जब मिली संगीत की दो मलिकाएं!
अपनी गानसम्राज्ञी लता मंगेशकर जी गुज़र जाने के बाद पुरे विश्वभर से दुख जताया गया। इसमें भी विशेष रहीं सरहद के उस पार (पकिस्तान और बांग्लादेश) से आयी भावुक प्रतिक्रियाएं!
इस संदर्भ में याद आयी मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहां जी की, जो बटवारे से पहले यहाँ अपने सिनेमा-संगीत की चोटी की गायिका-अभिनेत्री थी। (इसके बारे में मैंने पिछले साल उनपर लेख लिखा था।) लता दीदी उनसे प्रभावित थी और नूरजहां जी का दुलार भी उन्हें मिला! बाद में वो अपने शौहर फ़िल्मकार शौकत हुसैन रिज़वी के साथ पाकिस्तान चली गई।
गानसम्राज्ञी लता मंगेशकरजी और मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहांजी का प्यार से गले मिलना! |
जैसे इन दोनों ने एक-दूसरे की आवाज़ें सुनी, वो भावुक हो गई। उस वक्त दोनों ने मिलने की इच्छा जाहिर की, जो तकनिकी तौर पर असंभव था। लेकिन उनकी ज़िद पूरी करने के लिए दोनों मुल्कों से वाघा सरहद पर इस मुलाक़ात का आयोजन किया गया। और वे दोनों वहां जब मिली, तब उनकी आँखों से प्यार के आंसू छलक रहें थें!
इसके लगभग तीन दशक बाद नूरजहां जी भारत आयी थी..उनका 'अनमोल घड़ी' (१९४६) का नौशाद जी ने संगीतबद्ध किया नग़्मा गातें..
"आवाज़ दे कहाँ हैं.."
और लता दीदी उनसे ख़ूब गले लगी!!
अब संगीत की ये दो मलिकाएं इस दुनिया में नहीं।
उनको मेरी सुमनांजलि!!
- मनोज कुलकर्णी
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