मेरे इस ब्लॉग पर हमारे भारतीय तथा पूरे विश्व सिनेमा की गतिविधियों पर मैं हिंदी में लिख रहा हूँ! इसमें फ़िल्मी हस्तियों पर मेरे लेख तथा नई फिल्मों की समीक्षाएं भी शामिल है! - मनोज कुलकर्णी (पुणे).
Wednesday, 31 October 2018
उर्दू-हिंदी के जानेमाने शायर साहिर लुधियानवी और ख्यातनाम पंजाबी लेखिका-कवियित्री अमृता प्रीतम की यह तस्वीर देखने में आयी और...
साहिरजीने लिखी हुई नज्म "मेरे महेबूब कहीं और मिला कर मुझसे.." तथा 'दूज का चाँद' (१९६४) का ''मेहफिल से उठ जाने वालो..'' जैसे गीत याद आए!..और अमृता प्रीतमजी ने लिखा 'रसीदी टिकट' भी याद आया.!!
साहिरसाहबका स्मृतिदिन २५ अक्तूबर को था और अमृता प्रीतमजीका स्मृतिदिन आज है!
साहिरजीने लिखी हुई नज्म "मेरे महेबूब कहीं और मिला कर मुझसे.." तथा 'दूज का चाँद' (१९६४) का ''मेहफिल से उठ जाने वालो..'' जैसे गीत याद आए!..और अमृता प्रीतमजी ने लिखा 'रसीदी टिकट' भी याद आया.!!
साहिरसाहबका स्मृतिदिन २५ अक्तूबर को था और अमृता प्रीतमजीका स्मृतिदिन आज है!
उन्हें अभिवादन!!
- मनोज कुलकर्णी
- मनोज कुलकर्णी
Thursday, 25 October 2018
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| यथार्थवादी शायर साहिर लुधियानवी जी! |
देंगे वोही..जो पाएंगे इस ज़िंदगी से हम..!"
ऐसा अंदाज़-ए-बयाँ था यथार्थवादी शायर साहिर लुधियानवी जी का!

-{साहिरजी की यह नज़्म 'प्यासा' (१९५७) में सादर करते हुए संवेदनशील अभिनेता-निर्देशक गुरुदत्त जी!}
- मनोज कुलकर्णी
Monday, 22 October 2018
परदेपर बिछड़े..हक़ीक़त में मिलेंगे!
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| स्टार जोड़ी रणवीर सिंघ और दीपिका पादुकोन..शादी के लिए तैयार! |
बॉलीवुड की 'मस्तानी' दीपिका पादुकोन ने कल ट्विटर पर रणवीर सिंघ से शादी की (१४-१५ नवंबर) तारीख़ बाक़ायदा निवेदन देकर जाहीर की..और फिल्मों में न मिले या जुदा हुएं यह प्रेमी असल जिंदगी में अब मिया-बीबी बन रहें हैं!
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| 'बाजीराव मस्तानी' (२०१५) में उन व्यक्तिरेखाओं में रणवीर सिंघ और दीपिका पादुकोन! |
तो उसके चार साल बाद विज्ञापन क्षेत्र से रणवीर सिंघ २०१० में 'यशराज फिल्म्स' की 'बैंड बाजा बारात' से अनुष्का शर्मा के साथ बड़ी धूमधाम से बॉलीवुड में आया! फिर 'लेडीज वर्सेस विक्की बहल' जैसी रोमैंटिक फिल्म में भी वह अनुष्का के साथ था। आगे ओ. हेनरी की 'द लास्ट लीफ' से प्रेरित फिल्म 'लूटेरा' (२०१३) में सोनाक्षी सिन्हा के साथ उसका किरदार हट के था!
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| 'गोलियों की रासलीला राम-लीला' (२०१३) में दीपिका पादुकोन और रणवीर सिंघ! |
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| रणवीर सिंघ और दीपिका पादुकोन का प्यार जताना! |
इन दोनों को मेरी शुभकामनाएँ!!
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी']
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| अनिल गांगुली निर्देशित 'तपस्या' में परीक्षित साहनी और राखी! |
कहो ले के चले हैं कहाँ..
ये बनायेंगे एक आशियां.!"
चालीस साल पुरानी फिल्म 'तपस्या' (१९७६) का एम. जी. हशमतजी ने लिखा यह गाना ऐसेही याद आया!
हालाकि इतनी तरल भावुकता आज बहुत कम हो गयी है...और सब तरफ जादा तर तोडने की भाषा हो रही है.!
कहा जाए तो इसका अर्थ परिवार तक सीमित नहीं है...आज के हालातों को देखते हुए इसका व्यापक 'रूपक' हो सकता है!..चाहे तो पडोसी (फिरसे) एक होकर एक नया आशियाना बना सकते है.!!
- मनोज कुलकर्णी
Sunday, 21 October 2018
शम्मीसाहब का जनमदिन और उनका बेहतरिन क़िरदार!
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| 'ब्रह्मचारी' (१९६८) के पोस्टर में बच्चें, शम्मी कपूर और राजश्री! |
लोकप्रिय भारतीय सिनेमा का रिबेल स्टार कह जानेवाले शम्मी कपूर जी का आज ८७ वा जनमदिन!..और उनकी सबसे बेहतरीन और पुरस्कार प्राप्त अदाकारी की फ़िल्म 'ब्रह्मचारी' (१९६८) को अब ५० साल पुरे हुएं!
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| 'ब्रह्मचारी' (१९६८) के "आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे." गाने में शम्मी कपूर और मुमताज़! |
यह फ़िल्म सुपरहिट तथा सम्मानित रही और इसमें लाजवाब अभिनय के लिए शम्मी कपूर को उसका एकमात्र 'सर्वोत्कृष्ट अभिनेता' का फ़िल्मफ़ेअर अवार्ड मिला।..इसके कई साल बाद 'विधाता' (१९८२) में की भूमिका के लिए उन्हे 'सर्वोत्कृष्ट सहाय्यक अभिनेता' का अवार्ड मिला और बादमें (१९९५) 'लाइफटाइम अचीवमेंट'! आम तौर पर प्रादेशिक फिल्मों से हिंदी फ़िल्में बनती हैं; लेकिन 'ब्रह्मचारी' के दाक्षिणात्य सिनेमा में रीमेक बने..'एंगा मामा' (तमिल/१९७०) और 'देवुदू मामाय्या' (तेलुगु/१९८१). तो शेखर कपूर निर्देशित और अनिल कपूर अभिनीत हिंदी फ़िल्म 'मि. इंडिया' (१९८७) भी कुछ इससे प्रेरित थी!
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| 'ब्रह्मचारी' (१९६८) में बच्चों के साथ भावुक हुए शम्मी कपूर! |
शम्मीजी और 'ब्रह्मचारी को यह शब्दांजली!!
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]
Tuesday, 16 October 2018
'सुहाग' के दांडिया पर नाचें 'लवरा(या)त्री'!
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'लवरात्री' के "छोगाड़ा तारा.." गाने में
वरिना हुसैन और आयुष शर्मा!
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| 'सुहाग' (१९७९) के "हे नाम रे." गीत-नृत्य में रेखा और अमिताभ बच्चन! |
मनमोहन देसाई की सुपरहिट फिल्म 'सुहाग' (१९७९) में अमिताभ बच्चन और रेखा ने वह "हे नाम रे.." गीत-नृत्य दांडिया खेल कर बखूबी पेश किया था। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत में वह मोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले ने गाया था। यह मशहूर गाना तब से हमेशा नवरात्री के दिनों में दांडिया कार्यक्रमों में बजता आ रहा हैं।
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| 'सरस्वती चंद्र' (१९६८) के "मैं तो भूल चली.." में नूतन! |
अब नयी पीढ़ी की रूचि के अनुसार सलमान खान निर्मित और अभिराज मिनावाला निर्देशित 'लवरात्री' में ऐसा गाना आधुनिक रूप लेकर आया हैं। "छोगाड़ा तारा.." इसे लिखा हैं दर्शन रावल और शब्बीर अहमद ने..तथा लीजो जॉर्ज और डीजे चेतस के (फ्यूजन तरीके के) संगीत में दर्शन, जोनिता गांधी और साशा तिरुपती ने इसे गाया हैं। नौजवाँ जोड़ी आयुष शर्मा और खूबसूरत वरिना हुसैन ने इसे नए रूमानी रंग में बस खेला हैं!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी')
Monday, 15 October 2018
हमको अब तक आशिकी का वो जमाना याद है!
अब भी याद आ रहा है पुणे में कुछ तीन दशक पहले हुआ गझल शहेनशाह गुलाम अली खां का बडा संगीत जलसा..जिसमे नजदीक से उन्हे देखने-सुनने का सुनहरा मौका मुझे मिला!
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| रूमानी गझल गाते हुए गुलाम अली साहब! |
''कल चौदवी की रात थी..
शब भर रहा चर्चा तेरा.."
ऐसी उनकी रुमानी गझल जवानी की देह्लीज पर कदम रखते समय हमे सुनने को मिली थी !
तो उस मेहफिल में "ये दिल ये पागल दिल मेरा.." और "पारा पारा हुआ.." ऐसी गझलो के साथ कई जानेमाने शायरो के नगमे सुनने को मिले थे..जिसमे गझल के बीच रुककर उनका शेर सुनांना और फिर "आहा..आहा.." आलाप देना लाजवाब था!
"बहोत खूब खांसाहब!!" ऐसी गुंज तालीयो के साथ तब बार बार उठती थी!
उनकी गायी हुई खातिर गजनवी कि गझल याद आती है..
"कैसी चली है अब के हवा तेरे शहर में.."
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]
शब भर रहा चर्चा तेरा.."
ऐसी उनकी रुमानी गझल जवानी की देह्लीज पर कदम रखते समय हमे सुनने को मिली थी !
तो उस मेहफिल में "ये दिल ये पागल दिल मेरा.." और "पारा पारा हुआ.." ऐसी गझलो के साथ कई जानेमाने शायरो के नगमे सुनने को मिले थे..जिसमे गझल के बीच रुककर उनका शेर सुनांना और फिर "आहा..आहा.." आलाप देना लाजवाब था!
"बहोत खूब खांसाहब!!" ऐसी गुंज तालीयो के साथ तब बार बार उठती थी!
उनकी गायी हुई खातिर गजनवी कि गझल याद आती है..
"कैसी चली है अब के हवा तेरे शहर में.."
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]
Wednesday, 10 October 2018
Friday, 5 October 2018
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बी.आर.चोपड़ा की फिल्म 'पति, पत्नी और वो' (१९७८)
में रंजीता, संजीव कुमार और विद्या सिन्हा!
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एक्सक्लूजिव लेख:
'पति, पत्नी और वो'!
- मनोज कुलकर्णी
उस दिन ऐसे वक्त 'विवाहबाह्य संबंध गुनाह नहीं!' ऐसा फैसला आया जब (त्रिकोणीय प्रेम के फ़िल्मकार) यश चोपड़ा जी का जनमदिन था! साथ ही उनके बड़े भाई जानेमाने फ़िल्मकार बी. आर. चोपड़ा जी ने इसी विषय पर बनाई फिल्म 'पति, पत्नी और वो' (१९७८) को चालीस साल हो गएँ है! इन चोपड़ा फ़िल्मकार भाइयों के भांजे करन जोहर ने भी ऐसे ही प्लाट पर 'कभी अलविदा ना कहना' (२००६) बनायी जिसे अब एक तप पूरा हो गया! इतना ही नहीं, हाल ही में अपनी ७० वी सालगिरह मना चुके फ़िल्मकार महेश भट्ट ने भी इसी को लेकर (अपने फ़िल्म जीवन के पहलू पर) फ़िल्म 'अर्थ' (१९८२) बनायी थी!
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| 'देवदास' (१९५५) में सुचित्रा सेन और दिलीप कुमार! |
दरसअल ज्यादातर यह ऐसी परिस्थिती में होता है..जब प्यार करनेवालें किसी कारन विवाह स्वरुप मिल नहीं पातें और फिर एक-दूसरे की ओर वह खींचे जातें हैं..जैसे कि बांग्ला साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने १९१७ में लिखी 'देवदास' की अमर दास्ताँ!..इसपर १९३५ की प्रमथेश बरुआ की (जमुना, चन्द्रबती और वह खुद अभिनीत) बांग्ला और १९५५ की बिमल रॉय की (दिलीप कुमार, सुचित्रा सेन और वैजयंतीमाला अभिनीत) हिंदी जैसी अभिजात फिल्में बनती आ रहीं हैं! गुरुदत्त की (वह और माला सिन्हा, वहिदा रहमान अभिनीत) श्रेष्ठ फ़िल्म 'प्यासा' (१९५७) का स्रोत भी यही था; लेकिन उसे एक कवि की दृष्टी से यथार्थवादी बनाया गया था। प्रेम की उदात्त भावना ऐसी फिल्मों में प्रतिबिंबित होती हैं!
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| 'माया मेमसाब' (१९९३) में दीपा साही और शाहरुख़ खान! |
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| 'गाईड' (१९६५) में देव आनंद और वहिदा रहमान! |
'एना कैरेनिना' पर भी मूकपट के ज़माने से कई फिल्मे बनी..बोलपट में १९३५ में 'एम्.जी.एम्.' ने इंग्लिश में मशहूर अदाकारा ग्रेटा गार्बो को लेकर बनाई और रूस में अलेक्सांद्र जारखी ने वहां की बेहतरीन अभिनेत्री.. तातिआना समोएलोवा को लेकर बनाई 'एना कैरेनिना' उल्लेखनीय रहीं। तो भारत में तमिल भाषा में के. एस. गोपालकृष्णन ने 'पनक्कारी' नाम से इसे बनाया जिसमें टी. आर. राजकुमारी ने वह भूमिका की थी! 'मादाम बोवारी' और 'एना कैरेनिना' इन दोनों में अपनी मर्जी से खुली ज़िंदगी जीनेवाली विवाहीत स्त्री के अन्य पुरुषों से संबंध को दर्शाया गया!..इस पार्श्वभूमी पर वैशिष्ट्यपूर्ण भारतीय फ़िल्म नमूद करना वाजिब होगा..आर. के. नारायण की कादंबरी पर बनी 'नवकेतन' की 'गाईड' (१९६५)..इसमें "काँटों से खींच के ये आँचल, तोड़ के बंधन बाँधे पायल..कोई न रोको दिल की उड़ान को.." इस शैलेन्द्र के गीत द्वारा इसकी नायिका शौहर को छोड़कर एक गाईड के साथ दुनिया में अपनी कला दिखाने चल उठती हैं!..वहिदा रहमान ने यह भूमिका लाजवाब साकार की थी और देव आनंद बने थे उसके गाईड!
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'गुमराह' (१९६३) के "चलो एक बार फिर से अज़नबी बन जाएं हम दोनों.."
इस गाने में माला सिन्हा और सुनिल दत्त! |
बहरहाल भारतीय सिनेमा में इस विषय को संयमित और तरलता से दिखाया गया हैं, जिसमें यह परिस्थितियां कुछ वजह से उत्पन्न हुई हैं! जैसे कि ' बॉम्बे टॉकीज' की 'अछुत कन्या' (१९३६) जिसमे जातभेद के कारन न मिल पाएं प्रेमी साथ आने की नाकाम कोशिश करतें हैं! इसमें अशोक कुमार और देविका रानी ने बेहतरिन भूमिकाएं साकार की हैं। तो 'दीदार' (१९५१) में अमीरी और गरीबी के चलते बिछड़े बचपन के साथी लड़की की दूसरे के साथ शादी होने पर तडपतें रहतें हैं..ट्रैजेडी किंग दिलीप कुमार और नर्गिस ने इन भूमिकाओं में जान डाली थी! दूसरी वजह कभी यह भी होती हैं कि मजबूरन अपने प्रेमी/प्रेमिका के अलावा किसी दूसरे से समस्या को हल करने के लिए शादी करनी पड़ती हैं..इसमें स्वाभाविकता से दोनों का प्यार उन्हें एक-दूसरे की ओर खींचता रहता हैं! इस पर जानेमाने फ़िल्मकार बी. आर. चोपड़ा की फिल्म 'गुमराह' (१९६३) ने अच्छा प्रकाश डाला था। इसमें नायिका अपनी बहन की मृत्यु के बाद उसके बच्चों की परवरीश के लिए अपने प्रेमी को छोड़ कर बहनोई से शादी करती हैं; लेकिन अपने प्यार को भुला भी नहीं पाती! माला सिन्हा और सुनिल दत्त इसमें प्रेमी बने थे..और ('दीदार' सह) ऐसी फिल्मों में अशोक कुमार हमेशा बिच का तिसरा क़िरदार बखूबी निभाते रहें!
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| यश चोपड़ा की 'सिलसिला' (१९८१) में रेखा, अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी-बच्चन! |
ऐसी ही उलझी हुई स्थिती को बख़ूबी दर्शाया हैं रूमानी फ़िल्मकार यश चोपड़ा ने अपनी फ़िल्म 'सिलसिला' (१९८१) में..जिसमे नायक भाई गुजर जाने पर मज़बूरन उसकी बेवा पत्नी से अपनी प्रेमिका को छोड़ कर शादी करता हैं; लेकिन प्यार का जुनून इतना हावी होता हैं की अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी से बाहर आकर वह प्रेमी रंगरलियाँ मनातें हैं। इसमें वास्तविकता में भी इसी वजह से चर्चित सुपरस्टार अमिताभ बच्चन-रेखा और जया भादुड़ी-बच्चन इन किरदारों में थे..यह कमाल सिर्फ यशजी ही कर सकते थे!
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| 'संगम' (१९६४) में राज कपूर, वैजयंतीमाला और राजेंद्र कुमार..प्रेम त्रिकोण! |
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| 'आउट ऑफ़ आफ्रीका' (१९८५) में मेरिल स्ट्रीप और रोबर्ट रेडफोर्ड! |
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| होंगकोंग के वोंग कर-वाई की 'इन द मूड फॉर लव' (२००२) में मैगी चेउंग और टोनी लेउंग! |
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| फ़िल्म 'मर्डर' (२००४) में इमरान हाश्मी और मल्लिका शेरावत! |
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| महेश भट्ट की 'अर्थ' (१९८२) में (दिवंगत) स्मिता पाटील, शबाना आज़मी और कुलभूषण खरबंदा! |
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करन जोहर की फिल्म 'कभी अलविदा ना कहना' (२००६) में
शाहरुख़ खान, प्रीति ज़िंटा, अभिषेक बच्चन और रानी मुख़र्जी-चोपड़ा!
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विवाहबाह्य संबंध के बारे में (सकारात्मक फ़ैसला आने के बाद)..साहित्य-कला और सिनेमा में पड़ा प्रतिबिंब यहाँ शब्दबद्ध किया! अब इस पर गंभीरता से सोचते हुए कुछ सवाल दिमाख में आतें हैं की..वाकई में विवाह एक बंधन तो नहीं ?, एक-दूसरे पर हक़ जमाना क्या ठीक हैं?, कोई किसीका मालीक क्यूँ हो?, रिश्तें में प्यार, सम्मान न हो तो कोई कहीं (भावनिक ही) प्यार तलाशे तो गलत क्या? दुनिया बहोत आगे गई हैं और इक्कीसवी सदी में स्त्री-पुरुष बराबर तरीके से अपना जीवन अपनी ख़ुशी से जी सकते हैं! लेकिन हां..ज़िम्मेदारी से सोच समझकर!!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)
Thursday, 4 October 2018
रुमानी और तरक्कीपसंद शायर!
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| शायर तथा गीतकार मजरूह सुलतानपुरीजी! |
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| जवां शायर मजरूह सुलतानपुरी! |
"पहेला नशा पहेला खुमार नया प्यार है.." ('जो जीता वोही सिकंदर'/१९९२) हो या "टेल मी ओ खुदा, अब मैं क्या करू.." ('खामोशी'/१९९६)..ऐसी जवानीकी देहलीज पर उभरनेवाली रुमानी भावनाओंको उन्होने उम्र के आखरी पडाव में लिखा!
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| फ़िल्मकार नासिर हुसैन, संगीतकार आर. डी. बर्मन और गीतकार मजरूह सुलतानपुरी! |
''तुम जो हुए मेरे हमसफर रस्ते बदल गये.." या "तुमने मुझे देखा होकर
मेहेरबान.." जैसे रुमानी गीत हो..या "हम हैं मता-ए-कुचा ओ बाजार कि तरह.."
जैसी नज्म हो..उनकी शायरी को हमेशा सराहा है! वैसे तो वह तरक्कीपसंद शायर
रहे!
हमारे पसंदीदा रोमँटिक मुझिकल्स बनाने वाले फ़िल्मकार नासिर हुसैन के साथ उनका असोसिएशन बडा कामयाब रहा..'दिल देखे देखो' (१९५९), 'फिर वोही दिल लाया हूँ' (१९६३), 'प्यार का मौसम' (१९६९) जैसी फिल्मो के लिये उन्होने बडे रुमानी गीत लिखे!
'दादासाहेब फालके सम्मान' मिलने वाले वह पहले गीतकार रहे!
याद आ रहा है..मजरूहसाहब को एक मुशायरे के दौरान मैं मिला था..तब प्यार से उन्होने सर पर हाथ रखा था!
उनको सलाम!!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)
हमारे पसंदीदा रोमँटिक मुझिकल्स बनाने वाले फ़िल्मकार नासिर हुसैन के साथ उनका असोसिएशन बडा कामयाब रहा..'दिल देखे देखो' (१९५९), 'फिर वोही दिल लाया हूँ' (१९६३), 'प्यार का मौसम' (१९६९) जैसी फिल्मो के लिये उन्होने बडे रुमानी गीत लिखे!
'दादासाहेब फालके सम्मान' मिलने वाले वह पहले गीतकार रहे!
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| गायक मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर के साथ गीतकार मजरूह सुलतानपुरी! |
याद आ रहा है..मजरूहसाहब को एक मुशायरे के दौरान मैं मिला था..तब प्यार से उन्होने सर पर हाथ रखा था!
उनको सलाम!!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)
Wednesday, 3 October 2018
कपूर परिवार की छाँव नहीं रहीं!
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| श्रीमती कृष्णा कपूर जी! |
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| पूरा कपूर ख़ानदान! |
मेरी उन्हें विनम्र श्रद्धांजली!!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)
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