"होशवालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है..
इश्क किजे फिर समझिये जिन्दगी क्या चीज है!"
ऐसी रूमानी नज़्म हो, या
"कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता..!"
ऐसी वास्तविकता बयां करना हो, या
"घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए.!"
ऐसा इंसानियत का सन्देश देना हो, या
"हिन्दू भी सुकूँ से है, मुसलमाँ भी सुकूँ से
इंसान परेशान..यहाँ भी है वहाँ भी..!"
ऐसा दोनों मुल्कों में इंसानों के जज़्बात बयां करना हो!
ऐसा लिखनेवाले तरक्कीपसंद अज़ीज़ शायर निदा फ़ाज़ली जी का ८२ वा जनमदिन हुआ!
मुशायरे के दौरान उनसे हुई ख़ास मुलाकात याद आ रही है!
उन्हें सलाम!!
- मनोज कुलकर्णी
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