Thursday 11 March 2021

साहिरजी और लताजी..वो भी एक दौर!

जानेमाने शायर-गीतकार साहिर लुधियानवी और स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकर एक-दूसरे की तारीफ़ करतें!
 
जानेमाने शायर तथा गीतकार साहिर लुधियानवी की जन्मशताब्दी अब सम्पन्न हुई। अपने सिनेमा में उनके गीत गूँजने को भी अब सत्तर साल हो गएँ हैं!

'नौजवान' (१९५१) फ़िल्म के "ठंडी हवाएं.." गाने में नलिनी जयवंत।
पिछले साल मैंने साहिर जी के जीवन के 
कुछ अहम पहलुँओं पर रौशनी डालनेवाले आर्टिकल्स लिखें। जिसमें उनकी और ख्यातनाम पंजाबी कवयित्री अमृता प्रीतम 
की मोहब्बत की दास्ताँ भी थी!

अब रही हुई महत्वपूर्ण बात, जिस से अपने उसूल के पक्के साहिर जी मालूम होंगे! 
'गीत में शायर या कवी के शब्द ज़्यादा अहमियत रखतें हैं और उसके बाद संगीत तथा गानेवालें' ऐसा मानना था उनका! कहतें हैं, इसलिए गायिका लता मंगेशकर से (कुछ एक रुपैया) ज्यादा मानधान की मांग की थी उन्होंने! इससे दोनों में दरार पैदा हुई थी।

'हम दोनों' (१९६१) फ़िल्म के "अल्लाह तेरो नाम.."  गाने में नंदा।
हालांकि, साहिर को गीतकार की हैसियत से पहली शोहरत जिससे मिली वह गाना लताजी ने ही गाया था "ठंडी हवाएं लेहरा के आयें.." १९५१ में बनी महेश कौल की 'नौजवान' इस फ़िल्म में नलिनी जयवंत ने वह साकार किया था। ख़ैर, दरमियान जो हुआ उस वजह से उन्होंने साहिर के गीत न गाने का सोचा। बाद में, प्रख्यात फ़िल्मकार बी. आर. चोपड़ा जी ने मनाने पर लताजी राजी हो गई! फिर उन्ही के 'साधना' (१९५८) फ़िल्म का साहिर जी का यथार्थवादी गीत लताजी ने गाया "औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया.." जिसे वैजयंतीमाला ने वैसे ही दर्दभरे भाव से साकार किया।

'आँखें' (१९६८) के "मिलती है ज़िंदगी में.." गाने में माला सिन्हा
इसके बाद देव आनंद की १९६१ में बनी, विजय आनंद निर्देशित फ़िल्म 'हम दोनों' के लिए सेक्युलर साहिर जी ने बड़ा यथार्थवादी गीत लिखा "अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम..सबको सन्मति दे भगवान.." इसे जयदेव जी के संगीत में लता जी ने बड़ी भावुकता से गाया और नंदा जी ने सात्विकता से साकार किया। इसकी अहमियत निरंतर महसूस होंगी! फिर रामानंद सागर जी की फ़िल्म 'आँखें' (१९६८) का साहिर का रोमैंटिक गीत "मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी-कभी.." लताजी ने बख़ूबी गाया और ख़ूबसूरत माला सिन्हा ने लाजवाब साकार किया

'ताजमहल' (१९६३) फ़िल्म के "जो वादा किया वो.." गाने में प्रदीप कुमार और बिना राय।
हमारे अज़ीज़ गायक मोहम्मद रफ़ी जी के साथ लता जी ने गाएं साहिर जी के रूमानी युगल गीत भी बेहतरीन रहें। जैसे, १९६३ में निर्मित एम्. सादिक़ निर्देशित मुस्लिम सोशल 'ताजमहल' का दिल को छूनेवाला "जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा.." जिसे प्रदीप कुमार और बिना राय ने अपनी अदाकारी से यादगार बनाया! फिर 'इज़्ज़त' (१९६८) फ़िल्म का "ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं, हम क्या करें.." जिसे तनुजा और धर्मेंद्र ने उसी गहनता से साकार किया था।

साहिर जी के ऐसे कई गीतों को आगे लता जी की आवाज़ मिलती रही और दोनों एक-दूसरे की तारीफ़ करते रहें, जिसकी मिसाल ऊपर की तस्वीर देती हैं।

ख़ैर, मैं तो दोनों को बहुत मानता हूँ और लता मंगेशकरजी का बड़ा आदर करता हूँ। मेरे 'चित्रसृष्टी' संगीत विशेषांक को, अपने पास बिठा कर लता जी का सराहना मेरे लिए एक सुनहरा पल बनके रह गया है!

- मनोज कुलकर्णी

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