Monday 15 March 2021

'आनंद' मरतें नहीं..!


'आनंद' (१९७१) फ़िल्म के "ज़िंदगी कैसी हैं पहेली.." गाने में राजेश खन्ना!

"ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए, लम्बी नहीं..!"
यह गहरी सोच देकर परदेपर छोटी लेकिन सभी के दिलों को हिलानेवाली बड़ी ज़िंदगी जी कर रुलाके गया था..'आनंद' सुपरस्टार राजेश खन्ना!
संवेदनशील निर्देशक हृषिकेश मुख़र्जी की वह हृदयस्पर्शी फ़िल्म प्रदर्शित होकर अब ५० साल हो गएँ हैं।

'इकिरु' (१९५२) में ताकाशी शिमुरा!

विख्यात जापानी फ़िल्मकार अकिरा कुरोसवा की क्लासिक फ़िल्म 'इकिरु' (१९५२) से यह प्रेरित थी। हालांकि इसका ज़िक्र नहीं किया गया! दक़ियानूसी काम में उलझे बाबू वातानबे को जब मालूम होता है की उसे कैंसर हैं तब वो बची हुई ज़िंदगी अपनी मर्ज़ी से जीने का सोचता हैं और उसमे अर्थ खोजने की कोशिश करता है। यह स्टोरी प्लाट था उसका, जिसे कुरोसवा ने जानेमाने जापानी स्क्रीनरायटर्स हिदेओ ओगुनी और शिनोबू हाशिमोतो के साथ लिखा था। और दिग्गज अभिनेता ताकाशी शिमुरा ने उसे परदेपर जैसे जिया था। 'बर्लिन फ़िल्म फेस्टिवल' में सम्मान के साथ इसे आंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना भी मिली!

विख्यात जापानी फ़िल्मकार अकिरा कुरोसवा
ख़ैर, १९७० के दौरान बिमल दत्ता, बिरेन त्रिपाठी, डी एन मुखर्जी के साथ हृषिदाने 'आनंद' फ़िल्म को लिखा। ताज्जुब की बात यह थी की, इसके को-प्रोडूसर एन सी सिप्पी ने पहले किशोर कुमार और मेहमूद को इसके लिए सोचा था! लेकिन कुछ ग़लतफ़हमी से हृषिदा को किशोरदा के यहाँ बुरा अनुभव आया। तो उससे ख़फ़ा हृषिदा के मन में इस किरदार के लिए आया..राज कपूर, जिसे पहले फ़िल्म 'अनाड़ी' (१९५९) में वे निर्देशित कर चुके थे। वो उन्हें "बाबू मोशाय" बुलाता था!


'आनंद' (१९७१) के क्लाइमेक्स में राजेश खन्ना, सुमिता सन्याल और अमिताभ बच्चन!
बहरहाल, आख़िर यह फ़िल्म सुपरस्टार राजेश खन्ना के पास आयी। फिर गुलज़ार ने हृषिदा के साथ इसकी पटकथा, तथा संवाद और कुछ गीत भी लिखें। उनकी शैली के अनुसार यह फ्लैशबैक से शुरू होती है, जिसमे डॉ. भास्कर को उसके उपन्यास..'आनंद' के लिए सम्मानित किया जा रहा है। वो कहता है, 'दरअसल यह उसके डायरी के पन्ने है जो (कैंसर के मरीज) आनंद की ज़िदगी को बयां करतें हैं!'
यह किरदार धीरगंभीर (तब उभरता) अमिताभ बच्चन ने निभाया, जिसे 'आनंद' राजेश खन्ना इसमें "बाबू मोशाय" कहता हैं।
'आनंद' (१९७१) फ़िल्म के संवेदनशील निर्देशक हृषिकेश मुख़र्जी

फिर अतीत में, आनंद के मज़ाकिया रवैये से तंग आकर भास्कर जब उसे पूछता है 'मालूम भी है तुम्हे क्या बीमारी है?' तब आनंद कहता है "हाँ, मुझे कैंसर है और मै ज़्यादा से ज़्यादा छः महिने ज़िंदा रहूँगा!" उस की ज़िंदादिली देखकर यह डॉक्टर उसका क़ायल होता है। अपनी सेहत को लेकर परेशान डॉ. भास्कर को संभालते आनंद तब बंगाली में कहता हैं, “ऐ बाबूमोशाय, ऐतो भालो बाशा भालो नाय, इतना प्यार अच्छा नहीं!" बाद में अपने तरीके से बची हुई ज़िंदगी बसर करनेवालें (अपना दुख दबा कर) सबके जीवन में खुशियाँ भरनेवाले इस आनंद को राजेश खन्ना ने परदेपर बाकमाल जिया हैं। और सबके दिलों में पहुँचकर आँखें नम करता गया हैं।

इसके क्लाइमेक्स में आनंद जान चली जाते समय, भास्कर की परेशानी देखकर नर्स को कहता है "मुझे बचाओ, मेरी मौत वो बर्दाश्त नहीं कर पाएगा!" इसके आगे बजती टेप में भास्कर की कविता के बाद..उसे पुकारते जान छोड़ चुके आनंद के पास भास्कर दौड़ा आता हैं। तब "बातें करो मुझसे.." कहनेवाले भास्कर को उस टेप का अगला हिस्सा सुनाई देता हैं, जिसमे मूल कलाकार रहा यह शख़्स अपनी खुशनुमा आवाज़ में सुनाई देता हैं "ज़िंदगी और मौत तो उपरवाले की हाथों में हैं जहाँपनाह.." आख़िर में उसका "हाह s हाह s हाह s.." हंसना! यह सीन गुलज़ार-हृषिदा टच की अनोखी मिसाल हैं, जिसमें राजेश खन्ना ने किरदार से जाते हुए, पूरी जान डाली हैं! बहोत हेवी और रुलानेवाला हो गया हैं यह!

शुरू से आख़िर ऐसा दृष्यानुसंधान सिनेमैटोग्राफर जयवंत पाठारे के अर्थपूर्ण क्लोज़अप्स से और खुद अपने सूचक संकलन से हृषिदा ने बड़ा असरदार बनाया हैं। अहम भूमिका के राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के साथ उसका प्यार सुमिता - सन्याल, डॉक्टर की भूमिका में रमेश देव से ललिता पवार और जॉनी वॉकर तक सभी कलाकारों ने इसमें अपना सार्थ योगदान दिया हैं। ग़ौरतलब की, राजेश की आवाज़ बने किशोर का एक भी गाना इसमें नहीं! इसके गीत भी गहरा अर्थ समाएं हैं, जिसमें गुलज़ार की कविता हैं और मन्ना डे ने गाया योगेश जी का सलिल चौधरी के संगीत में ढला "ज़िंदगी कैसी हैं पहेली..."

१९७१ में प्रदर्शित 'आनंद' हिट रही और इसे 'सर्वोत्कृष्ट हिंदी फ़िल्म' का राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ। साथ ही 'फ़िल्मफेयर' के छः अवार्ड्स मिलें, जिसमें निर्देशक-लेखक हृषिदा, गुलज़ार के साथ राजेश खन्ना को 'सर्वोत्कृष्ट अभिनेता' का पुरस्कार शामिल था।

यह 'आनदं' दर्शकों के दिलों पर छा गया!..और हमेशा रहेगा!!

- मनोज कुलकर्णी

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