Wednesday 5 June 2019

चाँद मेरा दिल..!


'हम दिल दे चुके सनम' (१९९९) के "चाँद छुपा बादल में." गाने में सलमान खान-ऐश्वर्या राय!

सुहानी चाँद रात के बाद आयी इस ईद के मौके पर..इससे जुड़े अपने सिनेमा के हसीन लम्हें याद आएं..जो आशिक़ाना मिज़ाज के हम जैसों के क़रीब हैं!

'बरसात की रात' (१९६०) के "मुझे मिल गया बहाना." गाने में श्यामा!
इसमें शुरू में मन में गूँजा 'बरसात की रात' (१९६०) का गाना..
"मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का
कैसी ख़ुशी ले के आया चाँद ईद का.."


लता मंगेशकर ने गाया यह गाना परदे पर श्यामा ने लाजवाब साकार किया था और ढ़ोलक बजा रही थी रत्ना..जिसके पति (भारत भूषण) इस फ़िल्म के नायक थे और नायिका..मलिका-ए-हुस्न मधुबाला!

'दिल ही तो है' (१९६३) के "निगाहें मिलाने को.." गाने में नूतन!
कुछ अपनी महबूबा या महबूब का दीदार करने के लिए ऐसा बहाना चाहतें हैं! लेकिन साहिर लुधियानवी ने महबूब में ही चाँद देखकर ईद समझ ली और 'दिल ही तो है' (१९६३) में लिखा..
"जब कभी मैंने तेरा चाँद सा चेहरा देखा
ईद हो या के ना हो, मेरे लिए ईद हुई..!''


वैसे अपने महबूब को चाँद मानने की बात हमारे सिनेमा के परदे पर हमेशा रूमानी तरीके से कहीं गयी हैं..जैसे की 'दिल्लगी' (१९४९) में नौशाद के धून पर ख़ूबसूरत गायिका-अभिनेत्री सुरैय्या का श्याम के साथ "तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी.." गाकर झूलना! तो अनंतकुमार और नंदा अभिनीत 'बरखा' (१९५९) में मुकेश और लता मंगेशकर का अच्छा डुएट था "एक रात में दो दो चाँद खिले..एक घुंगट में एक बदली में.."

'चौदवी का चाँद' (१९६०) के शीर्षक गीत में रूमानी होतें गुरुदत्त और वहिदा रहमान!
फिर संवेदनशील अभिनेता गुरुदत्त ने अपनी फ़िल्म 'चौदवी का चाँद' (१९६०) के शीर्षक गीत में वहिदा रहमान पर जैसे तारीफों के फूल बरसाएं हैं..इसमें शकील बदायुनी की शायरी और रवि के संगीत में मोहम्मद रफ़ी की उस अंदाज़ में गायकी का कमाल भी हैं!..मेरे पसंदीदा रूमानी गानों में से यह एक हैं।

बाद में 'मैं चुप रहूँगी' (१९६२) में तो राजेंद्र कृष्ण ने ऐसा लिखा था की जैसे प्रेमियों का नूर देखकर चाँद और चाँदनी भी शरमा गएँ हो! उनके गीत से सुनील दत्त इसमें मीना कुमारी को कहता हैं "चाँद जाने कहाँ खो गया..तुमको चेहरे से परदा हटाना न था.." उसपर मीना कुमारी उसे कहती हैं "चाँदनी को ये क्या हो गया..तुमको भी इस तरह मुस्कुराना न था.."

'मैं चुप रहूँगी' (१९६२) के "चाँद जाने कहाँ खो गया." गाने में सुनील दत्त और मीना कुमारी!
लेकिन कभी-कभी तो.. प्रेमिका को चाँद का देखना भी गवारा न हुआ! जैसे राज कपूर के 'आवारा' (१९५१) में नर्गिस कहती हैं "दम भर जो उधर मुँह फेरे..ओ चँदा, मैं उनसे प्यार कर लूंगी.." इसमें प्यार का एक जुनून नजर आता हैं! बाद में 'लव मैरेज' (१९५९) में तो देव आनंद चाँद को इशारा करता हैं "धीरे धीरे चल चाँद गगन में.." और उसकी महबूबा माला सिन्हा उनके जज़्बा आगे और बयां करती हैं "कही ढल ना जाये रात, टूट ना जायें सपनें.."

'लव मैरेज' (१९५९) के "धीरे धीरे चल चाँद गगन में." गाने में देव आनंद और माला सिन्हा!
वैसे अपनी हसीन महबूबा की तारीफ़ चाँद का हवाला देकर करना यह हमारें रूमानी सिनेमा में बरक़रार रहा..जैसे 'कश्मीर की कली' (१९६४) में शम्मी कपूर ने "ये चाँद सा रोशन चेहरा.." ऐसा अपनी मस्ती में गाकर शर्मिला टैगोर के हुस्न की तारीफ की थी! तो कभी प्रेमी ने प्रेमिका से चाँद के पार चलने की बात भी की..जैसे 'पाक़ीज़ा' (१९७२) में राज कुमार ने मीना कुमारी को लेकर अपने धुंद में गाया था "चलो दिलदार चलो.." 

बाद में एक वक़्त ऐसा आया जब प्रेमी ने चाँद से यह कहलवाया की, उसकी प्रेमिका जैसी ख़ूबसूरती आसमाँ में भी नहीं..इसमें आनंद बक्षी की शायरी ख़ूब रंग लायी..फ़िल्म 'अब्दुल्ला' (१९८०) के लिए उनके कलम से निकला नग़्मा उसी शायराना अंदाज़ में मोहम्मद रफ़ी ने गाया "मैंने पूछा चाँद से के देखा है कही मेरे यार सा हसीन..चाँद ने कहा चाँदनी की कसम नहीं.." और परदे पर संजय खान ने ज़ीनत अमान के साथ रूमानी तरीके से यह पेश किया!
'अब्दुल्ला' (१९८०) के "मैंने पूछा चाँद से." गाने में रूमानी अंदाज़ में ज़ीनत अमान-संजय खान!

आगे भी अपनी महबूबा जैसा हुस्न चाँद के पास नहीं हैं ऐसा कहना हमारें सिनेमा की रूमानियत को निखारता गया..जैसे 'हम दिल दे चुके सनम' (१९९९) में ऐश्वर्या राय को लेकर सलमान खान कहता हैं "चाँद छुपा बादल में शरमा के मेरी जाना.."


ख़ैर, ईद की मुबारक़बाद!!

- मनोज कुलकर्णी
   ['चित्रसृष्टी']

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