Thursday 22 September 2022

'छेलो शो' 'ऑस्कर' के लिए!?


इतालवी फ़िल्म 'सिनेमा पारादीसो' (१९८८) और गुजराती फ़िल्म 'छेलो शो' (२०२१).

सियासी माहौल और वहां होने जा रहे चुनाव के मद्देनज़र, गुजराती फ़िल्म 'छेलो शो' (२०२१) का चयन 'ऑस्कर' के लिए होना कोई आश्चर्य की बात नहीं! लेकिन परेशानी इस बात की है की, यह फ़िल्म प्रेरित (या कॉपी?) हैं 'सिनेमा पारादीसो' (१९८८) इस 'ऑस्कर' प्राप्त इतालवी फ़िल्म की! विश्व सिनेमा की मेरी एक पसंदीदा फिल्म!

ग्यूसेप टॉर्नेटोर लिखित-निर्देशित 'सिनेमा पारादीसो' यह फ़िल्म चलती-फिरती तस्वीरों के साथ लगाव की उनकी बचपन की यादों से जुडी थी! इसमें थिएटर प्रोजेक्शनिस्ट से फ़िल्म की जिज्ञासावाले लड़के की दोस्ती को बड़ी संवेदनशीलता से दर्शाया गया। सल्वाटोर केसियो और फिलिप नोएर्ट ने स्वाभाविक रूप से ये भूमिकाएँ निभाईं!

यहाँ गुजराती फ़िल्म 'छेलो शो' का कथासूत्र भी उसीसे साधर्म्य दिखाता हैं ऐसा ट्रेलर देखते ही समझ में आता हैं। इसमें एक गरीब बच्चे का सिनेमा के लिए जुनून हैं और वह भी यह देखने के लिए प्रोजेक्शनिस्ट से नजदीकी बढ़ाता हैं। भावेश श्रीमाली के साथ भाविन राबरी ने यह भूमिका उसी जूनून से निभाई हैं! यह फ़िल्म भी इसके निर्देशक पान नलिन की बचपन की यादों से प्रेरित सेमी-ऑटोबायोग्राफिकल कहलाती है!

कुछ आंतराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में शामिल हो चुकी 'छेलो शो' की संक्षिप्त झलक भी तुरंत याद दिलाती हैं 'सिनेमा पारादीसो' की, जिसने 'ऑस्कर' की 'सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म' का अवार्ड जीता था। तो इसी सम्मान के लिए एक ही कथासूत्र की फ़िल्म कैसे पात्र होती हैं यह सवाल खड़ा होता हैं!

हिंदी फ़िल्म 'न्यूटन' (२०१७) और ईरानी फ़िल्म 'सीक्रेट बैलेट' (२००१).
इससे पहले 'न्यूटन' (२०१७) यह अमित मसुरकर की फ़िल्म 'ऑस्कर' के लिए भेजी गयी थी, तब भी ऐसा हुआ था। 'सीक्रेट बैलेट' (२००१) इस बाबक पयामी निर्देशित ईरानी फ़िल्म की जैसी वह नक़ल थी! हालांकि तब वह इस पुरस्कार की स्पर्धा से बाहर भी हुई!

बहरहाल, मैंने कुछ साल पहले 'ऑस्कर और भारतीय सिनेमा : एक सिंहावलोकन!' यह मेरा रिसर्च आर्टिकल इस ब्लॉग पर प्रसिद्ध किया था! इसमें उस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए भेजी जानेवाली फ़िल्म के सही चयन के बारे में विस्तृत विवेचन था, जिसमें यूनिवर्सल अपील, ओरिजिनालिटी और फ़िल्म सभी दृष्टी से प्रगल्भ होने के मुद्दे समाविष्ट थे। इस प्रक्रिया में सिनेमा के सही जानकारों के समावेश पर भी जोर दिया था!

ख़ैर, इसमें अब भी कुछ परिवर्तन नज़र नहीं आता और वही किस्सा दोहराने की गुंजाइश दिखाई देती हैं!
फिर भी 'छेलो शो' को शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी

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