Sunday, 7 December 2025

'फिल्म अप्रिसिएशन' के अग्रणी..प्रोफेसर सतीश बहादूर!

'फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया' ('एफटीआईआई',पुणे) के हमारे 'फिल्म अप्रिसिएशन' के प्रख्यात प्रोफेसर सतीश बहादूर जी की यह जन्मशताब्दी!

प्रो. सतीश बहादूर जी (बीच में बैठे) की मौजूदगी में 'एफटीआईआई' में
प्रख्यात फ़िल्मकार अदूर गोपालकृष्णन जी के हाथों से
'फिल्म अप्रिसिएशन कोर्स' का सर्टिफिकेट लेता हुआ मैं!
१९८७-८८ में पुणे यूनिवर्सिटी से मेरे 'कम्युनिकेशन एंड जर्नलिज्म' ग्रेजुएशन के दौरान 'रानडे इंस्टिट्यूट' में हमारा फ़िल्म क्लब भी मै देख रहा था। उसमें कुछ महत्वपूर्ण वर्ल्ड क्लासिक्स दिखाएं। इसीमें अपने विश्वविख्यात फ़िल्मकार सत्यजित राय की 'अपु ट्राइलॉजी' पूरी दिखाई। तब इसके बाद हमारे 'फिल्म अप्रिसिएशन' के प्रोफेसर सतीश बहादूर सर का उसपर व्याख्यान भी रखा, जिसमें उन्होंने मेरे इस उपक्रम को भी सराहा!

उस ('बीसीजे') ग्रेजुएशन के बाद १९८९ में मैंने 'नेशनल फ़िल्म आर्काइव ऑफ इंडिया' (एनएफएआई) और 'फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया' ('एफटीआईआई') से पुणे में संयुक्त रूप से आयोजित 'फिल्म अप्रिसिएशन कोर्स' किया। इसमें फ़िल्म मीडिया की तकनीकी जानकारी उससे संबंधित अध्यापकों के मार्गदर्शन से मिली, जिसमें महत्वपूर्ण भूमिका रही प्रोफेसर सतीश बहादूर जी की! वर्ल्ड सिनेमा का अच्छा अध्ययन इसमें हुआ। सिनेमा की तरफ सूक्ष्म दृष्टि से देखने का विश्लेषणात्मक नज़रिया मिला।
मेरे 'चित्रसृष्टी' के 'एनएफएआई' में संपन्न हुए प्रकाशन समारंभ में (बाये से)
मैं, प्रो. सतीश बहादूर, 'राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय' के संस्थापक/
फ़िल्म हिस्टोरियन पी. के. नायर, दिग्गज फ़िल्मकार राम गबाले,
वहां के तत्कालीन निदेशक शशिधरन और फ़िल्मकार डॉ.जब्बार पटेल!

सत्यजित राय की 'पाथेर पांचाली' के वे ही बड़े माहीर माने जाते थे। इस बारे में मुझे 'एनएफएआई' के व्यक्ति ने एक किस्सा सुनाया था..वह ऐसा था कि एक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह के दरमियान सत्यजित राय, सतीश बहादूर और एक फॉरेन जर्नलिस्ट बात कर रहें थे। उस जर्नलिस्ट ने पूछा, "मिस्टर राय, आय हैव वन क्वेश्चन अबाउट 'पथेर पांचाली'!" तब उसको बीच में टोकते हुए मि. राय ने कहा "एनीथिंग अबाउट 'पाथेर पांचाली'..यू आस्क टू प्रोफेसर बहादूर, बिकॉज़ ही नोज बेटर देन मी!" उन्हें 'एशियन फ़िल्म फाउंडेशन', मुंबई की तरफ से 'सत्यजित राय मेमोरियल अवार्ड' भी प्रदान किया गया!

'फिल्म अप्रिसिएशन कोर्स' से पहले ही शुरू हुआ मेरा फ्री लांस फिल्म जर्नलिज्म फिर लगभग चार दशक बरक़रार रहा हैं। वर्ल्ड सिनेमा पर मैंने बहुत लिखा और उसपर मेरे 'चित्रसृष्टी' विशेषांक भी प्रसिद्ध किएं जिन्हे पुरस्कार भी मिले। इसके २००२ में हुए प्रकाशन समारंभ में प्रोफेसर बहादूर मौजूद थे और इन विशेषांकों में उन्होंने लिखा। सिनेमा के प्रति मेरे समर्पित कार्य की वे प्रशंसा करते थे!

उन्हें सुमनांजलि!!


- मनोज कुलकर्णी

Thursday, 4 December 2025



हाल ही में 'अंजुमन', पुणे द्वारा 'पलाश' इस कवियों की चुनी हुई काव्य रचनाओं की किताब का विमोचन हुआ! इसमें मेरी भी कुछ रूमानी शायरी शामिल हैं!

- मनोज कुलकर्णी (मानस रूमानी)
 
 

Wednesday, 3 December 2025

उदित नारायण..७०!

जानेमाने पार्श्वगायक उदित नारायण जी अब ७० वर्षं के हुए!

१९८८ में फ़िल्म 'क़यामत से क़यामत तक' के गानों से उन्हें शोहरत मिली। इसमें नायक बने आमिर ख़ान के लिए उन्होंने गाएं "ऐ मेरे हमसफ़र" जैसे गानें हिट हुए। बाद में आमिर के लिए ही "पहला नशा पहला ख़ुमार.." ('जो जीता वही सिकंदर'/ १९९२), शाहरुख़ ख़ान के लिए "जादू तेरी नज़र" ('डर'/१९९३) अक्षय कुमार के लिए "दिल तो पागल है.." (१९९७), सलमान ख़ान के लिए "चाँद छुपा बादल में.." (हम दिल दे चुके सनम/१९९९) ऐसे कई रूमानी गीत गाकर वे मशहूर होते गए। उन्होंने अपनी भाषा मैथिली से लेकर कई प्रादेशिक भाषाओँ में भी गीत गाएं।

उन्हें अब तक पांच 'फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार' मिले और चार 'नेशनल अवार्ड्स' मिले। तथा 'पद्मश्री' और 'पद्मभूषण' से भी वे सम्मानित हुए!

१९८९ में मैंने उदित जी का इंटरव्यू लिया था। तब प्यार से हुई मुलाकात की तस्वीर यहाँ हैं।

उन्हें शुभकामनाएं!

- मनोज कुलकर्णी

Tuesday, 2 December 2025

 ज़िंदादिल धरमजी..अलविदा!

 

ज़िंदादिल धर्मेंद्र जी!

'इज़्ज़त' (१९६८) के "क्या मिलिए" गीतदृश्य में धर्मेंद्र!
"क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिन की फ़ितरत छुपी रहे
नक़ली चेहरा सामने आए असली सूरत छुपी रहे.."


साहिर जी की लिखी यह नज़्म 'इज़्ज़त' (१९६८) फ़िल्म में संजीदगी से सादर की उन्होंने! इस फ़िल्मी दुनियाँ में ज़्यादातर नकली चेहरें लेके (ऑन स्क्रीन और ऑफ स्क्रीन) काम चलानेवालों में, अपनी असली पहचान संभाले हुए चंद जानेमाने कलाकारों में एक थे.. धर्मेंद्र जी! वो जैसे इंसान थे वैसे ही रहे! इसीलिए आख़िर वे जाने के बाद उनके इसी पहलू को सब याद कर रहें हैं!

'धरम वीर' (१९७७) फ़िल्म में धर्मेंद्र!
'फूल और पत्थर' (१९६६), 'शोले' (१९७५), 'धरम वीर' (१९७७) जैसी फ़िल्मों में उनके 'माचो मैन' जैसे किरदारों ने उन्हें 'ही मैन' कहा गया! लेकिन उन्होंने आम आदमी के नजदीक जानेवाले किरदार भी सादगी से निभाए। इसमें खास उल्लेखनीय रहे सत्य के साथ चलनेवाला फ़िल्म 'सत्यकाम' (१९६९) का आदर्शवादी और 'दोस्त' (१९७४) फ़िल्म में "आ बता दे ये तुझे कैसे जिया जाता है.." गाता ईमानदार मानव! साथ ही फ़िल्म 'चुपके चुपके' (१९७४) जैसे ह्यूमर से भरे किरदार भी उन्होंने बख़ूबी साकार किए।


शायराना मिज़ाज की रूमानियत भी उनके रोमैंटिक किरदारों में नज़र आती थी। जैसे 'बहारें फिर भी आएंगी' (१९६६) फ़िल्म में "आप के हसीन रुख़ पे आज नया नूर है.." पेश करते! 'प्यार ही प्यार' (१९६९) फ़िल्म में "मैं कहीं कवि न बन जाऊँ.." गानेवाले वे वाकई में खुद शायरी भी करते थे। 'नया ज़माना' (१९७१) फ़िल्म का उनका आशावादी लेखक का किरदार भी उल्लेखनीय रहा। 'एक महल हो सपनों का' (१९७५) फ़िल्म में उन्होंने कवि की भूमिका भी की।
धर्मेंद्र और हेमा मालिनी..हिट जोड़ी!

'ड्रीम गर्ल' हेमा मालिनी जी के साथ धर्मेंद्र जी की जोड़ी बहुत हिट रही। 'तुम हसीन मैं जवान' (१९७०), 'राजा जानी' (१९७२) से 'दिल्लगी' (१९७८), 'आस पास' (१९८१) ऐसी कई फ़िल्में उनकी लाजवाब रोमांटिक केमिस्ट्री से छायी रहीं। उन्हीं का जज़्बाती गीत "आजा तेरी याद आयी.." अब शायद हेमाजी के मन में आता रहेगा!


धर्मेंद्र जी को 'फिल्मफेयर', 'फिक्की', 'ज़ी सिने', 'आइफा' ऐसी संस्थाओं की तरफ से 'लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्डस' मिले। 'पद्मभूषण' से वे सम्मानित भी हुए!

याद आ रहा हैं धरमजी से हुआ दिलखुलास संवाद!!

उन्हें आदरांजलि!!!

- मनोज कुलकर्णी