Tuesday, 14 January 2020

"तुम जो मिल गए हो,
तो ये लगता है..
कि जहाँ मिल गया!"


या इससे भी आगे...

"उनको खुदा मिले..
है खुदा की जिन्हे तलाश
मुझको बस इक झलक मेरे 

दिलदार की मिले!"

इस कदर बेइंतहा जिनका रूमानीपन था, और..

"बस्ती में अपनी..
हिंदू मुसलमान जो बस गएँ
इंसान की शक्ल देखने को 

हम तरस गएँ..!"

ऐसा जिनका धर्मनिरपेक्ष मानवतावादी दृष्टिकोन था..

वह साम्यवादी संवेदनशील शायर क़ैफ़ी आज़मी जी को उनके १०१ वे जनमदिन पर सलाम!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday, 12 January 2020

"मैंने माँगी थी उजाले की फ़क़त इक किरन फ़राज़
तुम से ये किसने कहा आग लगा दी जाए..!"

...ऐसी तरक्कीपसंद या..

"अब के हम बिछडे तो शायद कभी खाँबो मे मिले
जिस तरह सूखें हुए फ़ूल किताबो में मिले..!" 

जैसी रुमानी शायरी करनेवाले..

आधुनिक ऊर्दू शायरी में एक मशहूर नाम सैद अहमद शाह..याने अहमद फ़राज़ साहब!
आज उनके जनमदिन पर उन्हे सुमनांजली!!


- मनोज कुलकर्णी

Friday, 10 January 2020

आज 'हिंदी दिवस'..
आणि 'मराठी साहित्य संमेलन' प्रारंभ!


भारतीय भाषाएं गौरव प्राप्त करें!!

- मनोज कुलकर्णी