Tuesday 20 October 2020

जब रफ़ी साहब से मिले ग़ुलाम अली!


"रंग और नूर की बारात किसे पेश करूँ.."

'ग़ज़ल' (१९६४) फ़िल्म में यह शायराना माहौल में गाकर दिल को छू गए थे मोहम्मद रफ़ी!

अपने भारत के ये मधुर आवाज़ के बेताज बादशाह से पाकिस्तान के ग़ज़ल गायकी के उस्ताद ग़ुलाम अली जी की मुलाकात की यह तस्वीर!

"दिल में एक लेहेर सी उठी है अभी.." ऐसी ग़ज़लें रूमानी अंदाज़ में गाकर मशहूर हुए ग़ुलाम अली मई-जून १९८० के दरमियान बम्बई में थे। तब रफ़ी साहब ने खुद उन्हें फोन करके मिलने को कहा। इससे रोमांचित हुए ग़ुलाम अली उन्हें मिलने पहुँचे। वहां रफ़ी जी ने उनकी अच्छी मेहमान नवाज़ी की। उस दौरान ग़ुलाम अली जी ने उन्हें कहाँ, "आपको पूरी दुनिया सुनती है और हम तो आपके चाहनेवाले हैं!" उसपर रफ़ी जी ने उन्हें कहाँ, "लेकिन मैं आपको सुनता हूँ!"

इस बात का ज़िक्र ग़ुलाम अली जी ने एक मुलाक़ात में किया था। बाद में उन्होंने अपने भारतीय सिनेमा के लिए भी गाया, जिसकी शुरुआत हुई बी. आर. चोपड़ा की फ़िल्म 'निक़ाह' (१९८२) से। इसकी उनकी "चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद हैं.." यह ग़ज़ल बहुत मशहूर हुई।

ग़ुलाम अली जी ने तब बताया की रफ़ी जी की गायी "दर्द मिन्नत कश-ए-दवा न हुआ.." ग़ज़ल उन्हें बहुत पसंद है।
मिर्ज़ा ग़ालिब जी की यह ग़ज़ल ख़य्याम साहब ने राग पुरिया धनश्री में संगीतबद्ध की थी। यह ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़ल रफ़ी जी की दर्दभरी आवाज़ की ऊंची अनुभूति देती हैं!

ग़ुलाम अली जी ख़ुशक़िस्मत थे जो उनका रफ़ी जी से मिलना हुआ। उसी साल कुछ दिन बाद जुलाई में रफ़ी साहब इस दुनिया से रुख़सत हुए!
अब चालीस साल गुज़र गये है!

अलग अंदाज़ में गानेवाले ये दोनों हमारे अज़ीज़!!

- मनोज कुलकर्णी

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