'नेपोटिज़्म' और 'मोनोपोली'!..वाक़ई असरदार?
मेगा स्टार अमिताभ बच्चन और सुपरस्टार शाहरुख़ ख़ान के साथ अपने अभिनय सम्राट दिलीप कुमार! |
पिछले कुछ सालों से अपने बॉलीवुड में 'नेपोटिज़्म' से लेकर चर्चा गरम हैं! ऐसे वक़्त में मुझे अपने फ़िल्म इंडस्ट्री के थोड़े अतीत में झाँककर यहाँ तक का संक्षिप्त में सफ़र करना होगा।
'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) फ़िल्म में अपनी 'मलिका-ए-हुस्न' मधुबाला! |
अगर शुरुआत के दौर में देखें तो इसका असर कुछ इतना नज़र नहीं आता। दिग्गज़ कलाकार पृथ्वीराज कपूर की बदौलत अगर उनके पुत्र राज कपूर सिनेमा में आएं; तो उसी दौर में अपने अभिनय सम्राट युसूफ ख़ान याने दिलीप कुमार भी उभर आएं यह हक़ीक़त थी। उनका तो कोई रिश्तेदार फ़िल्म इंडस्ट्री में नहीं था, फ़िर भी अपने ज़बरदस्त अभिनय से उन्होंने अपना ऊँचा मुक़ाम यहाँ हासिल किया।
अपनी मानदंड फ़िल्म 'प्यासा' (१९५७) में अभिनेता-निर्देशक गुरुदत्त! |
'आनंद' (१९७१) फ़िल्म में अपने पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना! |
मधुर आवाज के श्रेष्ठ गायक मोहम्मद रफ़ी! |
मनोज कुमार ने देशभक्त तथा
आदर्श नायक की प्रतिमा बनाकर और वैसी फ़िल्मे बनाते प्रतिष्ठा प्राप्त कर
ली! अपने काका जतिन खन्ना याने राजेश खन्ना टैलेंट कॉन्टेस्ट में अपना हुनर
दिखाकर फ़िल्म इंडस्ट्री में आए थे और पहले सुपरस्टार हुए। धर्मेद्र भी
फ़िल्मफेअर स्टार कॉन्टेस्ट से आए और शत्रुघ्न सिन्हा बाक़ायदा पुणे के
'फ़िल्म इंस्टिट्यूट' से एक्टिंग कोर्स करके आए। हाँ, अब कहना हैं तो दूसरे
सुपरस्टार बने अमिताभ बच्चन का..तो वे (उनकी माँ की सहेली) मशहूर अभिनेत्री
नर्गिस की शिफ़ारस लेकर आए थे! लेकिन 'एंग्री यंग मैन' इमेज बनाकर उन्होंने
अपने सिनेमा के नायक का चेहरा ही बदल डाला और शिखर पर पहुँचे।
उसी
वक़्त स्टेज से आए संजीव कुमार ने अपने स्वाभाविक अभिनय से सबको लुभा दिया।
कपूर के शशी जी बचपन में ही परदे पर आए थे और रोमैंटिक हीरो से अच्छे
फ़िल्मकार तक उनका सफ़र सफ़ल रहा। फिर 'आरके' के रणधीर कुछ ख़ास असरदार नहीं
रहे; लेकिन ऋषि जी ने अपना जलवा अच्छा दिखाया! बाद में शशीजी के बेटें भी
(विदेशी छवि के चलते) अपने दर्शकों को इतना नहीं भायें!
अभिनेत्रियों में साधना और आशा पारेख बचपन में ही परदेपर आयी और आगे अपना सफ़ल फिल्म कैरियर बना पायी। शर्मिला टैगोर तो रॉयल फैमिली से और बांग्ला सिनेमा में नाम कमाकर यहाँ आयी। तो साउथ सिनेमा से आयी 'ड्रीम गर्ल' बनी हेमा मालिनी, 'ख़ूबसूरत' रेखा और श्रीदेवी इनको फ़िल्मी बैकग्राउंड था। इसमें रेखा को प्रतिकुल परिस्थिती का सामना करते स्ट्रगल करना पड़ा! श्रीदेवी ने भी अपने अभिनय-नृत्य के बलबूते शोहरत हासिल की!
बाद में समानांतर
सिनेमा के दौर में कुछ ऐसे कलाकार यहाँ उभर आएं जो रूढ़ नायक की प्रतिमा से
हट कर थे! जैसे की ओम पुरी पुणे के 'फ़िल्म इंस्टिट्यूट' से एक्टिंग कोर्स
करके आए थे और अपनी ज़बरदस्त अभिनय से बड़े असरदार रहे। तो स्मिता पाटील टीवी
के छोटे परदे से बड़े सिनेमा तक सिर्फ़ अपने स्वाभाविक अभिनय कुशलता से बड़ी
होती गयी। फ़िल्मी माहौल से आयी शबाना आज़मी भी ट्रैंड एक्ट्रेस थी; तो फ़ारुक़
शेख़ 'इप्टा' से थिएटर करके आए थे।..आगे ओफ्फबीट सिनेमा में छा गए राज
बब्बर भी 'एनएसडी' से!
परिवार की वजह से कुछ कलाकार इस फ़िल्म इंडस्ट्री में आएं यह बात सच हैं; लेकिन उनमें से जिनके पास वाक़ई में टैलेंट था वहीँ यहाँ टिकें और दर्शकों ने अपनाएं..बाक़ी नकारें गएँ। देव आनंद के पुत्र सुनील आनंद, राजेंद्र कुमार के कुमार ग़ौरव और निर्माता यश चोपड़ा के पुत्र उदय भी कहाँ चलें? ऐसी परिस्थिती में बाहर के कलाकार यहाँ आकर अपना हुनर दिखाकर क़ामयाब हुएं और अपनी मंझिल पर बने रहें। गायक उदित नारायण, सोनू निग़म और कलाकार माधुरी दीक्षित से कंगना रनौत, आयुष्मान ख़ुराना, राजकुमार राव जैसे कितने! हाल ही में गुज़र गए इरफान खान तो इसकी अच्छी मिसाल थे।
अगर नेपोटिज्म और मोनोपोली हैं और अपने फिल्म कैरियर को कुछ ठेंस पहुँचती
हैं ऐसा दिखाई देता हैं, तो संबंधित कलाकार ने उससे अच्छी तरह कैसे निपट
सकते है यह देखना चाहिए! इसके साथ दबाव तंत्र इस्तेमाल करनेवाले लोगों से
दूर रहना चाहिएं।..और इसका ख़याल रखना चाहिए की उनकी वजह से अपने जीवन पर
कोई आँच न आएं!
खुदखुशी का सिलसिला अपने फिल्मोद्योग में वैसे फ़िल्मकार गुरुदत्त से लेकर मनमोहन देसाई और कलाकार जिया ख़ान, सुशांत सिंह तक चला आ रहा हैं यह बड़ी दुख की और सोचनीय बात हैं। इसपर मानसशास्त्रिय दृष्टिकोन से कुछ अच्छा हल निकालना चाहिए।..और आगे कोई इस तरह अपनी ज़िंदगी ख़त्म न करें इसपर ध्यान देना चाहिएं!
- मनोज कुलकर्णी
सत्यजीत राय की फ़िल्म 'सद्गति' (१९८१) में ओम पुरी और स्मिता पाटील! |
अभिनेत्रियों में साधना और आशा पारेख बचपन में ही परदेपर आयी और आगे अपना सफ़ल फिल्म कैरियर बना पायी। शर्मिला टैगोर तो रॉयल फैमिली से और बांग्ला सिनेमा में नाम कमाकर यहाँ आयी। तो साउथ सिनेमा से आयी 'ड्रीम गर्ल' बनी हेमा मालिनी, 'ख़ूबसूरत' रेखा और श्रीदेवी इनको फ़िल्मी बैकग्राउंड था। इसमें रेखा को प्रतिकुल परिस्थिती का सामना करते स्ट्रगल करना पड़ा! श्रीदेवी ने भी अपने अभिनय-नृत्य के बलबूते शोहरत हासिल की!
'क्वीन' (२०१३) फ़िल्म में कंगना रनौत! |
परिवार की वजह से कुछ कलाकार इस फ़िल्म इंडस्ट्री में आएं यह बात सच हैं; लेकिन उनमें से जिनके पास वाक़ई में टैलेंट था वहीँ यहाँ टिकें और दर्शकों ने अपनाएं..बाक़ी नकारें गएँ। देव आनंद के पुत्र सुनील आनंद, राजेंद्र कुमार के कुमार ग़ौरव और निर्माता यश चोपड़ा के पुत्र उदय भी कहाँ चलें? ऐसी परिस्थिती में बाहर के कलाकार यहाँ आकर अपना हुनर दिखाकर क़ामयाब हुएं और अपनी मंझिल पर बने रहें। गायक उदित नारायण, सोनू निग़म और कलाकार माधुरी दीक्षित से कंगना रनौत, आयुष्मान ख़ुराना, राजकुमार राव जैसे कितने! हाल ही में गुज़र गए इरफान खान तो इसकी अच्छी मिसाल थे।
अच्छे कलाकार और इंसान..इरफान खान! |
खुदखुशी का सिलसिला अपने फिल्मोद्योग में वैसे फ़िल्मकार गुरुदत्त से लेकर मनमोहन देसाई और कलाकार जिया ख़ान, सुशांत सिंह तक चला आ रहा हैं यह बड़ी दुख की और सोचनीय बात हैं। इसपर मानसशास्त्रिय दृष्टिकोन से कुछ अच्छा हल निकालना चाहिए।..और आगे कोई इस तरह अपनी ज़िंदगी ख़त्म न करें इसपर ध्यान देना चाहिएं!
- मनोज कुलकर्णी
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