Friday 12 June 2020

दिग्गज ग़ज़ल गायक उस्ताद मेहदी हसन साहब!
"अब के हम बिछड़े तो ..
शायद कभी ख़्वाबों में मिले.."

अहमद फ़राज़ की यह रूमानी ग़ज़ल आज फ़िर मन में आयी..

इससे जुड़ा अपना रूमानी जज़्बा था ही.. लेकिन इसे गानेवाले उस्ताद मेहदी हसन जी का आज स्मृतिदिन!


यहाँ राजस्थान में जन्में मेहदी हसन के परिवार में मौसिक़ी जैसे राज कर रही थी! वालिद उस्ताद अज़ीम खां साहब से उन्होंने ध्रुपद गायकी सीखी। बटवारे के बाद पाकिस्तान गए वे वहां रेडिओ पर गाने लगे।

मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़!
१९५६ में वहां 'शिकार' फ़िल्म के "नज़र मिलाते हैं दिल.." गाने से वह पार्श्वगायन भी करने लगे।..मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़ की उन्होंने गायी "गुलों में रंग भरते बड़-ए-नौबहाऱ चले.." नज़्म से वह फ़िल्मोदयोग में चोटी पर पहुँचे! इसके अलावा उनकी गज़लें मेहदी जी ने गाकर लोकप्रिय की! बाद में तो.. 'मुशायरा' में खुद के बजाए फैज़ साहब उन्ही को अपनी शायरी तरन्नुम में सुनाने कहने लगे!

ग़ज़ल गातें उस्ताद मेहदी हसन जी !

बाद में मेहदी हसन जी यहाँ अपने भारत में भी ग़ज़ल सुनाने आतें रहें!..ग़ौरतलब की, २०१० के दौरान उनकी आखरी ग़ज़ल जो वहाँ-यहाँ 'सरहद' अल्बम से सुनने आयी वह थी फ़रहत शहज़ाद की लिखी..

"तेरा मिलना बहुत अच्छा लगे है.."


उन्हें सलाम!

- मनोज कुलकर्णी

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