सालगिरह पर गुफ़्तगू गुलज़ारजी से!
सरलता से मुख़ातिब होते आपके अल्फ़ाज़
जाड़ों की नर्म धुप या ग़र्मी में पत्तों की सरसराहट
क़तरा क़तरा ज़िंदगी में देते हैं सुकून!
अब आपसे कुछ विनम्रता से कहना हैं..
ग़ालिब के शेर का सहारा न ले, जैसे आपने "दिल ढूंढता हैं.." गीत में लिया।
बर्गमन का प्लॉट अपने सिनेमा में न लाएं, जैसे 'मौसम' में ही लाया।
तथा 'साउंड ऑफ़ म्यूजिक' का यहाँ 'परिचय' न दे।
और हाँ, "बीड़ी", "गोली" जैसे गाने भी शोभा नहीं देतें!
आपका जो अपना सादगी सा हैं वही आपसे आएं यह गुज़ारिश!
शुभकामनाएं!!
- मनोज कुलकर्णी
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