चाँद मेरा दिल..!
'हम दिल दे चुके सनम' (१९९९) के "चाँद छुपा बादल में." गाने में सलमान खान-ऐश्वर्या राय! |
सुहानी चाँद रात के बाद आयी इस ईद के मौके पर..इससे जुड़े अपने सिनेमा के हसीन लम्हें याद आएं..जो आशिक़ाना मिज़ाज के हम जैसों के क़रीब हैं!
'बरसात की रात' (१९६०) के "मुझे मिल गया बहाना." गाने में श्यामा! |
"मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का
कैसी ख़ुशी ले के आया चाँद ईद का.."
लता मंगेशकर ने गाया यह गाना परदे पर श्यामा ने लाजवाब साकार किया था और ढ़ोलक बजा रही थी रत्ना..जिसके पति (भारत भूषण) इस फ़िल्म के नायक थे और नायिका..मलिका-ए-हुस्न मधुबाला!
'दिल ही तो है' (१९६३) के "निगाहें मिलाने को.." गाने में नूतन! |
"जब कभी मैंने तेरा चाँद सा चेहरा देखा
ईद हो या के ना हो, मेरे लिए ईद हुई..!''
वैसे अपने महबूब को चाँद मानने की बात हमारे सिनेमा के परदे पर हमेशा रूमानी तरीके से कहीं गयी हैं..जैसे की 'दिल्लगी' (१९४९) में नौशाद के धून पर ख़ूबसूरत गायिका-अभिनेत्री सुरैय्या का श्याम के साथ "तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी.." गाकर झूलना! तो अनंतकुमार और नंदा अभिनीत 'बरखा' (१९५९) में मुकेश और लता मंगेशकर का अच्छा डुएट था "एक रात में दो दो चाँद खिले..एक घुंगट में एक बदली में.."
'चौदवी का चाँद' (१९६०) के शीर्षक गीत में रूमानी होतें गुरुदत्त और वहिदा रहमान! |
बाद में 'मैं चुप रहूँगी' (१९६२) में तो राजेंद्र कृष्ण ने ऐसा लिखा था की जैसे प्रेमियों का नूर देखकर चाँद और चाँदनी भी शरमा गएँ हो! उनके गीत से सुनील दत्त इसमें मीना कुमारी को कहता हैं "चाँद जाने कहाँ खो गया..तुमको चेहरे से परदा हटाना न था.." उसपर मीना कुमारी उसे कहती हैं "चाँदनी को ये क्या हो गया..तुमको भी इस तरह मुस्कुराना न था.."
'मैं चुप रहूँगी' (१९६२) के "चाँद जाने कहाँ खो गया." गाने में सुनील दत्त और मीना कुमारी! |
'लव मैरेज' (१९५९) के "धीरे धीरे चल चाँद गगन में." गाने में देव आनंद और माला सिन्हा! |
बाद में एक वक़्त ऐसा आया जब प्रेमी ने चाँद से यह कहलवाया की, उसकी प्रेमिका जैसी ख़ूबसूरती आसमाँ में भी नहीं..इसमें आनंद बक्षी की शायरी ख़ूब रंग लायी..फ़िल्म 'अब्दुल्ला' (१९८०) के लिए उनके कलम से निकला नग़्मा उसी शायराना अंदाज़ में मोहम्मद रफ़ी ने गाया "मैंने पूछा चाँद से के देखा है कही मेरे यार सा हसीन..चाँद ने कहा चाँदनी की कसम नहीं.." और परदे पर संजय खान ने ज़ीनत अमान के साथ रूमानी तरीके से यह पेश किया!
'अब्दुल्ला' (१९८०) के "मैंने पूछा चाँद से." गाने में रूमानी अंदाज़ में ज़ीनत अमान-संजय खान! |
आगे भी अपनी महबूबा जैसा हुस्न चाँद के पास नहीं हैं ऐसा कहना हमारें सिनेमा की रूमानियत को निखारता गया..जैसे 'हम दिल दे चुके सनम' (१९९९) में ऐश्वर्या राय को लेकर सलमान खान कहता हैं "चाँद छुपा बादल में शरमा के मेरी जाना.."
ख़ैर, ईद की मुबारक़बाद!!
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी']
bahut hi sundar aalekh ....
ReplyDeleteShukriya!
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