मुशायरे को चार-चाँद लगानेवाले शायर!
शायर ख़ुमार बाराबंकवी. |
"आँखों के चरागों में उजाले न रहेंगे..
आ जाओ के फिर देखनेवाले न रहेंगे"
ऐसा रूमानी लिखने वाले पसंदीदा शायरों में से एक ख़ुमार बाराबंकवी का जन्मशताब्दी साल हाल ही में हुआ।
'बारादरी' (१९५५) फ़िल्म में में गीता बाली और अजित! |
शायराना माहौल में बड़े हुए उन्होंने जवानी की देहलीज पर शायरी करना शुरू किया था और शोहरत हासिल की थी। १९४५ के दौरान फ़िल्मकार ए. आर. कारदार और संगीतकार नौशाद ने उन्हें मुशायरे में सुना और उनकी 'शाहजहां' फिल्म का नग़्मा उनसे लिखवाया "चाह बर्बाद करेगी हमें मालुम था.." जो सैगल जी ने गाया। फिर १९४९ में उन्होंने 'रूप लेखा' फ़िल्म के लिए लिखा "तुम हो जाओ हमारे.. " जो सज्जाद हुसैन के संगीत में मोहम्मद रफ़ी और सुरिंदर कौर ने गाया।
के. आसिफ की फ़िल्म 'लव एंड गॉड' (१९८६) में निम्मी और संजीव कुमार! |
वैसे आगे खुमार जी के गाने मशहूर होतें रहें जैसे की "एक दिल और तलबगार है बहुत..", "दिल की महफ़िल सजी है चले आइए..", "साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं.." और फ़िल्म 'जवाब' से के. आसिफ की 'लव एंड गॉड' तक! लेकिन फ़िल्म संगीत का माहौल उन्हें रास नहीं आया। वे मुशायरा के शायर थे और क्लासिक ग़ज़ल के तरफ़दार रहें। उनकी गज़लें मेहदी हसन, ग़ुलाम अली और जगजित सिंह जैसों ने गायी है।
मुशायरा के शायर ख़ुमार बाराबंकवी! |
खुमार जी की शायरी 'शब-ए-ताब' और 'आतिश-ए-तर' ऐसी किताबों में प्रसिद्ध हुई। साहिर की 'परछाइयाँ' की तरह ये भी संगीत से न सजी। शायरों की कलम की यही परेशानी रही!
उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी ने सम्मानित किया और यहाँ काफी अवार्ड्स मिले। तथा पाकिस्तान में भी वे सम्मानित हुए! दुबई में और यहाँ उनके सम्मान में 'जश्न-ए-ख़ुमार' जैसे जलसे भी आयोजित हुए।
उनकी "हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए" ग़ज़ल उन्हीकी आवाज़ में सुनने की बात ही कुछ और हैं!
उन्हें यह सुमनांजलि!!
- मनोज कुलकर्णी
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