Monday 21 September 2020

एक्सक्लुजिव्ह!

शबाना-स्मिता..असरदार बराबर मुक़ाबला!!

'अर्थ' (१९८२) फ़िल्म के आव्हानात्मक प्रसंग में शबाना आज़मी और स्मिता पाटील!

शबाना आज़मी और स्मिता पाटील अपने भारतीय सिनेमा के परदे पर स्त्री व्यक्तिरेखाओं को यथार्थता से साकार करनेवाली अभिनेत्रियाँ! दोनों में उम्र का पाँच साल का फ़ासला; लेकिन सशक्त अभिनय में दोनों बराबर की असरदार।

दोनों परदेपर सामने आती तो कड़ा मुक़ाबला देखने को मिलता था। सबसे पहले उन्होंने एकसाथ समानांतर सिनेमा के विख्यात निर्देशक श्याम बेनेगल की फ़िल्म 'निशांत' (१९७५) में काम किया। इसमें गाँव के बड़े घर की पति को संभालनेवाली सीधीसादी बहु बनी थी स्मिता और शहर से आए स्कूल टीचर की आब संभलकर रहनेवाली पत्नी बनी थी शबाना। पुरुषों की हुक़ूमत, बुरी नज़र ऐसे में पीसती स्त्री व्यक्तिरेखाएँ ही थी उनकी!

'मंडी' (१९८३) फ़िल्म में शबाना आज़मी और स्मिता पाटील!

इसके बाद इन दोनों अभिनेत्रियों ने समानातंर सिनेमा का रास्ता ही चुना। फिर सईद मिर्ज़ा की सटायर 'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यूँ आता हैं' (१९८०) में दोनों अलग अंदाज़ में साथ आयी। इसके बाद महेश भट्ट की फ़िल्म 'अर्थ' (१९८२) में दोनों का सही मायने में मुक़ाबला देखने को मिला। इसमें असुरक्षित महसूस करनेवाली बीवी की भूमिका में शबाना थी, तो उसके पति से रिश्ता रखनेवाली की भूमिका में स्मिता थी। लेकिन जब दोनों सामने आती हैं तब (हक़ के लिए) स्त्री शक्ति का अनोखा सीन दिखाई देता हैं!

हालांकि फिल्मकारों को इन दोनों के साथवाले सीन्स फ़िल्माने में जद्दोजहद करनी पड़ती थी। इसकी जानकारी विख्यात निर्देशक श्याम बेनेगल ने एक मंच पर बोलते हुए दी थी। उनकी 'मंडी' (१९८३) फ़िल्म के निर्माण के दौरान उनको इसके लिए काफ़ी प्रयास करने पड़े थे ऐसा उन्होंने बताया!

'उँच नीच बीच' (१९८९) इस वसी ख़ान की सत्य घटना पर आधारित फ़िल्म में आखरी बार ये दोनों साथ आयी। स्मिता जी गुज़र जाने के बाद यह प्रदर्शित हुई!

'कांन्स फ़िल्म फेस्टिवल' में श्याम बेनेगल, शबाना आज़मी और स्मिता पाटील!

मैं दोनों को मिला हूँ। स्मिता जी बहोत सरल, स्वाभाविक और तुरंत व्यक्त होनेवाली इमोशनल थी; तो शबाना जी अंतर्मुख और सोच कर अदब से व्यक्त होनेवाली कुछ प्रैक्टिकल हैं।

हाल ही में शबाना जी का ७० वा जनमदिन हुआ और स्मिता जी आज होती तो ६५ साल की होती।

ग़ौरतलब है की, आज जब भी स्मिता जी की बात किसी संगोष्ठी में निकलती हैं तो शबाना जी भावुक होकर उसके सम्मान में बोलती हैं!

- मनोज कुलकर्णी

 

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