Sunday, 7 December 2025

'फिल्म अप्रिसिएशन' के अग्रणी..प्रोफेसर सतीश बहादूर!

'फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया' ('एफटीआईआई',पुणे) के हमारे 'फिल्म अप्रिसिएशन' के प्रख्यात प्रोफेसर सतीश बहादूर जी की यह जन्मशताब्दी!

प्रो. सतीश बहादूर जी (बीच में बैठे) की मौजूदगी में 'एफटीआईआई' में
प्रख्यात फ़िल्मकार अदूर गोपालकृष्णन जी के हाथों से
'फिल्म अप्रिसिएशन कोर्स' का सर्टिफिकेट लेता हुआ मैं!
१९८७-८८ में पुणे यूनिवर्सिटी से मेरे 'कम्युनिकेशन एंड जर्नलिज्म' ग्रेजुएशन के दौरान 'रानडे इंस्टिट्यूट' में हमारा फ़िल्म क्लब भी मै देख रहा था। उसमें कुछ महत्वपूर्ण वर्ल्ड क्लासिक्स दिखाएं। इसीमें अपने विश्वविख्यात फ़िल्मकार सत्यजित राय की 'अपु ट्राइलॉजी' पूरी दिखाई। तब इसके बाद हमारे 'फिल्म अप्रिसिएशन' के प्रोफेसर सतीश बहादूर सर का उसपर व्याख्यान भी रखा, जिसमें उन्होंने मेरे इस उपक्रम को भी सराहा!

उस ('बीसीजे') ग्रेजुएशन के बाद १९८९ में मैंने 'नेशनल फ़िल्म आर्काइव ऑफ इंडिया' (एनएफएआई) और 'फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया' ('एफटीआईआई') से पुणे में संयुक्त रूप से आयोजित 'फिल्म अप्रिसिएशन कोर्स' किया। इसमें फ़िल्म मीडिया की तकनीकी जानकारी उससे संबंधित अध्यापकों के मार्गदर्शन से मिली, जिसमें महत्वपूर्ण भूमिका रही प्रोफेसर सतीश बहादूर जी की! वर्ल्ड सिनेमा का अच्छा अध्ययन इसमें हुआ। सिनेमा की तरफ सूक्ष्म दृष्टि से देखने का विश्लेषणात्मक नज़रिया मिला।
मेरे 'चित्रसृष्टी' के 'एनएफएआई' में संपन्न हुए प्रकाशन समारंभ में (बाये से)
मैं, प्रो. सतीश बहादूर, 'राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय' के संस्थापक/
फ़िल्म हिस्टोरियन पी. के. नायर, दिग्गज फ़िल्मकार राम गबाले,
वहां के तत्कालीन निदेशक शशिधरन और फ़िल्मकार डॉ.जब्बार पटेल!

सत्यजित राय की 'पाथेर पांचाली' के वे ही बड़े माहीर माने जाते थे। इस बारे में मुझे 'एनएफएआई' के व्यक्ति ने एक किस्सा सुनाया था..वह ऐसा था कि एक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह के दरमियान सत्यजित राय, सतीश बहादूर और एक फॉरेन जर्नलिस्ट बात कर रहें थे। उस जर्नलिस्ट ने पूछा, "मिस्टर राय, आय हैव वन क्वेश्चन अबाउट 'पथेर पांचाली'!" तब उसको बीच में टोकते हुए मि. राय ने कहा "एनीथिंग अबाउट 'पाथेर पांचाली'..यू आस्क टू प्रोफेसर बहादूर, बिकॉज़ ही नोज बेटर देन मी!" उन्हें 'एशियन फ़िल्म फाउंडेशन', मुंबई की तरफ से 'सत्यजित राय मेमोरियल अवार्ड' भी प्रदान किया गया!

'फिल्म अप्रिसिएशन कोर्स' से पहले ही शुरू हुआ मेरा फ्री लांस फिल्म जर्नलिज्म फिर लगभग चार दशक बरक़रार रहा हैं। वर्ल्ड सिनेमा पर मैंने बहुत लिखा और उसपर मेरे 'चित्रसृष्टी' विशेषांक भी प्रसिद्ध किएं जिन्हे पुरस्कार भी मिले। इसके २००२ में हुए प्रकाशन समारंभ में प्रोफेसर बहादूर मौजूद थे और इन विशेषांकों में उन्होंने लिखा। सिनेमा के प्रति मेरे समर्पित कार्य की वे प्रशंसा करते थे!

उन्हें सुमनांजलि!!


- मनोज कुलकर्णी

Thursday, 4 December 2025



हाल ही में 'अंजुमन', पुणे द्वारा 'पलाश' इस कवियों की चुनी हुई काव्य रचनाओं की किताब का विमोचन हुआ! इसमें मेरी भी कुछ रूमानी शायरी शामिल हैं!

- मनोज कुलकर्णी (मानस रूमानी)
 
 

Wednesday, 3 December 2025

उदित नारायण..७०!

जानेमाने पार्श्वगायक उदित नारायण जी अब ७० वर्षं के हुए!

१९८८ में फ़िल्म 'क़यामत से क़यामत तक' के गानों से उन्हें शोहरत मिली। इसमें नायक बने आमिर ख़ान के लिए उन्होंने गाएं "ऐ मेरे हमसफ़र" जैसे गानें हिट हुए। बाद में आमिर के लिए ही "पहला नशा पहला ख़ुमार.." ('जो जीता वही सिकंदर'/ १९९२), शाहरुख़ ख़ान के लिए "जादू तेरी नज़र" ('डर'/१९९३) अक्षय कुमार के लिए "दिल तो पागल है.." (१९९७), सलमान ख़ान के लिए "चाँद छुपा बादल में.." (हम दिल दे चुके सनम/१९९९) ऐसे कई रूमानी गीत गाकर वे मशहूर होते गए। उन्होंने अपनी भाषा मैथिली से लेकर कई प्रादेशिक भाषाओँ में भी गीत गाएं।

उन्हें अब तक पांच 'फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार' मिले और चार 'नेशनल अवार्ड्स' मिले। तथा 'पद्मश्री' और 'पद्मभूषण' से भी वे सम्मानित हुए!

१९८९ में मैंने उदित जी का इंटरव्यू लिया था। तब प्यार से हुई मुलाकात की तस्वीर यहाँ हैं।

उन्हें शुभकामनाएं!

- मनोज कुलकर्णी

Tuesday, 2 December 2025

 ज़िंदादिल धरमजी..अलविदा!

 

ज़िंदादिल धर्मेंद्र जी!

'इज़्ज़त' (१९६८) के "क्या मिलिए" गीतदृश्य में धर्मेंद्र!
"क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिन की फ़ितरत छुपी रहे
नक़ली चेहरा सामने आए असली सूरत छुपी रहे.."


साहिर जी की लिखी यह नज़्म 'इज़्ज़त' (१९६८) फ़िल्म में संजीदगी से सादर की उन्होंने! इस फ़िल्मी दुनियाँ में ज़्यादातर नकली चेहरें लेके (ऑन स्क्रीन और ऑफ स्क्रीन) काम चलानेवालों में, अपनी असली पहचान संभाले हुए चंद जानेमाने कलाकारों में एक थे.. धर्मेंद्र जी! वो जैसे इंसान थे वैसे ही रहे! इसीलिए आख़िर वे जाने के बाद उनके इसी पहलू को सब याद कर रहें हैं!

'धरम वीर' (१९७७) फ़िल्म में धर्मेंद्र!
'फूल और पत्थर' (१९६६), 'शोले' (१९७५), 'धरम वीर' (१९७७) जैसी फ़िल्मों में उनके 'माचो मैन' जैसे किरदारों ने उन्हें 'ही मैन' कहा गया! लेकिन उन्होंने आम आदमी के नजदीक जानेवाले किरदार भी सादगी से निभाए। इसमें खास उल्लेखनीय रहे सत्य के साथ चलनेवाला फ़िल्म 'सत्यकाम' (१९६९) का आदर्शवादी और 'दोस्त' (१९७४) फ़िल्म में "आ बता दे ये तुझे कैसे जिया जाता है.." गाता ईमानदार मानव! साथ ही फ़िल्म 'चुपके चुपके' (१९७४) जैसे ह्यूमर से भरे किरदार भी उन्होंने बख़ूबी साकार किए।


शायराना मिज़ाज की रूमानियत भी उनके रोमैंटिक किरदारों में नज़र आती थी। जैसे 'बहारें फिर भी आएंगी' (१९६६) फ़िल्म में "आप के हसीन रुख़ पे आज नया नूर है.." पेश करते! 'प्यार ही प्यार' (१९६९) फ़िल्म में "मैं कहीं कवि न बन जाऊँ.." गानेवाले वे वाकई में खुद शायरी भी करते थे। 'नया ज़माना' (१९७१) फ़िल्म का उनका आशावादी लेखक का किरदार भी उल्लेखनीय रहा। 'एक महल हो सपनों का' (१९७५) फ़िल्म में उन्होंने कवि की भूमिका भी की।
धर्मेंद्र और हेमा मालिनी..हिट जोड़ी!

'ड्रीम गर्ल' हेमा मालिनी जी के साथ धर्मेंद्र जी की जोड़ी बहुत हिट रही। 'तुम हसीन मैं जवान' (१९७०), 'राजा जानी' (१९७२) से 'दिल्लगी' (१९७८), 'आस पास' (१९८१) ऐसी कई फ़िल्में उनकी लाजवाब रोमांटिक केमिस्ट्री से छायी रहीं। उन्हीं का जज़्बाती गीत "आजा तेरी याद आयी.." अब शायद हेमाजी के मन में आता रहेगा!


धर्मेंद्र जी को 'फिल्मफेयर', 'फिक्की', 'ज़ी सिने', 'आइफा' ऐसी संस्थाओं की तरफ से 'लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्डस' मिले। 'पद्मभूषण' से वे सम्मानित भी हुए!

याद आ रहा हैं धरमजी से हुआ दिलखुलास संवाद!!

उन्हें आदरांजलि!!!

- मनोज कुलकर्णी

Tuesday, 25 November 2025

मोजार्ट और सलिल चौधरी!


विश्वविख्यात ऑस्ट्रियाई म्यूजिक कंपोजर मोजार्ट और प्रतिभाशाली संगीतकार सलिल चौधरी जी!

अपने भारतीय क्लासिक सिनेमा के प्रतिभाशाली संगीतकार सलिल चौधरी जी की यह जन्मशताब्दी!

'छाया' (१९६१) फ़िल्म के "इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा.." गाने में सुनील दत्त और आशा पारेख!
बंगाली, हिंदी के साथ उन्होंने कई भाषाओँ में गीत संगीतबद्ध किए। "ऐ मेरे प्यारे वतन.." (मन्ना डे/'काबुलीवाला'/१९६१), "तस्वीर तेरी दिल में.." (मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर/'माया'/१९६२), "ज़िंदगी कैसी है पहेली.." (मन्ना डे/'आनंद'/१९७१) जैसे उनके संगीत के कई सुरीले गीत याद आतें हैं।

लोकसंगीत से लेकर पाश्चात्य धुनों का भी सलिलदा पर पड़ा प्रभाव उनके संगीत में महसूस होता हैं। इसमें एक तरफ फ़िल्म 'मधुमती' (१९५८) का फोक "बिछुआ.." जैसे गीत हैं। तो दूसरी तरफ वेस्टर्न क्लासिकल से प्रेरित, जिसमें विशेष रहा "इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा.." जो था विश्वविख्यात ऑस्ट्रियाई म्यूजिक कंपोजर मोजार्ट की फेमस सिम्फनी नंबर ४० पर! राजेन्द्र कृष्ण जी का लिखा वह गीत तलत महमूद जी और लता मंगेशकर जी ने बख़ूबी गाया था जो ऋषिकेश मुखर्जी की फ़िल्म 'छाया' (१९६१) में सुनील दत्त और आशा पारेख पर फ़िल्माया गया था। एक तरल काव्यात्म प्रेम इसमें नज़र आता है!

सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday, 19 November 2025

प्रतिभाशाली संगीतकार सलिल चौधरी जन्मशताब्दी!

संगीतकार सलिल चौधरी.

अपने भारतीय क्लासिक सिनेमा के प्रतिभाशाली संगीतकार (और कवि, गीतकार भी) सलिल चौधरी जी का आज १०० वा जनमदिन याने जन्मशताब्दी!

"ऐ मेरे प्यारे वतन.." (मन्ना डे/'काबुलीवाला'/१९६१) गीत दृश्य में बलराज साहनी!
बंगाली, हिंदी के साथ उन्होंने कई भाषाओँ में गीत संगीतबद्ध किए। "ऐ मेरे प्यारे वतन.." (मन्ना डे/'काबुलीवाला'/१९६१), "तस्वीर तेरी दिल में.." (मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर/'माया'/१९६२), "दिल तड़प तड़प के कह रहा है.." (मुकेश और लता मंगेशकर/'मधुमती'१९५८), "ज़िंदगी कैसी है पहेली.." (मन्ना डे/''आनंद'/१९७१), "रजनीगंधा फूल तुम्हारे.." (लता मंगेशकर/'रजनीगंधा'/१९७४) जैसे उनके संगीत के कई सुरीले गीत याद आतें हैं।
'मधुमती' (१९५८) के "दिल तड़प तड़प के" गीतदृश्य में दिलीप कुमार और वैजयन्ती माला!

उनको कई पुरस्कार मिले जिसमें 'फिल्मफेयर', 'संगीत नाटक अकादमी' और राष्ट्रीय सम्मान शामिल हैं!

उन्हें सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

उलझन में रहे जीवन की अखेर!


गायिका-अभिनेत्री सुलक्षणा पंडित.

"अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं.."

ऐसी अपनी फ़िल्म के गीत की तरह ज़िंदगी में उलझी रही खूबसूरत गायिका-अभिनेत्री सुलक्षणा पंडित जी आखिर में यह जहाँ छोड़ गयी!


संगीत के घराने से आई सुलक्षणा जी का फ़िल्मी सफ़र बतौर गायिका ही शुरू हुआ। 'दूर का राही' (१९७१) फ़िल्म में "बेकरार दिल तू गाए जा.." यह डूएट उसने किशोर कुमार जैसे मंजे हुए गायक के साथ गाया। तब महज़ १७ साल की उम्र में उनकी गायकी में कोमलता के साथ भावुकता भी थी! बाद में "घडी मिलन की आई.." और "जब आती होगी याद मेरी.." जैसे मीठे गीत उन्होंने ग्रेट मोहम्मद रफ़ी जी के साथ गाए! 'संकल्प' (१९७५) फ़िल्म के "तू ही सागर हैं तू ही किनारा.." गाने के लिए उन्हें 'फिल्मफेयर' अवार्ड और 'तानसेन' पुरस्कार मिला!
'उलझन' (१९७५) फ़िल्म में संजीव कुमार और सुलक्षणा पंडित!
१९७५ में रघुनाथ झालानी की फ़िल्म 'उलझन' से बतौर अभिनेत्री सुलक्षणा जी पर्दे पर आई। इसमें उनके नायक थे संजीव कुमार और इस मंजे हुए अभिनेता के साथ इस सस्पेंस थ्रिलर में उनका अभिनय भी कमाल का रहा। बाद में जितेंद्र के साथ अनिल गांगुली की 'संकोच' (१९७६) इस 'परिणीता' उपन्यास पर आधारित फ़िल्म में उन्होंने प्रमुख नायिका लोलिता की भूमिका निभाई। 'बंदी' (१९७८) इस बंगाली फ़िल्म में तो वो राजकुमारी बनी और साथ में थे वहां के महानायक उत्तमकुमार!


फिर राजेश खन्ना, फ़िरोज़ ख़ान, विनोद खन्ना, शशी कपूर, शत्रुघ्न सिन्हा, ऋषि कपूर और जितेंद्र के साथ सुलक्षणा जी ने कई फ़िल्मों में काम किया। पर उनके दिल के करीब संजीव कुमार रहे! लेकिन उनकी मोहब्बत अधूरी रह गई!

 
यह कैसा संजोग, संजीव कुमार जी का निधन १९८५ में ६ नवंबर को हुआ था और अब ४० साल बाद ६ नवंबर को ही सुलक्षणा जी इस जहाँ से रुख़सत हुई!!

उन्हें सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Monday, 10 November 2025

जंग-ए-आज़ादी से खेल के मैदान-ए-जंग तक
जबरदस्त लहराया है नारी शक्ति का परचम!

- मानस रूमानी

('वुमेंस क्रिकेट वर्ल्ड कप', २०२५ की बड़ी जीत पर अपनी भारतीय महिला क्रिकेट टीम को बधाई!)

- मनोज कुलकर्णी

Sunday, 2 November 2025

मोहब्बत और इंसानियत से दिल भरा रहे
परदे पर रूमानियत के जलवें दिखाते रहे

- मनोज 'मानस रूमानी'

('बॉलीवुड के किंग' कहे जानेवाले शाहरुख़ ख़ान को ६० वी सालगिरह की मुबारकबाद!)


- मनोज कुलकर्णी

Monday, 27 October 2025

सतीश शाह..अब याद में!


मशहूर फ़िल्म-टीवी एक्टर सतीश शाह जी अचानक इस जहाँ से रुख़सत हुए यह दुख की बात हैं!

'जाने भी दो यारों' (१९८३) जैसी सटायरिकल, 'हातिमताई' (१९८९) जैसी फैंटेसी, 'हम आप के है कौन' (१९९४) जैसी फैमिली ड्रामा ऐसी अलग-अलग जॉनर की हिंदी फिल्मों में और 'गंमत जंमत' (१९८७) जैसी मराठी फिल्मों में उन्होंने अपने किरदार बख़ूबी निभाएँ। तथा 'यह जो हैं ज़िंदगी' (१९८४) और 'साराभाई वर्सेस साराभाई' (२००४) जैसी कॉमेडी टीवी धारावाहिकों में उनकी भूमिकाएं लाजवाब रही और उन्हें अवार्ड्स मिले।

याद आ रहा हैं फ़िल्मी पार्टी में उनसे अच्छा मिलना और बात करना!

उन्हें सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी


Tuesday, 21 October 2025


शुभ दीपावली!

दिये में ज्ञान की लौ जले हर तरफ..
दिल में प्यार की लौ जले हर तरफ!

- मनोज 'मानस रूमानी'

Saturday, 11 October 2025

उम्र ८० कब के पार कर चुके..
ये ८० के दशक में लीजेंड बने!
एंग्री यंग मैन के ही जोश में..
अब बिझी ओल्ड मैन हैं रहें!

- मनोज 'मानस रूमानी'


[हमारे भारतीय सिनेमा-टीवी जगत के लिविंग लीजेंड और हम सबके चहेते..(जिन पर मैंने बहुत लिखा) मेगास्टार..अमिताभ बच्चन जी को ८३ वी सालगिरह की मुबारक़बाद!..याद आ रहा है उनसे हुआ मेरा वार्तालाप और उन्हें मिलकर मेरा 'चित्रसृष्टी' नायक विशेषांक देना!]


- मनोज कुलकर्णी

Friday, 10 October 2025

अदाकारी के और भी जलवें दिखाने..
परदे पर आप उमराव जान यूँ ही रहे!

- मनोज 'मानस रूमानी'

(हमारे लोकप्रिय भारतीय सिनेमा की पसंदीदा ख़ूबसूरत अदाकारा रेखा जी को ७१ वी सालगिरह की मुबारक़बाद! फ़िल्मकार मुज़फ़्फ़र अली जी की क्लासिक फ़िल्म 'उमराव जान' (१९८१) जिसके लिए रेखा जी को नेशनल अवार्ड मिला, अब फिर से प्रदर्शित हुई।..याद आ रही है उनसे मुलाकात!)

- मनोज कुलकर्णी

Saturday, 4 October 2025

विख्यात अभिनेता-फ़िल्मकार अमोल पालेकर!

दिल्ली में सन २००० में हुए हमारे 'इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया' में
अमोल पालेकर जी की फ़िल्म 'कैरी' की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद उनके साथ मैं!

ज्येष्ठ अभिनेता-फ़िल्मकार अमोल पालेकर जी उम्र ८० पर है और कैरियर के ५० साल पुरे कर चुके है। हाल ही में उनकी ऑटोबायोग्राफी 'ऐवज: एक स्मृतिबंध' प्रकाशित हुई!

'घरौंदा' (१९७७) में अमोल पालेकर और ज़रीना वहाब!
१९७० के दशक में 'छोटी सी बात', 'घरौंदा' जैसी हिंदी फिल्मों से शहरी जीवन में मध्यमवर्गीय नायक का किरदार लोकप्रिय करते अमोल पालेकर उभर आए। बाद में १९८१ में वे निर्देशन की तरफ मुड़े और ग्रामीण वास्तवता दिखाती मराठी फ़िल्म 'आक्रीत' बनाकर उसमें प्रमुख भूमिका उन्होंने निभाई। फिर १९८६ में 'अनकही' इस गूढ़ ऑफबीट हिंदी फ़िल्म का निर्देशन उन्होंने किया।

इसके बाद १९९० और २००० इन दशकों में दोनों भाषाओँ में वे सामाजिक तथा कलात्मक फिल्में बनाते गए। इसमें 'बनगरवाड़ी', 'ध्यासपर्व', 'अनाहत', 'समांतर' ये मराठी फिल्में थी और 'थोड़ासा रूमानी हो जाएँ', 'दायरा', 'पहेली' ये हिंदी फिल्में थी।

अभिनेता के तौर पर 'फ़िल्मफ़ेयर' जैसे अवार्ड्स और अपनी निर्देशित फिल्मों के लिए राष्ट्रीय सम्मान उन्हें मिले!

फ़िल्म क्रिटिक की हैसियत से उनकी फिल्मों के प्रदर्शन के समय और फ़िल्म समारोहों में मेरी उनसे मुलाकातें तथा वार्तालाप होते रहें!

उन्हें शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday, 10 September 2025


कुदरत का यह कैसा भयावह मंजर है
सभी के जीने के लिए बरसता पानी..
अब जीवन उजाड़ने पर तुला है!

- मनोज 'मानस रूमानी'

[हिमाचल तथा पंजाब बाढ़ की त्रासदी दुखदायक!
पीड़ितों के प्रति संवेदना!!]

- मनोज कुलकर्णी

Monday, 8 September 2025


"मन क्यूँ बहका री बहका आधी रात को.."

स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकर जी के साथ आशा भोसले जी ने गाया हुआ यह गीत मेरे मन में गूँजा! इन दोनों ने गाएं गीतों में मुझे यह अभिजात तथा लाजवाब लगता हैं!!


संगीतकार प्यारेलाल शर्मा जी!
वसंत देव जी ने लिखा और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी ने संगीतबद्ध किया यह गीत..'उत्सव' (१९८४) इस शशी कपूर जी निर्मित और गिरीश कर्नाड जी निर्देशित फ़िल्म में ख़ूबसूरत रेखा और अनुराधा पटेल पर अशोक मेहता जी ने बड़ी कलात्मकता से फ़िल्माया था।

इसकी ख़ासियत यह थी..शुरु गुनगुनाते लताजी करती हैं और हर पंक्ति का पहला भाग वो गाती हैं, फिर दूसरा भाग आशाजी गाती हैं, जैसे "मन क्यूँ बहका.." लताजी ने और "बेला महका.." आशा जी ने गाया! यह दोनों ने अपने अंदाज़ में गाया!


'उत्सव' (१९८४) में ख़ूबसूरत रेखा!

आज आशाजी के ९२ वे जन्मदिन पर, जब की अब लतादीदी इस दुनिया में नहीं हैं, ऐसे वक़्त मुझे यह गीत याद आया हैं। इसके संगीतकार (लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल में से) प्यारेलाल शर्मा जी का ८५ वा जन्मदिन पिछले हफ्ते ही संपन्न हुआ!..और यह गीत जिनपर फ़िल्माया गया वो रेखा जी अब ७० की उम्र में भी वही रुतबा संभाली हुई हैं! मेरा सौभाग्य की मैं इन सबको मिला हूँ!!

- मनोज कुलकर्णी

Saturday, 16 August 2025

नमस्कार!

एक वर्ष पहले मेरे "मनोज 'मानस रूमानी' - शायराना" इस यूट्यूब चैनल का आग़ाज़ हुआ मैंने श्रीकृष्ण जी पर लिखे "सबके मन भाये ओ बाँसुरीवाले श्याम.." इस अनोखे गीत से जिसे गाया था जानेमाने भजन गायक श्री. अनुप जलोटा जी ने!

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर, आप यह वीडियो मेरे यूट्यूब चैनल के इस लिंक में देखें: https://www.youtube.com/watch?v=ePNaQxzrYps...

दिग्गज गायक अपना लिखा गीत गाकर प्रशंसा करते हैं यह मेरे लिए अहम बात थी!
कृपया आप इसे पूरा सुने!

शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी
  (मानस रूमानी)

Friday, 8 August 2025


पिछले सप्ताह के रविवार को 'कलामंच' द्वारा 'दी स्टेज स्टूडियो' (बानेर, पुणे) में आयोजित कार्यक्रम में मेरी शायरी पेश करना बहोत अच्छा रहा!
'कलामंच' के श्री. भोपटकर का आभार!
इस लिंक में मेरा शायरी पढ़ने का वीडियो हैं:

- मनोज कुलकर्णी (मानस रूमानी)

Monday, 4 August 2025

"बीड़ी जलाई ले, जिगर से पिया
जिगर मा बड़ी आग है.."


इस तरह के गुलजार जी के गाने अपनी ('ओंकारा' जैसी) फिल्मों में बख़ूबी चलानेवाले संगीतकार-फ़िल्मकार विशाल भारद्धाज जी का आज ६० वा जनमदिन!

गुलज़ार जी की फिल्म 'माचिस' (१९९६) से संगीतकार की हैसियत से विशाल भारद्धाज का उनसे साथ रहा है..जो फिर खुद फ़िल्मकार बनने के बाद उनके गीत अपने फिल्मों में लेकर उसने बरक़रार रखा! शेक्स्पीरियन ट्राइलॉजी की उसकी ('मक़बूल'/२००३ और 'ओंकारा'/२००६ के बाद) तीसरी फ़िल्म 'हैदर' (२०१४) के "बिस्मिल बिस्मिल.." इस मशहूर गाने से वह जारी रहा! इन दोनों को मैं फ़िल्म फेस्टिवल्स और संबंधित कार्यक्रमों में मिलता आ रहा हूँ।

इस तस्वीर में कई साल पहले हमारे फ़िल्म फेस्टिवल 'इफ्फी' में विशाल भारद्धाज जी के साथ मैं हूँ!

उन्हें सालगिरह मुबाऱक!!

- मनोज कुलकर्णी

Friday, 1 August 2025

अपने जज़्बात जो बयां करे वही भाषा
प्यार की बोली हो जिसमें वही भाषा!

- मनोज 'मानस रूमानी'

Wednesday, 9 July 2025

वो आफ़ताब थे!


'प्यासा' (१९५७) फ़िल्म में गुरुदत्त!
हमारे भारतीय सिनेमा के स्वर्णयुग के महान फ़िल्मकार - अभिनेताओं में से एक गुरुदत्त साहब आज १०० साल के होते!

विश्वसिनेमा की मेरी सबसे पसंदीदा फ़िल्मों में उनकी 'प्यासा' सबसे ऊँचे स्थान पर हैं और उसपर मैं हमेशा बहोत लिखता आ रहा हूँ। उसके अलावा शायराना रूमानीपन पसंद होने के कारन, आज मैं उनकी दूसरी मेरी पसंदीदा फ़िल्म पर ख़ासकर लिख रहां हूँ, जिसे ६५ साल पुरे हुएँ हैं..वो हैं १९६० की 'चौदहवीं का चाँद'!

उससे एक साल पहले उन्होंने बनायी थी 'कागज़ के फूल' (१९५९)..जो गुरुदत्त जी के दिल के क़रीब थी। लेकिन उसे सफ़लता न मिलने पर, उन्होंने अपनी अगली फ़िल्म रोमैंटिक 'मुस्लिम सोशल' करने का सोचा! इसके साथ ही उन्होंने निर्देशन ख़ुद के बजाय मोहम्मद (एम्) सादिक़ जी को सौंपा। और बिरेन नाग़ को उस माहौल के कलानिर्देशन के लिए चुना!

इससे पहले गुरुदत्त जी की क्लासिक फ़िल्में लिखे अबरार अल्वी जी को सिर्फ़ पटकथा लिखनी थी; क्योंकि सग़ीर उस्मानी जी ने लिखी थी इस 'चौदहवीं का चाँद' की कहानी! तहज़ीब, नज़ाकत और नफ़ासत के शहर लखनऊ में फ़ूलनेवाली यह त्रिकोणीय प्रेमकथा थी। इसमें नवाब (रेहमान) और उसके अज़ीज दोस्त अस्लम (गुरुदत्त) का दिल एक ही हसीना जमीला (वहीदा रहमान) पर आता हैं। फ़िर दोस्त के लिए क़ुर्बानी और बीच में प्यार का होता बुरा हाल इसमें बड़ी संवेदनशीलता से दिखाया हैं।

'चौदहवीं का चाँद' (१९६०) फ़िल्म में गुरुदत्त और वहीदा रहमान!
शायराना अंदाज़ से जाती इस फ़िल्म के रूमानी गीत शक़ील बदायुनी जी ने लाजवाब लिखें थें और रवि जी ने उसी लहजे में संगीतबद्ध किएं थें। जो लता मंगेशकर, गीता दत्त, आशा भोसले, शमशाद बेग़म और मोहम्मद रफ़ी जी ने ख़ूब गाएं। इसका फ़िल्मांकन इस बार सिनेमैटोग्राफर नरिमन ईरानी जी ने बड़ी कल्पकता से किया था! इसमें.."ये लखनऊ की सर-ज़मीं.." इस शुरुआती गीत में उन्होंने उस शहर की ख़ासियत को बख़ूबी चित्रित किया हैं। साथ ही उन दोनों के दोस्त बने जॉनी वॉकर पर निक़ाह के समय फ़िल्माया "मेरा यार बना हैं दूल्हा.." और कोठे पर मीनू मुमताज़ ने लाजवाब सादर किया "दिल की कहानी रंग लायी हैं.." मुज़रा.. इनका फ़िल्मांकन भी बहोत कुछ कहता हैं!

इस फ़िल्म में गुरुदत्त और वहीदा रहमान का इश्क़ बड़ी उत्कटता से सामने आता हैं। ख़ासकर रफ़ीजी ने बड़ी रूमानियत से गाए इसके शीर्षक गीत में देखिएं.. "चौदहवीं का चाँद हो.." कहते गुरुदत्त की आँखें प्यार बयां करती हैं और बाद में वहीदा जिस सहजता से उसके गले लगती हैं..यह इज़हार-ए-मोहब्बत स्वाभाविकता से उभर आया था!

यह फ़िल्म बड़ी क़ामयाब रही और इसे पुरस्कार भी मिले। साथ ही '२ रे मॉस्को अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह' में इसे दिखाया गया।

इस तरह का नज़ाकतदार शायराना रूमानीपन मुझे तो बड़ा भाता हैं!

आख़िर में मुझे यह कहना हैं, वहीदा जी को इसमें चाँद कहा गया हैं..तो हमारे लिए..गुरुदत्त आफ़ताब हैं!!

गुरुदत्तजी को सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Saturday, 14 June 2025

कौन क्या जाने सफर कहाँ ले जा रहा है उन्हें
ज़िंदगी से ही रुख़सत किए जानेवाला है उन्हें!

- मनोज 'मानस रूमानी'

(विमान दुर्घटना पर शोक!)

Monday, 26 May 2025


अब के हालातों के मद्देनज़र शायर साहिर को याद करनेवाली 'अंजुमन' का परसों पुणे में आयोजन किया गया था! यहाँ 'वल्लरी बुक कैफ़े' में हुई इस महफ़िल में मैंने मेरी शायरी पढ़ी! मेरे अच्छे तार्रुफ़ के लिए 'अंजुमन' के श्री. अंजुम लखनवी जी का शुक्रिया!

- मनोज कुलकर्णी (मानस रूमानी)

Saturday, 24 May 2025

"वो तो कहीं हैं और मगर
दिल के आस पास..
फिरती है कोई शह
निगाह-ए-यार की तरह.."

शायर और गीतकार मजरूह सुलतानपुरी जी की याद आज उनके २५ वे स्मृतिदिन पर आयी!


''तुम जो हुए मेरे हमसफर रस्ते बदल गये.." या "तुमने मुझे देखा होकर मेहरबान.." जैसे रुमानी गीत हो, "हम हैं मता-ए-कुचा ओ बाजार कि तरह.." जैसी नज्म हो.. उनकी शायरी को हमेशा सराहा है!

याद आ रहा है..मजरूह साहब को एक मुशायरे के दौरान मैं मिला था..तब प्यार से उन्होने सर पर हाथ रखा था!
🙏
- मनोज कुलकर्णी
   (मानस रूमानी)

Wednesday, 21 May 2025

वतन के लिए आप की शहादत
हरदम याद करता हैं हिंदुस्तान!

- मनोज 'मानस रूमानी'


हमारे धर्मनिरपेक्ष देश के अज़ीज़ पूर्व प्रधानमंत्री 'भारतरत्न' श्री. राजीव जी गांधी का आज ३४ वा स्मृतिदिन!

इसी समय अब की कठिन घड़ी में याद आती हैं उनकी माताजी, हमारे देश की पूर्व शक्तिशाली एवं प्रभावशाली प्रधानमंत्री 'भारतरत्न' श्रीमती इंदिरा जी गांधी की!

इनको मेरी विनम्र श्रद्धांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday, 14 May 2025

 ना हो जंग!

परेशान रहती हैं अवाम यहाँ-वहाँ
ना बिछड़े किसी से कोई यहाँ-वहाँ

ना देखा जाता दुख किसीका यहाँ-वहाँ
ना जाएं किसी की भी जान यहाँ-वहाँ

ना करे कहीं कोई जंग यहाँ-वहाँ
बातचीत से हल निकले यहाँ-वहाँ

इंसानियत की हिफ़ाज़त हो यहाँ-वहाँ
भाईचारा-प्यार स्थापित हो यहाँ-वहाँ

- मनोज 'मानस रूमानी'

Thursday, 8 May 2025


नाज़ है तुझपर मेरे हिन्दुस्तान
जिसकी हैं ये आँखें निगहबान!

- मनोज 'मानस रूमानी'

(हमारी इंडियन आर्मी को ऑपरेशन सिंदूर की बधाई!)

Monday, 28 April 2025

कब तक करोंगे बहस धर्म-मज़हब पर 🤔
गुज़र जाएगी ज़िंदगी बग़ैर किए प्यार! 💔

- मनोज 'मानस रूमानी'

Wednesday, 23 April 2025


हाल ही में पुणे में 'सुरूर' कवि सम्मेलन एवं मुशायरा हुआ। इसमें मशहूर शायरा शिखा अवधेश से मुलाकात हुई!

उन्हें शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी
(मानस रूमानी)


हाल ही में पुणे में 'सुरूर' कवि सम्मेलन एवं मुशायरा हुआ। इसमें मशहूर शायरा सपना मूलचंदानी से मुलाकात हुई!

उन्हें शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी
(मानस रूमानी)

Saturday, 5 April 2025

अलविदा मनोजकुमार साहब!


"भारत का रहने वाला हूँ..
भारत की बात सुनाता हूँ.."


ऐसा कहकर देशभक्तीपर फ़िल्में बनाने और आदर्शवादी किरदार निभाने के लिए मशहूर थे 'भारतकुमार' याने हमारे अज़ीज़ मनोज कुमार साहब! उनके निधन की खबर बहुत दुखदायी हैं।


इस वक्त याद आ रही हैं मैंने उनकी मेरी 'चित्रसृष्टी' के दो विशेषांकों के लिए ली हुई मुलाकातें! मेरा नाम उनके नाम से रखा गया इससे वे ख़ुश हुए थे! उनपर मैंने बहुत लिखा। उनका मुझे मिला स्नेह और प्यार ताउम्र मेरे दिल में रहेगा!

उन्हें मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday, 2 April 2025

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा!


अपने भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री श्री. राकेश शर्मा जी को इसी दिन (२ अप्रैल) १९८४ में उनकी अन्तरिक्ष उड़ान के दौरान अपनी तत्कालिन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा जी गांधी ने जब पूछा,  "ऊपर से भारत कैसा दिखता है?" तब राकेश शर्मा जी ने जवाब दिया था "सारे जहाँ से अच्छा!"

उन्हे भारत के सर्वश्रेष्ठ 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया गया!!

अब ४० साल हुए इस सुनहरे पल को!

उन्हें सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

Monday, 31 March 2025


ईद की दिली मुबारक़बाद!

अमन, भाईचारे का समाँ हर तरफ़ हो
प्यार की शमा रोशन हर दिल में हो!

- मनोज 'मानस रूमानी'