Saturday 31 October 2020

दूज के चाँद हुए वे!


दास्तान-ए-मोहब्बत...उर्दू शायर साहिर लुधियानवी और पंजाबी कवयित्री अमृता प्रीतम!

'कभी कभी' फ़िल्म के शीर्षक गीत में अमिताभ बच्चन महाविद्यालीन जीवन में उभरते शायर के रूप में, राखी की तरफ़ देखकर ख़याल बयां करता हैं "तुझको बनाया गया है मेरे लिए.."

शायर साहिर लुधियानवी जी ने यह लिखा था और उसमें उनकी ही ऐसी प्रेम कहानी थी।
१९३९ के दौरान इस मोहब्बत का आगाज़ हुआ था (लाहौर-दिल्ली के बीच) प्रीत नगर में ही! तब एक ही कॉलेज में साहिर और कवयित्री अमृता कौर (प्रीतम) पढ़ रहें थे। एक शायराना माहौल में इन दोनों की आँखें मिली और उस ज़रिये प्यार बयां हो गया।

प्यार का जुनून लिए जवाँ..अमृता कौर (प्रीतम) और साहिर!

हालांकि अमृताजी साहिर से दो साल सीनियर थी और उनकी शादी (कम उम्र में ही) प्रीतम सिंह से हुई थी! लेकिन प्यार का जूनून दोनों में था। नतीजन साहिर को वह कॉलेज छोड़ना पड़ा। कुछ साल बाद (१९४४ के दरमियान) वे दोनों लाहौर में मिले। तब तक उर्दू शायरी में साहिरजी और पंजाबी साहित्य में अमृताजी अपना मक़ाम हासिल कर चुके थे!

 मुल्क़ विभाजन के बाद अमृताजी दिल्ली आई और साहिरजी बम्बई..जहाँ फ़िल्मों के लिए उन्हें गीतलेखन करना था। बाद में  ख़तों के जरिए शायराना अंदाज़ में इश्क़ बयां होता रहा। दरमियान अमृताजी शादी के बंधन से अलग हुई थी! लेकिन यहाँ साहिर फ़िल्म क्षेत्र में अपने काम में मसरूफ़ हुए थे।

उस दौरान गायिका सुधा मल्होत्रा के साथ भी साहिर के प्यार के चर्चे हुए। लेकिन कहाँ गया की यह एकतरफ़ा था। बहरहाल, साहिरजी का सुधाजी ने गाया गीत "तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ हैं तुमको..मेरी बात और हैं मैंने तो मोहब्बत की है.." सब साफ बयां कर देता है!..लेकिन अमृताजी इससे कुछ नाराज़ हुई थी और बाद में चित्रकार इमरोज से उनकी नज़दीकियाँ बढ़ी!

मोहब्बत के ख़ूबसूरत मोड़ पर..साहिर लुधियानवी और अमृता प्रीतम!
कहते है साहिरजी ने कभी अमृताजी के साथ अपना प्यार खुल कर ज़ाहिर नहीं किया। हाँ, उनके गीतों में इसका ज़िक्र आता था। तो दूसरी तरफ़ अमृताजी ने उनके इश्क़ पर एक कहानी लिख कर सब बयां कर दिया था! लेकिन उसपर साहिरजी ने खास तवज्जोह नहीं दिया! तब उनकी कलम ज्यादा तर सियासी और सामाजिक मुद्दों पर चल रही थी। "हज़ारो ग़म है इस दुनिया में..मोहब्बत ही का ग़म तनहा नहीं.." ऐसा नग़्मा उन्होंने लिखा भी!

वैसे साहिरजी के जीवन के ऐसे नाजुक पल फ़िल्मों में अक्सर आतें रहें। संवेदनशील अभिनेता-निर्देशक गुरुदत्त ने बनायीं क्लासिक फ़िल्म 'प्यासा' (१९५७) के स्रोत साहिर ही थे। उसमें उस कवी की शायरी जिस नाम से प्रसिद्ध होती है वह 'परछाइयाँ' साहिरजी की ही है। बाद में जानेमाने निर्देशक बी.आर.चोपड़ा ने बनायीं फ़िल्म 'गुमराह' (१९६३) का गीत "चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों.." साहिरजी की दास्तान-ए-मोहब्बत ही बयां करता है!

ख़ैर, इसपर मुझे साहिरजी का ही 'दूज का चाँद' (१९६४) का "महफ़िल से उठ जाने वालो तुम लोगो पर क्या इलज़ाम.."  गाना उन दोनों पर याद आता हैं!
वाकई वे एक दूसरे के लिए दूज का चाँद हो गएँ!!


साहिरजी जल्द यह जहाँ छोड़ गए; तो उनसे मेरी मुलाकात हो नहीं पायी। लेकिन अमृताजी से मिलने का मौका मुझे मिला..जब हम 'जर्नलिज़्म कोर्स' के स्टूडेंट्स १९८८ में दिल्ली गए थे। तब उनसे हुई चर्चा में मैंने दृढ़ता से पूछा "साहिरजी ने "इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर.." नग़्मा क्या आपके लिए लिखा था?" उसपर तो सब चौंक गएँ; लेकिन उन्होंने खुलकर उसका जवाब दिया "हाँ, मैंने मेरी ऑटोबायोग्राफी 'रसीदी टिकट' में इस बारे में लिखा हैं!"

अमृताजी की जन्मशताब्दी पिछले साल हुई और साहिरजी का जन्मशताब्दी साल शुरू हुआ है!
दोनों को सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

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