Thursday 12 November 2020

जबरदस्त अदाकार अमजद ख़ान!

सत्यजीत राय की फ़िल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' (१९७७) में अमजद ख़ान!

"कितने आदमी थे.?"
डायलॉग सुनते ही सामने आता है 'शोले' का गब्बर सिंह याने अमजद ख़ान!

रमेश सिप्पी की फ़िल्म 'शोले' (१९७५) में गब्बर अमजद ख़ान!
वही उसकी पहचान बनी! लेकिन वो एक जबरदस्त कलाकार था जिसने सिनेमा से पहले रंगमंच पर दमदार किरदार साकार किए थे।

भारतीय सिनेमा के एक दिग्गज कलाकार जयंत जी का यह साहबजादा था। १९५७ में 'अब दिल्ली दूर नहीं' में बतौर बालकलाकार अमजद परदे पर दिखा। फिर १९७३ में चेतन आनंद की 'हिंदुस्तान की कसम' में वो निगेटिव रोल में था। उसने जानेमाने फ़िल्मकार के. आसिफ को उनकी आखरी फिल्म 'लव एंड गॉड' के लिए असिस्ट भी किया।

संजीव कुमार और रमेश सिप्पी के साथ 'शोले' (१९७५) की शूटिंग में अमजद ख़ान!
लेकिन अमजद ख़ान को सिनेमा में पहचान मिली रमेश सिप्पी की लीजेंडरी फ़िल्म 'शोले' (१९७५) से। इसके लेखक सलीम ख़ान ने उसे गब्बर सिंह के किरदार के लिए चुना।..और चम्बल का वह कुप्रसिद्ध लहज़ा पूरी तरह से उसने किरदार में दिखाया! इसमें संजीव कुमार जैसे मंजे हुए कलाकार के सामने उसका परफॉर्मन्स दमदार रहा!

'याराना' (१९८१) फ़िल्म में अमिताभ बच्चन और अमजद ख़ान!
पहले के लीजेंड अजित जैसी पॉपुलैरिटी अमजद ख़ान ने हासिल की। बाद में सभी टॉप के नायकों के सामने वो ही विलन बनके आया। इसमें धर्मेंद्र ('चरस' में), अमिताभ बच्चन ('मुकद्दर का सिकंदर' में) और विनोद खन्ना ('इंकार' में) की कामयाब फ़िल्में थी। लेकिन बाद में उसने अपने किरदारों को अलग कुछ कॉमेडी अंदाज में ढाला, जैसे की फ़िरोज़ ख़ान की 'क़ुर्बानी' (१९८०) का इंस्पेक्टर और 'सत्ते पे सत्ता' (१९८२) का विलन! 'माँ कसम' (१९८५) के लिए तो उसे 'बेस्ट कॉमेडियन' का अवार्ड भी मिला!

कुछ अच्छे भले किरदार भी अमजद ख़ान ने साकार किए जैसे की १९८० में आयी 'हम से बढ़कर कौन' का भोलाराम और 'दादा' का इंटेंस रोल जिसके लिए उसने पुरस्कार जीता! बाद में 'याराना' (१९८१) में तो वो अमिताभ बच्चन का दिलदार दोस्त था। इसके लिए भी उसे अवार्ड भी मिला।

शशी कपूर की फ़िल्म 'उत्सव' (१९८४) में वात्सायन बने अमजद ख़ान!
दरमियान अमजद ख़ान के कुछ हटके किरदार निभाए। इसमें उसे चुना श्रेष्ठ फ़िल्मकार सत्यजीत राय ने 'शतरंज के खिलाड़ी' (१९७७) इस उनकी एकमात्र उर्दू फ़िल्म के लिए। इसमें नवाब वाजिद अली शाह का किरदार उसने बख़ूबी साकार किया। तो शशी कपूर की फ़िल्म 'उत्सव' (१९८४) में उसने 'कामसूत्र' लिखनेवाले वात्सायन की व्यक्तिरेखा की।

आख़िर दो फ़िल्में अमजद ख़ान ने निर्देशित भी की, इसमें 'अमीर आदमी, ग़रीब आदमी' (१९८५) कामयाब रही।..'एक्टर्स गिल्ड एसोसिएशन' के वे अध्यक्ष भी रहे!

दुर्भाग्य से बहोत जल्द वे इस दुनिया से रुख़सत हुए।  
आज उनका ८० वा जनमदिन..इसलिए यह याद!!

- मनोज कुलकर्णी


 

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