Wednesday 17 March 2021

याद..संगीतकार गुलाम मोहम्मद जी की!


'पाकीज़ा' (१९७१) के "मौसम है आशिकाना" गाने में मीना कुमारी!
"मौसम है आशिकाना
ऐ दिल कहीं से उनको
ऐसे में ढूंढ लाना.."

मेरे पसंदीदा रूमानी गानों में से एक..
 ५० सालकी देहलीज़ पर फ़िल्म 'पाकीज़ा' का
लता मंगेशकर जी ने बेहतरीन गाया हुआ और मीना कुमारी ने उसी जज़्बे के साथ साकार किया हुआ।
इसे अपने लाजवाब संगीत से सजानेवाले गुलाम मोहम्मद जी की यह आख़री मास्टर कम्पोज़िशन..आज उनका स्मृतिदिन!

बीकानेर के संगीत घराने में पैदा हुए गुलाम मोहम्मद का १९३२ के दौरान फ़िल्म संगीत में प्रवेश हुआ.. 'सरोज मूवीटोन' की 'राजा भर्थारी' से..(अपने वालिद की तरह) बतौर तबला वादक! बाद में बम्बई फ़िल्म इंडस्ट्री में वे १५ साल मशहूर संगीतकार नौशाद अली और अनिल बिस्वास के सहाय्यक रहे।
'दिल-ए-नादान' (१९५३) के पोस्टर में तलत महमूद, श्यामा और पीस कँवल!

ग़ौरतलब, १९४७ में गुलाम मोहम्मद स्वतंत्र रूप से संगीत देने लगे..वह फ़िल्म थी 'टाइगर क्वीन'! फिर 'गृहस्थी' (१९४८) और 'दिल की बस्ती (१९४९) जैसी फ़िल्में उनके संगीत में ढलने लगी। शुरू में शकील बदायुनी जी के गीत उन्होंने संगीतबद्ध किएं। जिसमें 'पारस' (१९४९) का मोहम्मद रफ़ी और शमशाद - बेग़म ने गाया "मोहब्बत में किसे मालूम था." और मलिका-ए-हुस्न मधुबाला अभिनीत..
एम्. सादिक़ की 'परदेसी' (१९५०) का लता मंगेशकर ने गाया "जिया लागे नहीं मोरा.." और नर्गिस-राज कपूर की 'अम्बर' (१९५२) का मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर ने गाया "शमा जली परवाना आया.." जैसे गानें थें। इसी में थी क्लासिक म्यूजिकल ए. आर. कारदार की 'दिल-ए-नादान' (१९५३) जिसमें श्यामा के साथ गायक तलत महमूद नायक थे और उन्होंने गाया "ज़िन्दगी देनेवाले सुन, तेरी दुनिया से दिल भर गया.." दिलों को छू गया!

'मिर्ज़ा ग़ालिब' (१९५४) के पोस्टर में भारत भूषण और सुरैया!
..और १९५४ में सोहराब मोदी की फ़िल्म आयी 'मिर्ज़ा ग़ालिब' जिसमें उर्दू के इस महान शायर की नज़्में और ग़ज़लों को गुलाम मोहम्मद जी ने अपने संगीत से चार चाँद लगाएं। इसकी नायिका-गायिका सुरैया के "नुक़्त चिन है..", "आह को चाहिए एक उम्र.." और "ये ना थी हमारी क़िस्मत.." और तलत महमूद ने उनके साथ (भारत भूषण के लिए) गाए "दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है.." जैसे गीत बाक़माल रहें। उनके इस संगीत ने 'एच एम् व्ही' की 'सारेगामा गोल्डन डिस्क' जीती। और 'सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म' के साथ संगीत का राष्ट्रीय सम्मान!

इसके बाद सोहराब जी की ही 'कुंदन' (१९५५) फ़िल्म का उन्होंने सगीत दिया इसमें रफ़ी जी ने गाया "नौजवानों भारत की तक़दीर बना दो.." अहम रहा! फिर 'पाक़ - दामन' (१९५७) और 'शमा' (१९६१) जैसी फ़िल्मों का संगीत देने के बाद, गुलाम मोहम्मद जी के पास आयी क़माल अमरोही की शानदार 'पाकीज़ा' (१९७१) जो उनकी आख़री रही। कोठे की साहिबजान और नवाब का पाक़ प्यार तथा उनके प्रति समाज का रवैया पर यह फ़िल्म अमरोही जी ने ही लिखी थी। साथ ही इस के कुछ गीत भी, जैसे ऊपर दिया हुआ! इसमें मजरूह - सुल्तानपुरी जी का "इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा." और कैफ़ी आज़मी जी का "चलते चलते यूँही कोई मिल गया था.." जैसे लता मंगेशकर जी ने गाएं गानें और उसपर के मुज़रा नृत्यों में मीना कुमारी ने उस किरदार के दर्द को ख़ूब बयां किया।

'पाकीज़ा' (१९७१) के पोस्टर में मीना कुमारी और राज कुमार!
'पाकीज़ा' में गुलाम मोहम्मद जी के संगीत ने बड़ा योगदान दिया। लेकिन दर्शक-श्रोताओं पर उसका लाजवाब असर देखने के लिए वे रहे नहीं। हालांकि, फ़िल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक पूरा करने के लिए नौशाद जी को आना पड़ा। वैसा ही मीना कुमारी के बारे में भी..उसके जाने के बाद फ़िल्म मशहूर हुई।

यह अमर भूमिका और संगीत की अनोखी मिसाल रहीं!..इन दोनों के लिए इसका, 
मीना कुमारी-राज कुमार पर फ़िल्माया और मोहम्मद रफ़ी-लता मंगेशकर ने गाया..
कैफ़ भोपाली जी का यह गीत याद आया..
"चलो दिलदार चलो..चाँद के पार चलो.."

उन्हें सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

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