नृत्यकुशल ख़ूबसूरत शोख़ अदाकारा..मीनू मुमताज़!
लीजेंडरी कॉमेडी एक्टर मेहमूद जी की बहन इतना उनका तार्रुफ़ नहीं था। ख़ूबसूरत चेहरा और अभिनय में शोखियत से उन्होंने १९५०-६० के दशकों में परदे पर अपना एक खास मुकाम हासिल किया था।
मलिकुन्निसा अली उसका असल में नाम था। "मीनू"
नाम से उन्हें जानीमानी अभिनेत्री (और मेहमूद की रिश्तेदार) मीना कुमारी पुकारती थी और वो मीनू - मुमताज़ हुई! शुरुआती दौर में, १९५६ में फ़िल्म 'हलाकू' में मीना जी के साथ ही यह कमसिन मीनू नज़र आयी।
बहरहाल, मीनू मुमताज़ मशहूर हुई परदेपर अपने नृत्य के जलवें दिखाकर! १९५७ में बी. आर. चोपड़ा की फ़िल्म 'नया दौर' में "रेशमी सलवार कुरता जाली का.." यह उनका नृत्यगीत हिट रहा। फिर दिलीप कुमार अभिनीत बिमल रॉय की फ़िल्म 'यहूदी' में भी वह थी।
अभिनेता-निर्देशक गुरुदत्त की फ़िल्म 'चौदहवीं का चाँद' (१९६०) में उनके साथ मुज़रा नृत्य में मीनू मुमताज़! |
फिर 'प्रीत ना जाने रीत' (१९६६) जैसी फ़िल्मों से सहनायिका की तौर पर और आगे 'पत्तों की बाज़ी' (१९८६) तक चरित्र किरदारों के ज़रिये मीनू मुमताज़ परदे पर बरक़रार रही!
मुझे हमेशा यह लगता रहा, इतनी ख़ूबसूरत चेहरे की यह अदाकारा मीनू मुमताज़ महज नृत्य जैसी भूमिकाएं निभाती क्यों रह गयी? १९५९ में आयी फ़िल्म 'ब्लैक कैट' में तो जानेमाने अभिनेता बलराज साहनी की वो नायिका थी। इसमें उनके साथ शायराना अंदाज़ में.. "मैं तुम्ही से पूछती हूँ मुझे तुम से प्यार क्यूँ हैं.." गाने में उसका रूप कितना लुभावना लगा था!
ख़ैर, उन्हें सुमनांजलि!!
- मनोज कुलकर्णी
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