भगवान का घर है!"
शकिल बदायुनी जी ने लिखा और नौशाद जी के संगीत में मोहम्मद रफ़ी जी ने गाया यह गीत मेरे पसंदीदा उदात्त गीतों में से एक!
महबूब ख़ान जी की क्लासिक 'अमर' (१९५४) में निम्मी जी, मधुबाला जी और दिलीप कुमार जी पर बड़ी भावुकता से फ़िल्माया यह गीत आता हैं क्लाइमैक्स में!
आज के दौर में इसकी ये पंक्तियाँ बहुत मायने रखती हैं...
"है पास तेरे जिसकी अमानत उसे दे दे
निर्धन भी है इंसान, मोहब्बत उसे दे दे
जिस दर पे सभी एक हैं बन्दे, ये वो दर है
इन्साफ का मंदिर है..!"
और जब भी यह देखता/सुनता हूँ आँखें नम हो जाती हैं..
"दुःख दर्द मिले जिसमे वोहीं प्यार अमर है!"
- मनोज कुलकर्णी
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