Tuesday 14 January 2020

"तुम जो मिल गए हो,
तो ये लगता है..
कि जहाँ मिल गया!"


या इससे भी आगे...

"उनको खुदा मिले..
है खुदा की जिन्हे तलाश
मुझको बस इक झलक मेरे 

दिलदार की मिले!"

इस कदर बेइंतहा जिनका रूमानीपन था, और..

"बस्ती में अपनी..
हिंदू मुसलमान जो बस गएँ
इंसान की शक्ल देखने को 

हम तरस गएँ..!"

ऐसा जिनका धर्मनिरपेक्ष मानवतावादी दृष्टिकोन था..

वह साम्यवादी संवेदनशील शायर क़ैफ़ी आज़मी जी को उनके १०१ वे जनमदिन पर सलाम!

- मनोज कुलकर्णी

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