानी की देह्लीज पर कदम रखते समय हमे सुनने को मिली थी !
तो उस मेहफिल में "ये दिल ये पागल दिल मेरा.." और "पारा पारा हुआ.." ऐसी गझलो के साथ कई जानेमाने शायरो के नगमे सुनने को मिले थे..जिसमे गझल के बीच रुककर उनका शेर सुनांना और फिर "आहा..आहा.." आलाप देना लाजवाब था!
"बहोत खूब खांसाहब!!" ऐसी गुंज तालीयो के साथ तब बार बार उठती थी!
उनकी गायी हुई खातिर गजनवी कि गझल याद आती है..
"कैसी चली है अब के हवा तेरे शहर में.."
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]
No comments:
Post a Comment