Tuesday 23 March 2021

संवेदनशील लेखक-फ़िल्मकार सागर सरहदी!



सागर सरहदी की 'बाज़ार' (१९८२) के "देख लो आज हमको.." गाने में सुप्रिया पाठक और फ़ारूक़ शेख़!
"देख लो आज हमको जी भरके
कोई आता नहीं है फिर मरके."

शादी का जोड़ा पहन के अपने महबूब को मिलने आयी ब्याही जा रही (नहीं बेचीं जा रही) जवान लड़की की यह कैफ़ियत
मिर्ज़ा शौक़ की क़लम से उतरी और ख़य्याम की मौसिक़ी में जगजीत कौर की दर्दभरी आवाज़ में बयां हुई..
परदे पर फ़ारूक़ शेख़ के सामने बड़ी संजीदगी से साकार किया था सुप्रिया पाठक ने।

फ़िल्म थी समकालिन वास्तव दर्शाती 'बाज़ार' (१९८२) और इसके यथार्थवादी निर्देशक थे सागर सरहदी!
आज वो इस जहाँ से रुख़सत होने की ख़बर के बाद, मेरी नम आँखों के सामने उनकी इस असरदार सामाजिक फ़िल्म का यह दृश्य आया।
बासु भट्टाचार्य की फिल्म 'अनुभव' (१९७१) में संजीव कुमार और तनुजा!

अब्बोत्ताबाद (अब पाकिस्तान में) के बफ़ा गांव में १९३३ में जन्मे उनका असल में नाम था गंगा सागर तलवार! बटवारे के बाद वे दिल्ली आए और आगे उर्दू में लघु कथा लिखने लगे। बाद में रंगमंच की तरफ मुड़ते हुए यह सागर सरहदी 'इप्टा' से जुड़ गए। 

फिर सिनेमा की तरफ उनका रुझान हुआ और वे बम्बई आकर फ़िल्में लिखने लगे। १९७१ में विख्यात निर्देशक बासु भट्टाचार्य की पति-पत्नी संबंधों पर, संजीव कुमार-तनुजा की बेहतरीन अदाकारी वाली 'अनुभव' इस फिल्म के संवाद उन्होंने लिखें। इस फ़िल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला!

लेखक सागर सरहदी जी का सम्मान करते अपने बॉलीवुड के रूमानी फ़िल्मकार यश चोपड़ा!
फिर अपने लोकप्रिय रूमानी फ़िल्मकार यश चोपड़ा ने १९७६ में अपनी फ़िल्म 'कभी कभी' की पटकथा लिखने के लिए उन्हें बुलाया। यशजी की त्रिकोणीय प्रेमकथा पर फ़िल्मों के चलते (उनकी पत्नी पामेला चोपड़ा ने लिखी) प्यार खोए शायर और उसके इर्दगिर्द आगे बढ़ती  हुई यह कहानी थी। सुपरस्टार अमिताभ बचन, शशी कपूर और राखी की अदाकारी की इस फ़िल्म को सागर सरहदी ने बख़ूबी पटकथा में उतारा! इसके संवाद के लिए उन्हें 'फिल्म फेयर अवार्ड' मिला! बाद में यशजी की ज़्यादातर उसी फार्मूला पर फ़िल्मे वे लिखते गए। इस में अहम रही अमिताभ-जया बच्चन और रेखा इस उस ज़माने में सेन्सिटिव्ह रही (रियल) त्रिकोणीय प्रेम पर यशजी ने खुद निर्देशित की 'सिलसिला' (१९८१), जिसकी पटकथा उनके साथ सरहदी जी ने लिखी! फिर ऋषि कपूर और विनोद खन्ना के साथ श्रीदेवी की मशहूर 'चाँदनी' (१९८९) के संवाद उन्होंने लिखें। इसे 'सर्वोत्कृष्ट लोकप्रिय फ़िल्म' का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला!

यश चोपड़ा की फ़िल्म 'सिलसिला' (१९८१) में रेखा, अमिताभ और जया बच्चन!
इसके आलावा यशजी निर्मित, दूसरे निर्देशकों की फ़िल्में भी सरहदी जी ने लिखीं। जैसी की राखी, नीतू सिंह और ऋषि कपूर अभिनीत 'दूसरा आदमी' (१९७७) जो रमेश तलवार ने बनायी थी। फिर कश्मीर की वादियों में बनी फ़ारूक़ शेख़ के साथ पूनम ढिल्लों की 'नूऱी' (१९७९) संवेदनशील कलाकार मनमोहन कृष्ण ने निर्देशित की थी। इससे अलग जॉनर की दूसरे निर्देशकों की फ़िल्में भी उन्होंने लिखी जैसे की राम माहेश्वरी की 'कर्मयोगी' (१९७८) जिसमे 'जानी' राज कुमार दोहरी भूमिका में थे और उनके संवाद सरहदी जी ने लिखें थे। बाद में ख़ूबसूरत दिव्या भारती की ऋषि कपूर और शाहरुख़ ख़ान के साथ 'दीवाना' (१९९२) के और हृतिक रोशन की पहली हिट 'कहो ना प्यार है' (२०००) के संवाद उन्हीके थे।
'बाज़ार' (१९८२) के दरमियान सागर सरहदी और अभिनेत्री स्मिता पाटील!

दरमियान, १९८२ में सागर सरहदी जी ने अपने यथार्थवाद को लेकर 'बाजार' यह मुस्लिम सोशल फ़िल्म निर्देशित की।..और समाज में गरीब लड़कियों का शादी के नाम पर (अरबों से) कैसा व्यापार होता है इस गंभीर समस्या को दर्शाया! शुरू में उल्लेखित जैसे जानेमाने शायरों के अर्थपूर्ण नग्में इसमें थे, जैसे की बशर नवाज़ और मख़दूम मोहिउद्दीन के। उसमें तलत अज़ीज़ और लता मंगेशकर जी ने गायी "फिर छिड़ी रात बात बात फूलों की.." यह नज़्म और फ़ारूक़ शेख़-सुप्रिया पाठक की उस पर रूमानी अदाकारी मुझे बहुत भाती है।  इसके लिए सुप्रिया पाठक को 'सर्वोत्कृष्ट सहायक अभिनेत्री' का 'फिल्म फेयर अवार्ड' मिला आख़िर २०१८ में, उन्होंने खुद लिखी और निर्देशित की समकालिन सामाजिक विषय पर बनी फ़िल्म 'चौसर' प्रदर्शित हुई!

बहरहाल, इस कमर्शियल इंडस्ट्री में अपनी स्वतंत्र यथार्थवादी दृष्टी से सागर सरहदी जी इतनी फ़िल्में बना नहीं सके। फिर भी जो चंद उन्होंने बनायीं वह समानांतर सिनेमा को नया आयाम देनेवाली और सराहनीय रहीं।

उनको मेरा सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

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