'अलबेला' क्रेज़ बरक़रार!
'अलबेला' (१९५१) फ़िल्म के "ओ बेटा जी.." गाने में भगवान दादा! |
सत्तर साल हुए भगवान दादा की 'अलबेला' फ़िल्म को, जिसमें उनके मशहूर डांस और चितलकर जी के गानों पर थिएटर झूम उठता था!
अब लगता है, अनुराग बासु की हिंदी फ़िल्म 'लूडो' ने 'अलबेला' का "ओ बेटा जी ओ बाबूजी किस्मत की हवा कभी नरम.." का नया वर्शन बख़ूबी इस्तेमाल किया!
इस कदर वह पॉपुलर हुआ है की, इंस्टाग्राम पर भी कुछ सेलेब्रिटीज के उसपर डांस करते विज़ुअल नज़र आएं!..और पिछले 'बिग्ग - बॉस' की सेंसेशन शहनाज़ गिल का भी उसपर डांस का वीडियो आया है!
भगवान दादा लिखित-निर्मित-निर्देशित 'अलबेला' (१९५१) में दिन में आर्टिस्ट होने के सपने देखनेवाले उस किरदार में बावर्चीख़ाने में काम के समय उन्होंने यह साकार करके धूम मचाई थी। इस के संगीतकार सी. रामचंद्र जी ने इसके लिए वाकई बर्तनोंके आवाज़ इस्तेमाल किएं थे और दादा के अंदाज़ में ही (मूल चितलकर नाम से) गाया था।
'अनारकली' (१९५३) में लता मंगेशकर जी ने गाए.. "ये ज़िन्दगी उसी की है जो किसी का हो गया.." जैसे तरल प्रेमगीत संगीतबद्ध करनेवाले प्रतिभावान सी. रामचंद्र जी दूसरी तरफ ऐसे गाने करके समय के आगे चले!
'अलबेला' के संगीत में उन्होंने बोंगो ड्रम्स, सेक्सोफोन्स जैसी वाद्यों का इस्तेमाल करके काफ़ी वेस्टर्न प्रयोग भी किए। जो उसमें "शोला जो भड़के, दिल मेरा धड़के.." और "ये दीवाना, ये परवाना.." जैसे (भगवानदादा-गीता बाली के) गानों के डांस में नज़र आतें हैं।
इसकी और एक मिसाल तो पहले १९५० में बनी 'समाधी' इस अशोक कुमार और नलिनी जयवंत की फ़िल्म के लिए उन्होंने संगीतबद्ध किए "गोरे गोरे ओ बांके छोरें.." गाने में ही मिलती है।
यह गाना भी आज के बॉलीवुड को लुभानेवाला है!
- मनोज कुलकर्णी
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