Sunday, 21 February 2021

नूतन की सर्वश्रेष्ठ 'सुजाता'!


"जलते हैं जिसके लिये, 
तेरी आँखों के दिये.."

तलत ने गायी यह मजरूह की ग़ज़ल टेलीफोन के ज़रिये सुनील दत्त जब सुनाता हैं, तब उसपर संवेदनशील नूतन के 'सुजाता' की मनोव्यथा को व्यक्त करनेवालें भाव दिल हिलां देतें है।..आज यह याद आकर मेरी आँखें नम हो गई!

अपने भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों में से एक...नूतन जी का आज ३० वा स्मृतिदिन।

फ़िल्मकार बिमल रॉय
ऐसे वक़्त उनकी बेहतरीन व्यक्तिरेखाओं में से  इस वास्तवदर्शी 'सुजाता' को आज याद किया! श्रेष्ठ फ़िल्मकार बिमल रॉय की यह चित्रकृति साठ साल पहले प्रतिष्ठित 'कांन्स फ़िल्म फेस्टिवल' में दिखाई गयी थी।

अपने देश की जाती व्यवस्था पर भाष्य करनेवाली सुबोध घोष की इसी नाम की बंगाली कथा पर नबेंदु घोष ने इसकी पटकथा लिखी थी।

हालांकि, इससे पहले 'बॉम्बे टॉकीज' ने देविका रानी को लेकर अपनी क्लासिक फ़िल्म 'अछूत कन्या' (१९३६) से यह मुद्दा उठाया था; लेकिन 'सुजाता' (१९५९) में बिमल रॉय का प्रखर वास्तव निर्देशन और नूतन की अति स्वाभाविक प्रतिमा से इस सामाजिक विषय को अधिक प्रभावी बनाया।

मुझे अब भी याद है इसका एक श्रेष्ठ्तम सीन..महात्मा गांधीजी के स्टैचू के पास बैठी सुजाता की व्यथा को चोटी पर ले जाने वाला! सिनेमैटोग्राफर कमल बोस की कल्पकता और नूतन के गहरे हावभाव से यह बहुत असरदार हुआ था।

'फ़िल्मफ़ेअर' पुरस्कारों के साथ इसे 'राष्ट्रीय' सम्मान प्राप्त हुआ।

लेकिन इस परिस्तिथी में अब भी कुछ परिवर्तन नहीं आया है!

प्रतिभाशाली अभिनेत्री नूतन जी को भावांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

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