ज़िंदादिल धरमजी..अलविदा!
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| ज़िंदादिल धर्मेंद्र जी! |
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| 'इज़्ज़त' (१९६८) के "क्या मिलिए" गीतदृश्य में धर्मेंद्र! |
नक़ली चेहरा सामने आए असली सूरत छुपी रहे.."
साहिर जी की लिखी यह नज़्म 'इज़्ज़त' (१९६८) फ़िल्म में संजीदगी से सादर की उन्होंने! इस फ़िल्मी दुनियाँ में ज़्यादातर नकली चेहरें लेके (ऑन स्क्रीन और ऑफ स्क्रीन) काम चलानेवालों में, अपनी असली पहचान संभाले हुए चंद जानेमाने कलाकारों में एक थे.. धर्मेंद्र जी! वो जैसे इंसान थे वैसे ही रहे! इसीलिए आख़िर वे जाने के बाद उनके इसी पहलू को सब याद कर रहें हैं!
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| 'धरम वीर' (१९७७) फ़िल्म में धर्मेंद्र! |
शायराना मिज़ाज की रूमानियत भी उनके रोमैंटिक किरदारों में नज़र आती थी। जैसे 'बहारें फिर भी आएंगी' (१९६६) फ़िल्म में "आप के हसीन रुख़ पे आज नया नूर है.." पेश करते! 'प्यार ही प्यार' (१९६९) फ़िल्म में "मैं कहीं कवि न बन जाऊँ.." गानेवाले वे वाकई में खुद शायरी भी करते थे। 'नया ज़माना' (१९७१) फ़िल्म का उनका आशावादी लेखक का किरदार भी उल्लेखनीय रहा। 'एक महल हो सपनों का' (१९७५) फ़िल्म में उन्होंने कवि की भूमिका भी की।
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| धर्मेंद्र और हेमा मालिनी..हिट जोड़ी! |
'ड्रीम गर्ल' हेमा मालिनी जी के साथ धर्मेंद्र जी की जोड़ी बहुत हिट रही। 'तुम हसीन मैं जवान' (१९७०), 'राजा जानी' (१९७२) से 'दिल्लगी' (१९७८), 'आस पास' (१९८१) ऐसी कई फ़िल्में उनकी लाजवाब रोमांटिक केमिस्ट्री से छायी रहीं। उन्हीं का जज़्बाती गीत "आजा तेरी याद आयी.." अब शायद हेमाजी के मन में आता रहेगा!
धर्मेंद्र जी को 'फिल्मफेयर', 'फिक्की', 'ज़ी सिने', 'आइफा' ऐसी संस्थाओं की तरफ से 'लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्डस' मिले। 'पद्मभूषण' से वे सम्मानित भी हुए!
याद आ रहा हैं धरमजी से हुआ दिलखुलास संवाद!!
उन्हें आदरांजलि!!!
- मनोज कुलकर्णी




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