Saturday, 24 May 2025

"वो तो कहीं हैं और मगर
दिल के आस पास..
फिरती है कोई शह
निगाह-ए-यार की तरह.."

शायर और गीतकार मजरूह सुलतानपुरी जी की याद आज उनके २५ वे स्मृतिदिन पर आयी!


''तुम जो हुए मेरे हमसफर रस्ते बदल गये.." या "तुमने मुझे देखा होकर मेहरबान.." जैसे रुमानी गीत हो, "हम हैं मता-ए-कुचा ओ बाजार कि तरह.." जैसी नज्म हो.. उनकी शायरी को हमेशा सराहा है!

याद आ रहा है..मजरूह साहब को एक मुशायरे के दौरान मैं मिला था..तब प्यार से उन्होने सर पर हाथ रखा था!
🙏
- मनोज कुलकर्णी
   (मानस रूमानी)

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