Sunday 13 February 2022

फैज़ साहब और हमारी रूमानियत!

 
"गुलों में रंग भरे..बाद-ए-नौबहार चले.. चले भी आओ.."
इस वैलेंटाइन वीक में, हमारी रूमानियत से जुड़ी फैज़ जी की ऐसी रूमानी शायरी याद आयी!

वैसे "हम देखेंगे" जैसी यथार्थवादी नज़्म लिखनेवाले फैज़ जी की कलम ने..
शब-ए-फ़ुर्क़त के जज़्बात ऐसे बख़ूबी बयां किए हैं..
"आपकी याद आती रही रात-भर..
चाँदनी दिल दुखाती रही रात-भर.!"
यह हमारे दिल के क़रीब है..जो हम अपनी हमनफ़स की याद में गुनगुनाते हैं!

फैज़ जी की वह नज़्म मुज़्ज़फ़्फ़र अली की फ़िल्म 'गमन' (१९७८) में अलग अंदाज़ के गीत में आयी, जिसे लिखा था जानेमाने मख़दूम मोहिउद्दीन जी ने!
स्मिता पाटील पर फ़िल्माया हुआ यह गीत जयदेव जी के संगीत में छाया गांगुली जी ने गाया था जो मशहूर हुआ ..
"आप की याद आती रही रात भर..
चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर.."

फैज़ जी की शायरी से मुतासिर और भी नग़्मे हमारे फ़िल्मों में आएं, जैसे की उनका एक मशहुर शेर हैं..
"हम से कहते हैं चमन वाले ग़रीबान-ए-चमन...
तुम कोई अच्छा सा रख लो अपने वीराने का नाम.!"

इससे प्रेरित होकर शायद जावेद अन्वर जी ने 'शबनम' (१९६४) फ़िल्म के लिए यह गीत लिखा होगा..
"मैंने रखा है मोहब्बत अपने अफसाने का नाम...
तुम भी कुछ अच्छा सा रख दो अपने दीवाने का नाम.!"
अज़ीज़ मोहम्मद रफ़ी जी ने गाया यह नग़्मा भी हमारे दिल के क़रीब हैं।

दोनों मुल्कों में मक़बूल, पाकिस्तान के अज़ीम और हमारे भी अज़ीज़ शायर..फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ साहब को उनके..१११ वे - यौम-ए-पैदाइश पर सलाम!

- मनोज कुलकर्णी

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