Wednesday 19 October 2022

"तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई,
वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए।
इस सई-ए-करम को क्या कहिए,
बहला भी गए..तड़पा भी गए।।"


ऐसी जज़्बाती रूमानियत जिनकी कलम में थी वे थे, उर्दू के मशहूर शायर..असरार-उल-हक़ याने मजाज़ लखनवी!
ग़ज़ल, नज़्म में रूमानी और परिवर्तनवादी रचनाओं के लिए वे जाने जाते थे। 'आहंग', 'नज़र-ए-दिल', 'ख़्वाब-ए-सहर', 'वतन आशोब' और 'शब-ए-तर' ये उनकी किताबें प्रसिद्ध हैं!
जानेमाने फ़िल्म लेखक-गीतकार जावेद अख़्तर जी के वे मामू थे!


आज १११ वे यौम-ए-पैदाइश पर मजाज़ जी को सलाम!!


- मनोज कुलकर्णी

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